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कानपुर का शहरनामा : मोदी की सीख पर भौकाल भारी, अरमान टूटे तो हुए बागी

कानपुर शहर की राजनीतिक हलचल का शहरनामा कालम है। मोदी के अनुयायी माननीय सियासी भौकाल में उनकी उस खामोश हिदायत को भूल गए। प्रदेश की सियासत में हासिये पर आ चुके दल के नेता अबकी बार दीदी की अगुवाई में लडऩे का दम भर रहे हैं।

By Abhishek AgnihotriEdited By: Published: Sun, 16 Jan 2022 01:09 PM (IST)Updated: Sun, 16 Jan 2022 01:09 PM (IST)
कानपुर का शहरनामा : मोदी की सीख पर भौकाल भारी, अरमान टूटे तो हुए बागी
कानपुर की सियासी हकीकत का शहरनामा ।

कानपुर, [राजीव द्विवेदी]। यूपी विधानसभा चुनाव का बिगुल बजने के बाद शहरी राजनीतिक हलचल में खासा तेजी दिखाई देने लगी है। इसी हलचल की हकीकत लेकर आया है शहरनामा कालम...।

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मोदी की सीख पर भौकाल भारी

बीच पारी सियासी पिच पर आने वाले माननीय खुद को विकास पुरुष साबित करने का मौका नहीं छोड़ते, फिर भला मेट्रो की सौगात मिलने पर कहां चूकते। प्रधानमंत्री से सौगात मिलने के दूसरे दिन मेट्रो की नियमित सेवा शुरू हुई तो माननीय समर्थकों के साथ मेट्रो स्टेशन पर मिठाई का डिब्बा लेकर पूरे भौकाल से पहुंचे। सफर के लिए पहुंचने वालों को मिठाई खिलाने के साथ मेट्रो पर सफर की गुजारिश की। उनके हाथों मिठाई खाने वाला हर शख्स हैरान था कि वह तो मेट्रो से ही सफर को आया है तब फिर भला नसीहत काहे की है। माननीय के साथ उनके समर्थकों के बिना टिकट स्टेशन पर पहुंचा देखकर हैरान कानपुर मेट्रो के मुलाजिम भी थे। उनको वह दृश्य याद आ रहा था कि किस तरह प्रधानमंत्री मोदी ने मेट्रो ट्रेन का टिकट लेकर सफर किया। अखबारों में और चैनलों पर लोगों ने वह तस्वीरें भी देखी थीं, हालांकि मोदी के अनुयायी माननीय सियासी भौकाल में उनकी उस खामोश हिदायत को भूल गए।

पराक्रम नहीं परिक्रमा पर यकीन

भगवा दल के माननीय समर्थकों में टिकट पक्का होने का दावा भले करें, पर केशव भवन में लगने वाली हाजिरी उनके दावे की कलई खोलती है। दरअसल माननीयों को पता है भवन से पार्टी को जाने वाली रिपोर्ट उनकी किस्मत तय करेगी। पहले और दूसरे चरण के चुनाव के लिए टिकट की जारी हुई सूची में कई माननीयों का पत्ता कटने ने बेचैनी बढ़ाई है तो उनकी सीट पर दावा करने वालों की उम्मीदें भी जवान हुईं। हालांकि सभी को पता था कि अरमान तभी पूरे हो सकेंगे जब केशव भवन की रिपोर्ट माफिक होगी। नियमित हाजिरी लगाने वालों में पौराणिक नगरी वाले माननीय हैं तो अपने डील डौल और खास पहनावे की पहचान वाले भी। बीच पारी में सूबे की पंचायत में पहुंचने वाले भी बिना नागा हाजिरी लगा रहे हैं। बड़े माननीय के खास नातेदार और व्यापारी बहुल सीट की नुमाइंदगी की हैट्रिक लगाने वाले माननीय भी बिटिया के भविष्य की संभावना तलाशने को अक्सर पहुंच रहे हैं। सरकार में शहर को ओहदेदारों में एक खुद तो दूसरे के भाई वह काम कर रहे। उनको देख भवन के कारखास कहने से नहीं चूकते क्षेत्र में पराक्रम किया होता तो परिक्रमा की नौबत नहीं आती।

अरमान टूटे तो हुए बागी

तीन दशक से प्रदेश की सियासत में हासिये पर आ चुके दल के नेता अबकी बार दीदी की अगुवाई में लडऩे का दम भर रहे हैं। तमाम मंथन के बाद जिले की आधी सीटों पर उम्मीदवार घोषित भी कर दिए गए। बकाया आधी सीटों पर अभी भी संशय बना हुआ है, उनमें एक साइकिल के दबदबे वाली सीट के लिए आवेदन करने वाले 11 लोगों में पार्टी के पूर्व और वर्तमान जिलाध्यक्ष भी शामिल हैं। वहीं दूसरी सीटों के लिए अधिकतम आठ दावेदारों ने ही आवेदन किए हैं। सबसे ज्यादा दावेदारों वाली सीट पर लाल टोपी वालों का साथ छोड़कर आने वाले नेता को टिकट का भरोसा मिलने के बाद वर्षों से पार्टी के लिए काम करने वाले नेता जो इस बार टिकट की उम्मीद लगाए थे वह तमतमाए हुए हैं। पार्टी के फैसले को गलत साबित करने के लिए अब तमाम दावेदार ताजा ताजा दल में आए नेताजी की हिस्ट्रीशीट निकाल कर आलाकमान तक पहुंचा चुके हैं। सीट के लिए टिकट फाइनल न होने से असंतुष्टों की उम्मीद नहीं टूटी।

गरीबी पर उपकार का जश्न

अरसे तक अपने ही संगठन के साथियों से रुसवा रहे सीजनल समाजसेवी सर्दी में फिर अपनी दरियादिली का ढोल पीटने को आ गए। दरअसल धन की धमक से जिस व्यापारी संगठन के सर्वरा थे उसके तमाम पदाधिकारियों ने उनके ऐश्वर्य प्रदर्शन और खुद के सिवा सभी को तुच्छ समझने के चलते उनके बजाय नायब को तरजीह देना शुरू कर दिया तो जनाब नेपथ्य में चले गए। अपनी जय जयकार कराने के आदी जनाब को रुसवाई अखरने लगी तो सबकी सहमति से सहयोग को तैयार हो गए। संगठन के साथियों ने भी बड़ा दिल दिखाया तो जनाब अब फिर से अपनी रौ मे हैं। वाट्सएप डीपी में तस्वीर के साथ एमएलए लिखने के साथ अपनी जय जयकार कराने को हफ्ते भर पहले शानदार टेंट लगाकर गाजे बाजे के साथ कंबल वितरण समारोह आयोजित किया। मुख्य अतिथि पहुंचे तो विशालकाय फूलों की माला से उनका स्वागत हुआ। कंबल लेने आए लोगों को समझ नहीं आ रहा था कि ये सब उनकी मदद के लिए हो रहा या फिर गरीबी पर उपकार का जश्न मनाया जा रहा है।


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