पिता का हाथ थाम पाकिस्तान से आया था 13 वर्षीय बच्चा, सब्जी-गन्ने बेचकर परिवार का भरा पेट और IAS बन पाया मुकाम
माता-पिता का हाथ थामकर चाचा-चाली व भाइयों के साथ 13 साल की उम्र में यशपाल सेठी ने बंंटवारे के समय पाकिस्तान छोड़कर भारत सीमा में अमृतसर में प्रवेश किया था। सब्जी व गन्ना बेचकर परिवार का संबल बने और शिक्षा को आधार बना आइएएस बनकर मुकाम हासिल किया।
कानपुर, [अनुराग मिश्र]। 13 साल का बच्चा, हाथ में कपड़ों की गठरी बस माता-पिता, दादा-दादी, चाचा और तीन भाइयों के साथ सहमा चला आ रहा था। भारत की सीमा में अमृतसर के रास्ते प्रवेश किया तो कुछ दूर जाकर टेंट लगे थे और उनमें बस किसी तरह सिर छिपाने की जगह मिल गई। न किसी के हाथ में पैसे थे और न ही कोई आसरा। सब्जी-गन्ने बेचकर परिवार का पेट भरा और विषम परिस्थितियों से संघर्ष करके भारतीय प्रशासनिक सेवा (आइएएस) तक का मुकाम तय कर देश की सेवा की।
ये हैं 88 वर्षीय यशपाल सेठी Former IAS Yashpal Sethi जिन्होंने अपनी विशिष्ट पहचान बनाने के साथ ही बेटी को स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ और बेटे को सफल बिजनेसमैन बनाया। आज भी वह बंटवारे के उस दंश को याद करके सिहर उठते हैं और आंखों में आंसू छलछला आते हैं।
पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के जिला गुजरात के कस्बा जलालपुर जट्टा के मूल निवासी व वर्तमान में कानपुर के पांडु नगर में रहने वाले सेवानिवृत्त आइएएस अधिकारी 88 वर्षीय यशपाल सेठी बताते हैं कि वर्ष 1947 के बंटवारे का उनके परिवार में बहुत दंश झेला। उसका दर्द आज भी बहुत सालता है।
वह बताते हैं कि बंटवारे के बाद पिता सरदारी लाल, मां रामलभाई, दादा मेलाराम और दादी वीरावाली सेठी के साथ चाचा गुलजारीलाल व भाई बलराज, ब्रजमोहन व शिवमोहन के साथ भारत आए थे। यहां न घर था न कोई ठिकाना। अमृतसर पहुंचे तो वहां शरणार्थियों के लिए कैंप लगे थे।
वहां बस किसी तरह जाकर सबने जगह पाई। अब संकट भरण-पोषण का था। ऐसे में परिवार में किसी ने सब्जी बेची तो किसी ने गन्ने। करीब पांच महीने तक वहां रहे। इसी बीच पंजाब से उत्तर प्रदेश आकर बसे रिश्तेदार फेरूमल पिता सरदारी लाल को अमृतसर में मिले।
वह अपने किसी रिश्तेदार को ढूंढ़ते हुए पहुंचे थे। उनसे बात हुई तो वह अपने साथ औरैया ले आए। यहां पिता ने जनरल मर्चेंटडाइज का कारोबार शुरू किया। वर्ष 1950 में उन्होंने (यशपाल सेठी) ने एंग्लो वर्नाकुलम (एवी) हाईस्कूल में पढ़ाई शुरू की।
किस्मत थी कि हाईस्कूल करते-करते विद्यालय इंटरमीडिएट हो गया जिससे वहां पढ़ाई हुई। हालांकि पाकिस्तान में उर्दू और यहां हिंदी में पढ़ाई थोड़ा मुश्किल थी लेकिन चुनौती के तौर पर लेकर पढ़ाई की। इसके बाद इलाहाबाद विश्वविद्यालय से अंग्रेजी, दर्शन शास्त्र व राजनीति शास्त्र से स्नातक किया और गोल्ड मेडल भी पाया।
अंग्रेजी से एमए करने के बाद आगरा के बिचपुरी में बीआर कालेज में लेक्चरर हो गए। इसके बाद नौकरी छोड़कर व्यापार कर (अब वाणिज्य कर) विभाग में नौकरी की। वर्ष 1961 में उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग में उत्तर प्रदेश में टाप किया।
वर्ष 1975 में प्रतिनियुक्ति पर दिल्ली गए तो वहां तीस हजारी कोर्ट में ज्यूडीशियल मजिस्ट्रेट के तौर पर काम किया। इसके बाद दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) में बतौर उप सचिव करीब ढाई वर्ष तक काम किया। वह बताते हैं कि वरिष्ठ अधिकारी जगमोहन (जम्मू कश्मीर के पूर्व लेफ्टिनेंट गवर्नर) के निर्देशन में पंजाब के अधिकारी सुरेन्द्र मोहन दुआ के साथ मिलकर करीब डेढ़ लाख झुग्गी-झोपडिय़ां हटवाई थीं।
वर्ष 1981 में आइएएस की प्रोन्नति मिली तो जिलाधिकारी जौनपुर, उपाध्यक्ष कानपुर विकास प्राधिकरण, अपर श्रमायुक्त्, अपर आयुक्त उद्योग का जिम्मा संभाला। वर्ष 1992 में सेवानिवृत्ति के बाद सात वर्ष तक श्रम न्यायाधिकरण कानपुर में बतौर प्रीसाइडिंग आफिसर सेवा दी।
उनके पुत्र पंकज सेठी आइआइटी कानपुर से पढ़ाई पूरी कर अमेरिका में परास्नातक की पढ़ाई पूरी कर लौटे और हैदराबाद में फैक्ट्री चला रहे हैं। उनकी बेटी डा. रितु बुधवार स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ हैं जबकि दामाद डा. लव बुधवार हृदय रोग विशेषज्ञ हैं।
उनके भाई बलराज भारतीय जीवन बीमा निगम से सेवानिवृत्त अधिशासी निदेशक हैं जबकि ब्रजमोहन सेठी हिंदू कालेज मुरादाबाद में केमिस्ट्री विभाग के अध्यक्ष थे। एक भाई शिवमोहन आज भी औरैया में अपना बिजनेस संचालित कर रहे हैं।
वरदान साबित हुए वो पांच हजार रुपये
वह बताते हैं कि पाकिस्तान में किराने का होलसेल, फूडग्रेंस और सिगरेट एजेंसी का काम करने वाले पिता के पास यहां कारोबार शुरू करने के लिए एक रुपया नहीं था। उन्होंने पहले कभी पाकिस्तान के पंजाब नेशनल बैंक में पांच हजार रुपये जमा किए थे जो यहां आकर निकाले। वह उस व1त हमारे परिवार के लिए बहुत बड़ी रकम थी और उसी के जरिए पिता ने जनरल मर्चेंटडाइज का कारोबार खड़ा किया और परिवार को समृद्ध बनाया।
पाकिस्तान का घर अब बन गया मस्जिद
यशपाल सेठी Former IAS Yashpal Sethi बताते हैं कि पाकिस्तान स्थित घर को अब मक्का मदनी मस्जिद बना दिया गया है। अपने निर्यातक बहनोई के परिचित पाकिस्तान निवासी अब्बासी के पास छह साल पहले ही भाई बलराज के साथ गए थे। वहां उनके मकान को अब मस्जिद बना दिया गया है। उन्होंने बताया कि उनके मित्र शिवपाल मस्जिद को 10 हजार रुपये की मदद भी देकर आए थे।