चढ़ौती चढ़ाओ और आवास पाओ, विधायक के सामने साहब की बोलती बंद
कानपुर में कई घटनाएं या तो सुर्खियां बनने से रह जाती हैं या फिर उन्हें छिपा लिया जाता है। वहीं कुछ घटनाएं ऐसी हो जाती हैं जो सामने नहीं आ पाती है। प्रशासनिक अमले में कुछ ऐसे ही वाक्यो को पेश कर रही है ये रिपोर्ट।
कानपुर, [दिग्विजय सिंह]। प्रधानमंत्री आवास योजना को प्रधान जी कमाई का जरिया बना लिए हैैं। आवंटन के नाम पर एक प्रधान जी ने गरीब किसान से 20 हजार रुपये मांगे। किसान ने कहा पांच से 10 हजार रुपये ही दे सकता हूं वह भी धान बेचकर, लेकिन प्रधान जी कहां मानने वाले थे। उन्होंने कह दिया 20 हजार रुपये से एक भी पैसा कम नहीं। किसान बोला-इससे ज्यादा देने की हैसियत नहीं है। अब अगर किस्मत में झोपड़ी है तो यही सही। इतना सुनते ही प्रधान जी ने भी आवास दिलाने से मना कर दिया। नाराज किसान ने भी कह दिया प्रधान जी फिर वोट मांगने न आना। प्रधान जी फौरन बोल पड़े-अरे भाई वोट तो दारू-मुर्गा बांटने पर मिलता है। आवास दिलाने पर कौन वोट देता है। किसान ने भी कह दिया तो दारू बांटकर चुनाव जीत लीजिएगा फिर आवास क्यों बांट रहे हैं। इतना सुन प्रधान जी का चेहरा लटक गया।
मुसीबत में और परेशानी
भूखंडों का आवंटन करने वाले विभाग में अहम ओहदा रखने वाले एक साहब का तबादला हो गया। साहब चाहते थे कि दो-तीन साल की बची नौकरी मूल विभाग में ही काट लें। तबादला रुकवाने की जुगत भिड़ा रहे थे। कुछ उम्मीद जगी तभी उनसे जुड़े कुछ मामले जांचने सीबीआइ आ गई। अब न तबादला रुक रहा है और न ही विभाग में उनको लेकर चर्चाएं थम रही हैं। हालांकि साहब के विरुद्ध सीबीआइ तो वर्षों से जांच कर रही है लेकिन कुछ खास सबूत नहीं मिला था लेकिन अब उनके विरोधियों को लग रहा है कि साहब फंस जाएंगे इसलिए वह प्रसन्न हैं। उनके विरुद्ध सीबीआइ को सबूत देने की भी तैयारी कर रहे हैं। वे अपनी इस कोशिश में कितना सफल होंगे यह तो वक्त बताएगा लेकिन उन्होंने कुछ पुराने मामलों की फाइलें जरूर निकाल ली हैैं। हालांकि, वह अभी सीबीआइ के जांच अधिकारी तक पहुंच नहीं सके हैं।
घूस मांगना पड़ गया भारी
निर्माण कराने वाले एक विभाग के लिपिक को बिलों के भुगतान के बदले में पैसा कमाने का मन हो गया। उन्होंने एक मीडियाकर्मी से तीन से चार फीसद कमीशन मांग लिया। यह भी बता दिया कि इससे पहले वे जिस जिले में थे वहां हर बिल के भुगतान में कमीशन मिलता था। कमीशन दें तो तत्काल भुगतान होगा। इतना कहने के बाद लिपिक महोदय मुस्करा दिए। मीडिया कर्मी को लगा अब बिना रिश्वत भुगतान नहीं होगा तो वह बड़े साहब के दरबार मे पहुंच गए। बड़े साहब ने लिपिक का तबादला कर दिया। अब तबादला रुकवाने के लिए बेचैन लिपिक ने तमाम कोशिश की लेकिन बात नहीं बनी तो अब यह कहते घूम रहे हैं कि घूस नहीं मांगी थी सिर्फ मजाक किया था लेकिन अब उनकी कहीं सुनवाई नहीं हो रही है। महोदय ने पुरानी सीट आने का प्रयास तो नहीं छोड़ा, हालांकि अब नई कुर्सी संभाल ली है।
साहब की बोलती बंद
गांव में विकास कराने वाले विभाग के बड़े साहब अपनी लच्छेदार बातों से अच्छे-अच्छों का मुंह बंद कर देते हैं लेकिन साहब भूल गए कि उनकी लच्छेदार बातों में कितना झूठ है अफसर भले ही न पकड़ें विधायक जी जरूर पकड़ लेंगे। हुआ भी बिल्कुल यही। पिछले दिनों विकास भवन में हुई निगरानी समिति की बैठक में एक विधायक जी ने उनकी बोलती बंद कर दी। गांव-गांव पंचायतों द्वारा सामान खरीदने में किए गए खेल का मुद्दा उठा तो साहब ने उसे दबाने की कोशिश की। विधायक जी ने सबके सामने अनियमितता का पूरा चिट्ठा खोल दिया और यह बता दिया कि उनकी बातों में कितना सच और कितना झूठ है। विधायक जी ने यह भी बता दिया कि एक ही व्यक्ति ने नाम बदलकर फर्म बनाई और सामान सप्लाई कर दिया। इतने सुनते ही बड़े साहब अवाक रह गए और जांच कराने की बात कहकर शांति से बैठ गए।