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Kanpur Rojnamcha Column: साधु का सबक.., अभी तक नहीं गई दुम हिलाने की आदत

कानपुर शहर के पुलिस महकमे की हलचल है रोजनामचा कॉलम। अरसे से थानों में जमे कुछ थाना प्रभारियों की दुम हिलाने की आदत अभी नहीं गई है। वहीं राजनीतिक दलों की विचारधारा को लेकर आए दिन सिर फुटव्वल बनी रहती है।

By Abhishek AgnihotriEdited By: Published: Sat, 05 Jun 2021 12:43 PM (IST)Updated: Sat, 05 Jun 2021 12:43 PM (IST)
Kanpur Rojnamcha Column: साधु का सबक.., अभी तक नहीं गई दुम हिलाने की आदत
कानपुर पुलिस महकमे की खबर है रोजनामचा।

कानपुर, [गौरव दीक्षित]। कानपुर शहर में पुलिस महकमे की हलचल अक्सर सुर्खियां नहीं बन पाती है, जबकि चर्चा आम रहती है। ऐसी चर्चाओं को चुटीले अंदाज में हर सप्ताह लाता है हमारा रोजनामचना कॉलम।

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दुम हिलाने की आदत नहीं गई

कमिश्नरेट पुलिस प्रणाली लागू होने के बाद पुलिस आयुक्त ने पहली मीडिया ब्रीफिंग में ज्यादा अधिकार तो ज्यादा जिम्मेदारी का नारा बुलंद किया था। पुलिस आयुक्त और अन्य अधिकारियों की टीम अपनी जिम्मेदारी का अहसास कराती भी रहती है, मगर दुर्भाग्य से अरसे से थानों में जमे कुछ थाना प्रभारियों की दुम हिलाने की आदत अभी नहीं गई है। उनमें न तो अपने बढ़े अधिकारों का रौब दिखता है और न ही जिम्मेदारी का अहसास है। आदतन सत्ताधारी नेता को देखते ही दंडवत हो जाते हैं। भाजपा नेता की जन्मदिन पार्टी में मौजूद हिस्ट्रीशीटर को पकडऩे के बाद नेताओं की भीड़ ने उसे हिरासत से छुड़वा लिया। वीडियो बयां कर रहे हैं कि कैसे साहब लोग नेताओं के सामने मिमियाते रहे। नेता जी की नामजदगी का मामला हो या सख्त धाराएं लगाने का मौका, हर जगह पुलिस बैकफुट पर दिखाई दी। ऐसे ही रहा तो कमिश्नरेट व्यवस्था का क्या फायदा।

साधु का सबक

इन दिनों बिठूर के अखंड शिवधाम आश्रम में संपत्ति विवाद चल रहा है। कोई अनहोनी न हो, इसलिए वहां पुलिस बल तैनात है। एक तरफ साधु हैं तो दूसरी ओर विरोधी खेमा। दोनों के बीच रस्साकसी में पुलिस फंसी है। दो दिन पहले साधुओं ने महिलाओं द्वारा सोते समय अपनी तस्वीर खींचने के मुद्दे को लेकर हंगामा शुरू किया तो दारोगा ने ज्यादा बोल रहे एक साधु पर नियंत्रण बनाने के उद्देश्य से मास्क न लगाने को लेकर डपट दिया। संयोग से दारोगा जी मास्क तो लगाए थे, मगर उनका मास्क गले में लटक रहा था। अब बारी साधु बाबा की थी। दारोगा को डपटते हुए बोले, पहले खुद लगाओ फिर दूसरों को बोलो। हम साधु हैं, दुनिया हमारी सुनती है और तुम हमको सुना रहे हो। साधु का सबक सुनकर बेचारे दारोगा जी की सिट्टी पिट्टी गुम हो गई और फिर वह अनुनय विनय की मुद्रा में ही रहे।

हम साथ-साथ हैं

राजनीतिक दलों की विचारधारा को लेकर आए दिन समर्थकों के बीच सिर फुटव्वल बनी रहती है। बंगाल और कश्मीर में तो जान देकर विचारधारा का साथ देने की कीमत चुकानी पड़ रही है। मगर, अपने शहर में कुछ दूसरा ही खेल हो रहा है। अलग-अलग राजनीतिक दलों की डफली बजाने वाले हमारे तमाम पैरोकार पर्दे के पीछे साथ-साथ खड़े नजर आ रहे हैं। खबरी के मुताबिक शहर में एक ऐसा गिरोह काम कर रहा है, जिसका एकमात्र उद्देश्य ही दूसरों की जमीन, मकान व संपत्तियों को हड़पना है। सड़क पर अपनी-अपनी पार्टी का झंडा बुलंद करने करने वाला यह गिरोह पर्दे के पीछे अंधेरा कायम रहे का नारा बुलंद करता है। कोई एक संकट में होता है तो दूसरा बचाव में खड़ा हो जाता है। इसीलिए वोट की चोट भी इन्हें कमजोर नहीं कर पाती है, क्योंकि सत्ता के दरबार में इनका कोई न कोई अलंबरदार हमेशा मौजूद रहता है।

पेट और सम्मान दोनों पर चोट

पिछले दिनों कमिश्नरेट पुलिस ने अपनी सीमा के पार जाकर दूसरे के इलाके में अवैध तेल भंडार करने वाले गिरोह को दबोचा। इस कार्रवाई से एक साहब बेहद नाराज हैं। अब नाराज क्यों न हो, काम ही कुछ ऐसा हुआ था। कमिश्नरेट पुलिस ने पेट और सम्मान दोनों पर चोट जो कर दी थी। खबरी के मुताबिक कमिश्नरेट पुलिस ने छापेमारी की भनक स्थानीय पुलिस को नहीं लगने दी और वहां से आरोपितों को उठाकर ले आए। यह इसलिए किया गया, क्योंकि अंदेशा था कि वहां की थाना पुलिस तस्करों से मिली हुई है। वहीं इस कार्रवाई के बाद संदेश भी गलत चला गया कि वहां की पुलिस सो रही है और काम कमिश्नरेट पुलिस वाले कर रहे हैं। रही सही कसर दो दिन पहले शराब की बरामदगी ने पूरी कर दी। सुना है कि साहब का मूड बहुत खराब है और उनकी भुजाएं बदला लेने को फड़क रही हैं।


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