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रामलला मंदिर की रामलीला है खास, चौपाइयों में होता संवाद और मुस्लिम परिवार की गूंजती है शहनाई

कानपुर के कल्याणपुर के रावतपुर गांव स्थित रामललाल मंदिर में होने वाली रामलीला का इतिहास डेढ़ सौ साल से भी ज्यादा पुराना है। यहां पर पांच पीढ़ी से मुस्लिम परिवार शहनाई से रामलला की सेवा करते आ रहे हैं। यहां रामलीला में चौपाईयों में संवाद होता है।

By Abhishek AgnihotriEdited By: Published: Fri, 15 Oct 2021 11:44 AM (IST)Updated: Fri, 15 Oct 2021 11:44 AM (IST)
रामलला मंदिर की रामलीला है खास, चौपाइयों में होता संवाद और मुस्लिम परिवार की गूंजती है शहनाई
कानपुर के रावतपुर गांव में रामलला मंदिर में एतिहासिक रामलीला होती है।

कानपुर, जेएनएन। उत्तर भारत में गोस्वामी तुलसीदास महाराज जी द्वारा रचित रामचरित्र मानस के आधार पर शहर में जगह-जगह रामलीला का आयोजन पिछले कई वर्षों से किया जा रहा है। जन-जन को प्रभु श्रीराम के महत्व से परिचित कराने और समाज को जीवंत त्रेतायुग दिखाने के लिए प्रतिवर्ष रामजन्म से लेकर रावण दहन तक की लीलाओं का मंचन किया जाता है। समाज को सामाजिक सौहार्द का संदेश देने और जन-जन को भगवान राम के महत्व से परिचित कराने के लिए रावतपुर गांव स्थित श्रीरामलीला जी महाराज रामलीला समिति रामलीला का आयोजन किया जाता है। जहां पर लीला के मंडलाध्यक्ष की चौपाईयों के साथ मुस्लिम परिवार की मंगलगीतों पर शहनाई वातावरण में सौहार्द के रंग घोलती है। लीला में प्रभु की मार्मिक व युद्ध लीला का मंचन श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकर्षित करता है।

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डेढ़ सौ साल पुराना है इतिहास

जिस प्रकार रावतपुर गांव स्थित श्रीरामलला मंदिर का इतिहास लगभग 150 वर्ष से भी अधिक पुराना है। उसी प्रकार यहां पर होने वाली रामलीला का मंचन भी ऐतिहासिक है। मंदिर प्रांगड़ में होने वाली रामलीला की शुरुआत देव आमंत्रण से होती है। रामलीला समिति के पदाधिकारी रामलला जी का आमंत्रण लेकर ग्राम देवी देवता सहित रावतपुर गांव की परिक्रमा करते हैं। लगभग 31 मंदिरों में पान, सुपाड़ी, ध्वजा चढ़ाकर पूजन करके रामलला जी का आमंत्रण देते हैं। इसके बाद ही महोत्सव में रामलीला की शुरुआत होती है। समिति पदाधिकारियों के मुताबिक शुरुआती दिनों में रामलीला पुरानी रामशाला में होती थी। जिसमें समय-समय पर परिर्वतन होता गया और मंदिर परिसर में इसका आयोजन किया जाने लगा। आयोजन से पहले ग्राम देवता शन्नेश्वर बाबा, ग्राम देवी पाथा माई एवं रामलला जी के आराध्य देव भूतेश्वर बाबा के पूजन के साथ रामलीला की शुरुआत होती है।

मुस्लिम परिवार की शहनाई गूंजती रामलला के दर पर

मंदिर में होने वाले हर शुभ कार्य में शहनाई का वादन वर्षों से मुस्लिम परिवार करता आ रहा है। वर्तमान में पिता कल्लू खां के साथ शानू खां रामलीला में शहनाई का वादन कर समाज को सौहार्द का संदेश देते हैं। पांच पीढ़ी से उनका परिवार मंदिर की सेवा में लगा रहता है। शानू खां ने बताया कि रहमानी खां, नत्थू खां, छिद्दन खां के बाद वर्तमान में कल्लू खां पीढिय़ों से चली आ रही परंपरा को निभा रहे हैं। उनके परिवार के शकील खां, समीर, कमरुख खां सहित अन्य सदस्य भी रामधुन व प्रभु की लीला को भक्तों के बीच शहनाई के जरिए पहुंचाते हैं। प्रतिदिन रामलीला में उनके शहनाई वादन का सुनने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं। मंदिर में फाग व भगवान की शोभायात्रा में भी परिवार सौहार्द के रंग घोलता है।

