टपकती छत, कमरों में सीलन और जर्जर भवन, कैसे बिताएं जीवन
बरसात में टपकती छत कमरों में सीलन और जर्जर भवन में जीवन यापन कर रहे पुलिसकर्मियों व उनके स्वजनों की हर वक्त जान-जोखिम में रहती है।
जागरण संवाददाता, कानपुर : बरसात में टपकती छत, कमरों में सीलन और जर्जर भवन में जीवन यापन कर रहे पुलिसकर्मियों व उनके स्वजनों की हर वक्त जान-जोखिम में रहती है। इतना ही नहीं ज्यादातर पुलिसकर्मियों के आवास जहां बनें हैं वहां गंदगी व सीवर लाइन चोक होने से जीना तक दूभर हो गया। समाज के रक्षक इन पुलिसकर्मियों के दुख-दर्द को सुनने वाला कोई नहीं है। मजबूरन इन्हें दुश्वारियों संग समझौता करना पड़ रहा है।
सबसे पहले शुरुआत करते हैं छावनी थाने से। यहां थाने के पीछे ही करीब दो दर्जन आवास हैं। भूतल के आवास तो ठीक हैं, लेकिन पहली मंजिल पर आवासों में से अधिकांश में मरम्मत की जरूरत है। यहां वर्षो से सीवर लाइन चोक पड़ी है। कर्मचारियों ने शिकायत की तो सीवरेज लाइन ठीक कराने या टैंक बनवाने के बजाए अधिकारियों ने सीवरेज को खुले मैदान में छोड़ दिया। इससे थाने सटा हुआ प्लॉट तालाब बन गया है। यही हाल छावनी में थाने से 100 मीटर दूर स्थित दूसरी कॉलोनी का है। यहां दूसरी मंजिल के आधा दर्जन आवासों के छज्जे गिरने की हालत में हैं। कुछ तो टूटकर लटक चुके हैं। कर्मचारियों का कहना है कि शिकायत के बाद भी सुनवाई नहीं हो रही है।
इसी तरह ट्रैफिक पुलिस लाइन में भी हालात बद्तर हैं। बारिश शुरू होते ही सीवरेज सड़क पर बहता है। दीवारों से पानी रिसकर नीचे आता है। छतों से भी पानी टपकने लगता है। एक मंत्री के गनर की पत्नी ने बताया कि सीलन और पानी टपकने के कारण ही दूसरा आवास आवंटित कराना पड़ा। पड़ोस की महिला ने भी बताया कि सीलन की वजह से सामान खराब हो जाता है। बाबूपुरवा में तैनात सिपाही के आवास के एक ओर सड़क और दूसरी ओर सीवर बह रहा है। इमारत की पहली मंजिल पर जाने के लिए भी गंदगी के बीच से गुजरना पड़ता है।
----
पिछले वर्ष आवासों व कार्यालयों की मरम्मत के लिए जो बजट आया था, वह खर्च हो चुका है। इस वर्ष के लिए डिमांड भेजी गई थी। अभी बजट नहीं आया है। पैसा आते ही प्राथमिकता के अनुसार आवासों की मरम्मत व सीवरेज आदि के कार्य कराए जाएंगे।
डॉ. अनिल कुमार, एसपी पश्चिम