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Kanpur Railway Station History: जानिए 1885 में पुराना कानपुर रेलवे स्टेशन शुरू होने के बाद ट्रेनों के माध्यम से किस तरह से व्यापार बढ़ा

रूई कपास तिलहन किराना सूती और ऊनी माल शक्कर व चमड़े के व्यापार का प्रमुख स्रोत भी यही नहर थी। वर्ष 1885 में पुराना कानपुर रेलवे स्टेशन शुरू होने के बाद ट्रेनों के माध्यम से व्यापार तेजी से बढ़ा और नहर मार्ग पर निर्भरता न के बराबर हो गई

By Akash DwivediEdited By: Published: Tue, 15 Dec 2020 12:35 PM (IST)Updated: Tue, 15 Dec 2020 12:35 PM (IST)
Kanpur Railway Station History: जानिए 1885 में पुराना कानपुर रेलवे स्टेशन शुरू होने के बाद ट्रेनों के माध्यम से किस तरह से व्यापार बढ़ा
व्यापार तेजी से बढ़ा और नहर मार्ग पर निर्भरता न के बराबर हो गई

कानपुर, जेएनएन। पुराना कानपुर रेलवे स्टेशन से ट्रेनों का संचालन बढ़ा तो शहर की जरूरत को पूरा करने के लिए कच्चा माल भी बड़ी संख्या में आने लगा। इसके साथ ही कारखानों में तैयार माल को बाहर भेजने के लिए अलग जगह की भी जरूरत थी। इसे देखते हुए जूही से कलक्टरगंज तक बहने वाली नहर को पाटकर जूही मालगोदाम बनाया गया। जूही, कलक्टरगंज से होकर कभी नहर बहा करती थी। शहर की जरूरत के साथ यहां से बाहर माल भेजने के लिए छोटी नावों का प्रयोग किया जाता था। रूई, कपास, तिलहन, किराना, सूती और ऊनी माल, शक्कर व चमड़े के व्यापार का प्रमुख स्रोत भी यही नहर थी। वर्ष 1885 में पुराना कानपुर रेलवे स्टेशन शुरू होने के बाद ट्रेनों के माध्यम से व्यापार तेजी से बढ़ा और नहर मार्ग पर निर्भरता न के बराबर हो गई। 

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देश के दूसरे हिस्सों में भेजने के लिए एक ऐसे स्थान की जरूरत थी

शहर में कल कारखाने की संख्या भी एक के बाद एक बढ़ रही थी। इन कारखानों को कोयला और कच्चा माल पहुंचाने और यहां तैयार माल को देश के दूसरे हिस्सों में भेजने के लिए एक ऐसे स्थान की जरूरत थी जहां बड़ी संख्या में माल का भंडारण, रख रखाव और आवागमन किया जा सके। स्थान भी ऐसा हो जो रेलवे स्टेशन के पास हो और यात्री गाड़ी भी प्रभावित न हो। इसे देखते हुए 1907 में जूही के पास स्थान चिह्नित किया गया, जिसके बाद यहां नहर को पाटकर मालगोदाम बनाया गया। मिलों तक सीधे कोयला, कच्चा माल पहुंचाने और तैयार माल लाने ले जाने के लिए टाटमिल, कोपरगंज समेत विभिन्न स्थानों तक रेल पटरिया भी बिछाई गईं, जिनके चिह्न आज भी शहर की सड़कों पर मौजूद हैं।


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