शोभायात्रा और शस्त्र पूजन

कोरोना काल से पहले मंदिर परिसर में प्रतिवर्ष श्रीरामलीला महोत्सव के दौरान रामकथा के साथ प्रभु की शोभायात्रा और शस्त्र पूजन का आयोजन भक्तों के बीच आकर्षण का केंद्र बना रहता है। रामलीला में दशहरा शोभायात्रा की झांकी व ढोल नगाड़ों की धुन से वातावरण राममय हो जाता है। मंदिर में वर्षों से रामलीला के सुप्रसिद्ध कलाकारों द्वारा मंचन और दंगल तथा देशभक्ति कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। शस्त्र पूजन में सैकड़ों की संख्या में भक्त पहुंचते हैं। पगड़ी बांधे प्रभु के भक्त जयकारों के बीच जब गुजरते हैं तो पूरा रावतपुर गांव रामयम हो जाता है। शोभायात्रा में भगवान की पालकी व छत्र भक्तों के आकर्षण का प्रमुख केंद्र रहते हैं।

युवाओं को संस्कृति से जोड़ती, समाज को देती एकता और अखंडता का संदेश

रामलला मंदिर में होने वाली रामलीला में किसी भी प्रकार का नृत्य व फिल्मी गीतों पर मंचन का आयोजन नहीं होता है। मंदिर परिसर में होने वाली रामलीला तुलसीदास कृत रामचरित्र मानस की चौपाईयों के आधार पर होती है। मंचन कर रहे कलाकार चौपाईयों से भगवान की लीला करते हैं। कमेटी के मंडलाध्यक्ष पंडित प्रेम शंकर उसका विवरण श्रद्धालुओं को बताते हैं। यहां की लीला को देखने के लिए समाज का हर वर्ग सैकड़ों की संख्या में पहुंचता है। जो युवाओं को संस्कृति से परिचित कराने के साथ-साथ समाज को एकता और अखंडता का संदेश देती है। रामलीला के माध्यम से समिति जन-जन में राम चरित्र को निहितार्थ करने के लिए प्रयासरत है।

जानिए- क्या कहते हैं रामीलीला से जुड़े लोग

-समाज का हर वर्ग रामलला के दरबार में होने वाली रामलीला में परिवार के साथ आता है। यहां पर भगवान के संवाद व लीलाएं देखकर भक्त राममय हो जाते हैं। बच्चों को संस्कारवान बनाने में यहां की रामलीला मददगार साबित होती है। -रोहित चंदेल, समिति महामंत्री।

-जन-जन के बीच भगवान के राम के महत्व को पहुंचाने के लिए रामलीला आयोजित की जाती है। भक्त यहां पर बाल कलाकारों की लीलाएं देखकर मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। -राकेश वर्मा, संरक्षक।

-बच्चों के साथ बुजुर्ग व महिलाएं परंपरागत रूप से होने वाली रामलीला का मंचन देखने आते हैं। भक्त रामलला भगवान के दरबार में प्रभु की मनोहारी लीलाओं से शिक्षा व संस्कार का विकास करते हैं। -पवन अवस्थी, सह संयोजक।

-रामलीला के आयोजन में भगवान के मंगलगीत से वातावरण भक्तिमय हो जाता है। श्रद्धालुओं को त्रेतायुग और भगवान श्रीराम के महत्व से परिचित कराने के लिए रामलीला का आयोजन किया गया है। रामलाल मंदिर की रामलीला श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र रहती है। -राहुल चंदेल, आयोजक सदस्य।


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