जानिए, सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिंद फौज की जाबांज मानवती आर्या के जीवन कुछ अनछुए पहलू
आजाद हिंद फौज की जांबाज महिला होने के साथ मानवती कलम की भी सिपाही थीं।
कानपुर, जेएनएन। नेताजी सुभाष चंद्र बोस की अगुवाई में ब्रिटिश सरकार के खिलाफ जंग लडऩे वालीं लेफ्टिनेंट मानवती आर्या एक जांबाज महिला होने के साथ कलम की सिपाही भी थीं। देश के लिए सदैव चिंता करने वाली मानवती के जीवन में कई पहलू आए और उन्होंने हमेशा देश भक्ति के लिए अपना जीवन समर्पित रखा। जीवन देश को देने के साथ मरणोपरांत अपना शरीर पर समाज सेवा को समर्पित कर गईं। आइए जानते हैं आजाद हिंद फौज की इस जांबाज महिला के जीवन के कुछ पहलू...।
हमेशा जीवंत रहेंगी मानवती
आजाद ङ्क्षहद फौज में रानी झांसी रेजीमेंट में लेफ्टिनेंट मानवती आर्या ने भले ही दुनिया छोड़ दी है, लेकिन वे अपने कृतित्व के जरिए हमेशा जीवित रहेंगी। जीवन का आधा हिस्सा जहां उन्होंने देश को आजाद कराने की लड़ाई में बिताया था, वहीं दूसरा भाग समाजसेवा को अर्पित कर दिया था। वह कलम की भी धनी थीं और जीवन का आखिरी दौर उन्होंने साहित्य को समर्पित कर दिया था। 1984 से 1994 तक बाल दर्शन पत्रिका की प्रधान संपादक रहीं। अखिल भारतीय नशाबंदी परिषद, लोक सेवा मंडल और पारिवारिक अदालत में सलाहकार के तौर पर उन्होंने समाजसेवा में काफी वक्त बिताया।
बेहद चर्चित हैं नेताजी पर लिखीं दो पुस्तकें
उम्र के अस्सी दशक पार करने के बाद उन्होंने खुद को सभी संगठनों से दूर कर केवल साहित्य को समय दिया। उनके पुत्र दिनेश आर्या बताते हैं कि उन्होंने नेताजी सुभाष चंद्र बोस के जीवन पर आधारित दो पुस्तकें अंग्रेजी में लिखीं। पहली 'जजमेंट : नो एयरक्रैश, नो डेथ' और दूसरी 'पैट्रियॉट : द यूनिक इंडियन लीडर सुभाष चंद्र बोस'। यह पुस्तकें बेहद उपयोगी और चर्चित हैं। इसके अलावा उन्होंने बाल साहित्य पर बहुत काम किया। बच्चों के प्रति उनके मन में बहुत अनुराग था और बाल मन को बखूबी समझती थीं।
कुछ ऐसा रहा जीवन का सफर
एक जानकारी के अनुसार मूलरूप से फैजाबाद के रहने वाले श्यामा प्रसाद पांडेय बर्मा में पोस्टमास्टर थे और वहीं पत्नी के साथ जाकर बस गए थे। उनकी पत्नी ने मई 1920 में बच्ची को जन्म दिया था, जिसका नाम मानवती पांडेय रखा था। मानवती 15 वर्ष की आयु में पिता के साथ वापस फैजाबाद आ गई थीं। यहां अंग्रेजों का जुल्म देखकर वह उनके खिलाफ आवाज बुलंद करने लगीं। इसके बाद वह आजाद हिंद फौज का हिस्सा बन गईं। एक बार ट्रक से मोर्चे पर जाते समय नेताजी ने पूछा था कि लड़कियां खुश तो हैं, उन्हें कोई पछतावा तो नहीं है। उन्होंने 15 महीने नेता जी के साथ मोर्चे पर बिताए थे। नेता जी अक्सर उनसे कहते थे कि आजादी हाथ जोड़कर नहीं मिलती उसे छीनना पड़ता है। नेताजी ने आजाद हिंद फौज में झांसी रेजीमेंट के नेतृत्व की जिम्मेदारी सौंपी थी।
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