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दिवाली 2018 : त्योहार के दीये में सेहत का उजियारा, जानिए कैसे

सरसों के तेल का दीपक खत्म करता है हवा में मौजूद सल्फर। तेल में मौजूद मैग्नीशियम सल्फर के आक्साइड्स से करता है क्रिया।

By AbhishekEdited By: Published: Tue, 06 Nov 2018 11:59 AM (IST)Updated: Tue, 06 Nov 2018 11:59 AM (IST)
दिवाली 2018 : त्योहार के दीये में सेहत का उजियारा, जानिए कैसे
दिवाली 2018 : त्योहार के दीये में सेहत का उजियारा, जानिए कैसे

कानपुर (बृजेश कुमार दुबे)। सुनकर अजीब सा लगता है न कि हवाओं को भी दीये की दरकार है। उन दीयों की, जिसकी लौ उसकी मर्जी पर उठती गिरती है, जिसे जब चाहे वह बुझा सकती है। जी हां, ये सच है। हवाओं को अपनी सेहत सुधारने के लिए नन्हे से दीये की दरकार होती है।

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सरसों के तेल के दीपक की मान्यता

यह नन्हा सा दीया है, सरसों के तेल का। सरसों के तेल का दीपक न केवल हवा की सेहत सुधारता है बल्कि पर्यावरण भी ठीक रखने में मदद करता है। यह महज धार्मिक मान्यता नहीं है बल्कि केमिकल इंजीनियरों का कहना है कि सरसों के तेल का दीया जलाना वैज्ञानिकता से भरपूर है। नरक चतुर्दशी के दिन कूड़े और नाली के पास सरसों के तेल का दिया जलाना चाहिए। दीपावली पर सरसों के तेल के दीपक से घर सजाना चाहिए। इससे लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं।

विशेषज्ञ की जुबानी वैज्ञानिक कारण

हरकोर्ट बटलर प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (एचबीटीयू) के ऑयल एंड पेंट टेक्नालॉजी विभाग के विभागाध्याक्ष प्रोफेसर आरके त्रिवेदी बताते हैं कि सरसों के तेल में पाया जाने वाला मैग्नेशियम, लायलाय साइनाइड और ट्राईग्लिसराइड इसे बेहतर पर्यावरण मित्र बनाते हैं। प्रोफेसर त्रिवेदी के अनुसार सरसों के तेल में मौजूद मैग्नेशियम हवा में मौजूद सल्फर से रासायनिक क्रिया कर मैग्नीशियम सल्फेट बनाता है। यह यौगिक जमीन पर बैठ जाता है और हवा में सल्फर की मात्रा कम हो जाती है।

इससे सांस लेना आसान हो जाता है। वहीं तेल में पाए जाने वाला लायलाय साइनाइड के जलने पर कीट-पतंगे आकर्षित होकर उसकी तरफ आते हैं और मर जाते हैं। वहीं तेल में पाया जाने वाला ट्राईग्लिसराइड बाती के जलने पर कार्बन डाई आक्साइड के उत्सर्जन में कमी करता है। वातावरण से प्रदूषण कम होने पर दवा में पैसे नहीं खर्च होते। मन से काम करते हैं। लाभ पाते हैं। यही लक्ष्मी का प्रसन्न होना है।

सल्फर के आक्साइड्स से नुकसान

जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के टीबी एवं चेस्ट विभाग के प्रोफेसर डा. सुधीर चौधरी के अनुसार हवा में सल्फर के आक्साइड्स मानक से अधिक होने पर सांस संबंधी रोग की आशंका बढ़ जाती है। सल्फर सांस की नलियों में सूजन पैदा करता है, फेफड़े की रक्त नलिकाओं के छिद्र बड़े जाते हैं और पानी जैसा रिसाव होने लगता है। इससे आक्सीजन की कमी हो जाती है और दम फूलने लगता है। आंख में जलन होती है और पानी आने लगता है।कानपुर बेहद प्रदूषित, आइये दीये जलाएं

खासकर इस समय, जब हवा में सल्फर समेत विभिन्न रासायनिक तत्वों और गैसों की मात्रा बढ़ रही है, सरसों के तेल का दीया प्रदूषण से लडऩे में मददगार हो सकता है। दीपावली पर सरसों के तेल दीया जलाएं। केमिकल युक्त अन्य कृत्रिम साधन वातावरण में हानिकारक तत्व बढ़ाएंगे।


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