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Kanpur Naptol Ke Column: बड़े बेआबरू होकर तेरे.., चाचा की मीटिंग में चाची का रुतबा

कानपुर शहर में व्यापारिक संगठनों की कई गतिविधियां चर्चा का विषय तो बनती हैं लेकिन लोगों तक नहीं पहुंचती हैं। इस बार नापतौल के कॉलम में कुछ व्यापारिक संगठन और नेताओं की गतिविधियों को लाया गया है ।

By Abhishek AgnihotriEdited By: Published: Thu, 25 Feb 2021 12:57 PM (IST)Updated: Thu, 25 Feb 2021 12:57 PM (IST)
Kanpur Naptol Ke Column: बड़े बेआबरू होकर तेरे.., चाचा की मीटिंग में चाची का रुतबा
कानपुर शहर का बाजार है नापतोल के कॉलम।

कानपुर, जेएनएन। शहर व्यापारिक गतिविधियों के लिए पहचाना जाता है और व्यापारिक संगठनों की गतिविधियां भी तेज रहती हैं। इनके बीच कई चर्चाएं ऐसी रहती हैं, जो लोगों तक नहीं पहुंचती है। ऐसी चर्चाओं को चुटीले अंदाज में सामने लाता है नापतौल के कॉलम।

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चाचा की मीटिंग में चाची का रुतबा

संगठन की हालत सुधारने के लिए पिछले दिनों चाचा ने घर पर भतीजों की बैठक बुलाई। समय से डेढ़ दो दर्जन लोग पहुंच गए। चर्चा शुरू तो अच्छे माहौल में हुई लेकिन कुछ देर बाद माहौल गर्म होने लगा। बैठक में मौजूद व्यापार मंडल के त्रिदेव ने एक पदाधिकारी को घेर लिया। हर तरफ से हमला शुरू हो गया। सभी के आरोप थे कि उनकी उपेक्षा हो रही है। कुछ देर वह सफाई देते रहे। बात आगे बढ़ी तो आवाजें तेज होने लगीं। चाचा और संगठन के पदाधिकारियों ने समझाने का प्रयास किया लेकिन कोई रुकने को तैयार नहीं था। जब कुछ नहीं हुआ तो चाची खुद निकल कर बाहर आ गईं। चाचा के सामने शांत होने का नाम नहीं ले रहे भतीजे चाची का चेहरा देखते ही सन्नाटे में आ गए। सन्नाटा होते ही चाची वापस अंदर चली गईं और तड़ापड़ बैठक खत्म कर सभी अपने घर चल दिए।

बड़े बेआबरू होकर तेरे...

किसी भी लड़ाई की अपनी एक मर्यादा होती है और इस मर्यादा की उम्मीद उन लोगों से तो की ही जाती है जो संगठनों में ऊंचे पदों पर होते हैं। उम्मीद इसलिए भी होती है क्योंकि उन्हें अपने से छोटों को वहीं मर्यादा सिखानी होती है जो परंपरा के साथ आगे बढ़ती है। व्यापार मंडलों की परंपरा में भी नेताओं में आपसी विवाद चाहे कितने हों लेकिन किसी दूसरे संगठन का कार्यक्रम खराब नहीं करते लेकिन पिछले दिनों एक संगठन के अध्यक्ष ने ये परंपरा त्याग दी। शहर में एक आंदोलन की तैयारी के लिए लोगों को एकजुट किया जा रहा था। वाट््सएप ग्रुप बनाकर आंदोलन की रूपरेखा तैयार हो रही थी। इस बीच अध्यक्ष एक एडमिन के जरिए इस ग्रुप में जुड़े और जुड़ते ही उन्होंने आंदोलन के विरोध में अपने संगठन के विचार पोस्ट कर दिए। पांच मिनट भी नहीं हुए उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया गया।

काहे की कमेटी जब चुनाव ही नहीं

पिछले दिनों एक व्यापार मंडल का चुनाव हुआ। पिछली कमेटी जब भंग हुई तो यही कहा गया कि व्यापार मंडल की कमेटी निष्क्रिय हो चुकी है और पदाधिकारी कोई काम नहीं कर रहे हैं, इसलिए अब उसे खत्म कर नई कमेटी बनाई जाएगी। संगठन के संरक्षक की तरफ से ऐसी बात कहे जाने के बाद बाजार के तमाम कारोबारी बहुत खुश थे, खासतौर पर वे जो नई कमेटी में पद पाने के लिए चुनाव लडऩे को उतावले थे।

पहले एक सप्ताह बाद चुनाव अधिकारी की घोषणा की बात कही गई। इसके बाद चुनाव अधिकारी घोषित हुए तो लोगों को लगा कि शायद अब नई कमेटी के लिए चुनाव की तारीख घोषित होंगी लेकिन बड़े पदाधिकारियों ने आपस में बैठकर नई कमेटी की घोषणा कर दी। अब जो चुनाव लडऩे के इच्छुक थे, वे देखते रह गए। निराश व्यापारी कह रहे हैं कि काहे की कमेटी जब चुनाव ही नहीं हुआ।

साहब न हटे तो बदल ली राह

यह वाट्सएप ग्रुप भी बहुत अजीब चीज है। कभी ये इज्जत बढ़ाता है तो कभी बेइज्जती भी करा देता है और बेइज्जती भी ऐसी कि किसी के सामने उसके बारे में कुछ कहा भी नहीं जा सकता। कुछ ऐसा ही कारोबारियों से जुड़े एक ग्रुप में हुआ। ग्रुप में सभी अपनी समस्याएं बताते रहते थे और अधिकारी महोदय उनका हल कराते रहते थे। इस समूह से अधिकारी को भी लाभ मिल रहा था और कारोबारियों को भी।

अधिकारी को जहां कारोबारियों की समस्याएं पता चल रही थीं, वहीं कारोबारियों को अपनी समस्या रखने के लिए एक आसान मंच मिल गया था। कुछ समय पहले अधिकारी का प्रोन्नति के साथ तबादला हो गया। सामान्य तौर पर ऐसी स्थितियों में कोई भी होता है तो ग्रुप को छोड़ देता है मगर यहां ऐसा ना हुआ। अफसर को खुद बाहर न होते देख नए अफसर ने अब एक दूसरा वाट्सएप ग्रुप बना लिया।


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