Kanpur Rojnamcha Column: नहीं बने थानेदार, किसक कहने पर छोड़ा मैदान
कानपुर शहर में पुलिस महकमे की हलचल लेकर आता है रोजनामचा कॉलम..। शहर में कहने को सिर्फ कहने को कर्फ्यू लगा लेकिन पालन कराने के नाम पर तमाशा हो रहा है। विधायक जी के घर के बाहर बदमाशों के पकड़े जाने के बाद पुलिस की खिल्ली भी उड़ चुकी है।
कानपुर, [गौरव दीक्षित]। कानपुर शहर में आपराधिक गतिविधियों के अलावा पुलिस महकमे में भी खासा हलचल रहती है, जिसकी चर्चा तो आम रहती लेकिन सुर्खियां नहीं बनती हैं। इन्हीं आपतक लेकर आता है हमारा रोजनामचा कॉलम.., आइए पढ़ते है बीते सप्ताह क्या खास चर्चाएं बनी रहीं।
कर्फ्यू या तमाशा
कोरोना संक्रमण के घटते आंकड़ों के बीच शहर में एक बार फिर लोगों की लापरवाही सिर चढ़कर बोलने लगी है। कहने को तो कोरोना कफ्र्यू लगा है, लेकिन जिधर देखो उधर भीड़ ही भीड़ नजर आ रही है। अगर इसी तरह से लापरवाही का आलम जारी रहा तो तीसरी लहर के लिए समय से पहले ही तैयार रहना होगा। शुक्रवार को शहर की सड़कों पर गाडिय़ां ही गाडिय़ां नजर आ रही थीं। कहने के लिए कफ्र्यू के दौरान आवश्यक वस्तुओं की बिक्री के लिए समय नियत है, लेकिन शहर के तमाम हिस्सों में दिनभर दुकानें खुल रही हैं। वहीं, सरकारी राशन की दुकानों पर भी भीड़ का आलम यह है कि लोग एक दूसरे पर चढ़कर राशन लेने की कोशिश करते दिखाई दिए। जिला प्रशासन या पुलिस की ओर से इन्हें नियंत्रित करने के लिए कोई भी इंतजाम नहीं किया गया है। कफ्र्यू में यह तमाशा कहीं भारी पड़ जाए।
घर की फूट
पिछले दिनों एक विधायक जी के घर के बाहर से हथियार बंद बदमाश पकड़े गए थे। इस मामले में पुलिस की सेटिंग से जुड़ा एक वीडियो भी वायरल हुआ है, जिससे पुलिस की जमकर खिल्ली उड़ी। असल में पुलिस भगवा पार्टी में चल रही आंतरिक कलह का शिकार हो गई। खबरी के मुताबिक बदमाशों में एक की मां पार्टी के ही एक जनप्रतिनिधि के यहां काम करती है। दोनों जनप्रतिनिधियों में छत्तीस का आंकड़ा है। ऐसे में दूसरे वाले ने आरोपित को छोडऩे का दबा दिया। मगर, वह नाकाम रहे। पुलिस जब इस केस की लिखापढ़ी की रणनीति बना रही थी तो कुछ भगवा पार्टी वाले भी मौजूद थे। उनमें से ही एक दूसरे वाले माननीय का चेला था। बताते हैं कि उसने ही वीडियो बनाकर वायरल कर दिया। इन तरह से माननीय ने अपना बदला ले लिया और घर की फूट पुलिस के लिए किरकिरी का कारण बन गई।
भले नहीं बने थानेदार
शहर में पुलिस कमिश्नरेट सिस्टम लागू होते ही पैदल चल रहे इंस्पेक्टरों को उम्मीद थी कि नए सिस्टम में उन्हें थानेदारी नसीब होगी। मगर, दूसरे ही दिन पंचायत चुनाव के लिए आचार संहिता लागू हो गई, जिसकी वजह से तबादला आदि पर रोक लग गई। ऐसे में तमाम लोगों के चेहरे उतर गए। मगर, 25 मार्च के बाद धीरे-धीरे कोरोना ने ऐसा कहर बरपाया कि शवों के ढेर लग गए। थानेदार न बन पाए पुलिस अफसर अब बेहद खुश हैं कि अच्छा हुआ कि थानेदार नहीं बन पाए। अगर भूल से भी कुर्सी मिल जाती तो कोरोना संक्रमण में 24 घंटे निजी सुरक्षा के साथ-साथ परिवार की सुरक्षा खतरे में रहती। सबसे बड़ी बात कि बंदी के इस माहौल में कमाई भी ठंडी है। कुर्सी की चाह में अफसरों के दरबारों का चक्कर लगाने वाले अब ईश्वर को धन्यवाद दे रहे हैं कि भले ऐसे माहौल में थानेदार नहीं बने।
किसके कहने पर पुलिस ने छोड़ा मैदान
पुलिस के तमाम अफसर, थानेदार और चौकी प्रभारियों ने पिछले दिनों मीडिया से जुड़े वाट््सएप ग्रुपों से अलविदा कह दिया। जब इस घटनाक्रम का तीव्र विरोध हुआ तो पुलिस आयुक्त को आगे आकर स्थिति स्पष्ट करनी पड़ी कि उन्होंने ऐसा कोई आदेश नहीं दिया है। ऐसे में सवाल यह है कि आखिर पुलिस अधिकारियों और कर्मचारियों ने किसके आदेश पर वाट््सएप ग्रुप से किनारा कर लिया और क्यों ऐसा किया गया। हालांकि बताया जा रहा है कि इंटरनेट मीडिया पर जिस तरह से पुलिस की आलोचना हो रही थी, उसे देखकर दूरी बनाने का आदेश दिया गया है। इंटरनेट मीडिया पर नजर रखने वाले पुलिस के ङ्क्षवग ने जिस तरह से एक-एक ग्रुप को खंगालकर पुलिस अफसरों व थानेदारों को बताया कि वे अभी किस ग्रुप में हैं और लेफ्ट नहींं हुए हैं, उससे लगता है कि मामला बेहद गंभीर है। फिलहाल यह मामला चर्चा का विषय बना हुआ है।