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Kanpur Shaernama Column: श्रेय की सियासत में किरकिरी, तो फिर मलते रह जाएंगे हाथ

कानपुर में राजनीतिक गलियारों की हलचल लेकर आता है शहरनामा कॉलम । विधानसभा चुनाव से पहले पंचायत चुनाव के परिणामों ने भाजपा को काफी निराश किया तो अब रही-सही कसर उसके क्षेत्रीय सिपहसलार पूरी कर रहे हैं ।

By Abhishek AgnihotriEdited By: Published: Sun, 27 Jun 2021 10:59 AM (IST)Updated: Sun, 27 Jun 2021 10:59 AM (IST)
Kanpur Shaernama Column: श्रेय की सियासत में किरकिरी, तो फिर मलते रह जाएंगे हाथ
कानपुर की राजनीतिक चर्चाओं का शहरनामा कॉलम

कानपुर, [राजीव द्विवेदी]। शहर में जिला पंचायत चुनाव के चलते राजनीतिक और प्रशासिनक हलचल खासा तेज हो गई है। राजनीतिक गलियारों की चर्चाएं अक्सर सुर्खियां नहीं बन पाती हैं, जिन्हें चुटीले शब्दों के साथ शहरनामा लेकर आप तक आता है। इस सप्ताह शहरनामा कालम में खास चर्चाएं इस तरह से हैं..।

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फिर प्रगटे कंबल वाले बाबा

बाउंसर की सुरक्षा में रहने वाले स्वघोषित सुप्रसिद्ध समाजसेवी उद्यमी कोरोना की रफ्तार कम होने पर फिर प्रकट हुए हैं। सड़क किनारे उनके होॄडग्स में कोराना से बचने की नसीहतें हैं। कंबल वाले बाबा की भी पहचान रखने, काले चश्मा लगाने वाले स्वर्णाभूषणों के शौकीन स्वघोषित समाजसेवी की प्रदेश के मुखिया से मुलाकात की तस्वीर भी है। शहर के खास अभिजात्य वर्ग और अफसरों की नजरों में शायद उनकी होॄडग्स न आए, इसके लिए बाबा ने होॄडग वाली तस्वीरों को लोगों के वाट्सएप पर भी भेजे और भिजवाए हैं। हालांकि उनको न जानने वालों के गले भले यह बात नहीं उतर रही कि कोरोना से बचाव की नसीहतों के बीच महंत जी की तस्वीर का क्या औचित्य है, पर जानने वाले उनकी मंशा को अच्छे से समझते हैं। तंज भी कस रहे हैं कि नाम के लिए काम एसोसिएशन ही आ रही, उसके बिना तो होॄडग की कोई अहमियत नहीं।

श्रेय की सियासत में किरकिरी

विधानसभा चुनाव से पहले पंचायत चुनाव के परिणामों ने भाजपा को काफी निराश किया तो अब रही-सही कसर उसके क्षेत्रीय सिपहसलार पूरी कर रहे हैं। जिला पंचायत के लिए विपक्ष से काफी कम सदस्य होने के बाद भी अध्यक्ष पद के लिए धड़ेबाजी हुई। 2022 की तैयारी कर रहे माननीय प्रदेश आलाकमान की नजरों में नंबर बढ़ाने के लिए अध्यक्षी का श्रेय भी लेना चाह रहे थे। सरकार के ओहदेदार ने भी नवेले माननीय के समर्थक सदस्य को आशीर्वाद दिया। उसने तैयारी शुरू कर दी तो ओहदेदार ने माननीय के आगे श्रेय उनको देने की शर्त रख दी। भला माननीय को ये कहां मंजूर। लिहाजा ओहदेदार का आशीर्वाद किसी और को हो गया, मगर श्रेय की सियासत ने पार्टी में सर्वसम्मत की संभावना का गला घोंट दिया। सूबे के मुखिया तक ओहदेदार के दांव की जानकारी है। अब देखना है,परिणाम माफिक न होने पर किस तरह का रिएक्शन होता है।

बेकार गया धोबी पछाड़

चुनाव से चंद माह पहले समाजवादी माननीय के धोबी पछाड़ दांव से भगवा दल वाले हक्का बक्का थे। व्यापारियों के दिवंगत नेता के सम्मान की फिक्र करके माननीय ने ब्राह्मण और व्यापारी समाज को साधने का जो दांव खेला, उसका तोड़ भगवा दल वाले टिकट से ख्वाहिशमंद नेताओं को नहीं सूझ रहा था। जिस मंशा से माननीय शहर की पंचायत में प्रस्ताव लाए, सफल भी होता दिख रहा था। व्यापारियों ने उनके प्रयास को सराहा, नेता के सजातीय भी सम्मान को लेकर खुश थे। माननीय को मिलते साधुवाद से परेशान भगवा दल वालों के लिए वर्षों पहले शहर की पंचायत में लाए गए प्रस्ताव ने संजीवनी का काम किया। पता चला, शहर के व्यापारिक केंद्र जिस बाजार को दिवंगत व्यापारी नेता के नाम करने का प्रस्ताव माननीय ने दिया, उसका पहले ही नामकरण हो चुका है। अब भगवा वाले माननीय के प्रस्ताव को सियासी स्टंट साबित करने में लगे हैं।

...तो मलते रह जाते हाथ

महीनों की अंडग़ेबाजी के बाद आखिरकार शहर के विकास की गाड़ी आगे सरक गई। दरअसल पक्ष-विपक्ष को लग गया कि अब चूके तो शायद मौका न मिले। विकास कार्यों पर शहर की पंचायत की मुहर लग जाने के बाद शुरू होने वाली प्रक्रिया में चार-छह महीने लग जाएंगे, जिसे पूरी होते होते विधानसभा चुनाव की आचार संहिता का वक्त हो जाएगा। ऐसे में जनप्रतिनिधियों ने भागते भूत की लंगोटी की तरह जो मिल रहा, उसको किस्मत मानकर समझौता कर लिया। इनमें सत्ताधारी ही नहीं, विपक्ष के नुमाइंदे भी हैं। हैरत ये कि बंगाल चुनाव में जिस कट मनी की खूब चर्चा हुई, उसके कारण विकास थमने का मुद्दा बना, मगर शहर में उसी की ख्वाहिश ने विकास का रास्ता खोला। विकास कार्यों के प्रस्ताव पास होने के बाद मौजीले कनपुरिये प्रतिनिधियों का मजा ले रहे कि महीनों के अड़ंगे के बाद क्या बदल गया जो उनका ताव ठंडा हो गया। 


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