Naptol column Kanpur News: ये मुलाकात तो एक बहाना है..., ना-ना करते बन गए अफसर
कानपुर के बाजार में हमेशा गतिविधियां तेज रहती हैं। नापतौल के माध्यम से बाजार में चर्चा का विषय रहने वाले वाकयों को लोगों तक पहुंचाने का प्रयास रहता है। मकर संक्रांति पर खिचड़ी वितरण पर राजनीति की खासा चर्चा रही।
कानपुर, [राजीव सक्सेना]। कानपुर हमेशा से व्यापारिक गतिविधियों का केंद्र रहा है और यहां हलचल भी कहीं अधिक रहती है। कानपुर बाजार में अक्सर कुछ बातें चर्चा का विषय तो बनती हैं लेकिन सुर्खियां बनने से रह जाती हैं। ऐसे ही चर्चाओं को लोगों तक पहुंचाता है नापतौल कॉलम...।
तहरी पर भी राजनीति
मकर संक्रांति के आसपास तहरी हो या खिचड़ी वितरण, सब मेल मिलाप का ही एक जरिया माना जाता है। शहर में तो वैसे भी पूरे वर्ष कहीं न कहीं भंडारा होते नजर आ ही जाता है, लेकिन मकर संक्रांति के आसपास तो एक ही सड़क पर दो से तीन तहरी, खिचड़ी वितरण के कार्यक्रम होते नजर आ जाते हैं। इसी मेल मिलाप को बढ़ावा देने के लिए एक्सप्रेस रोड पर पिछले दिनों व्यापारियों ने तहरी वितरण का कार्यक्रम आयोजित किया। व्यापार मंडल पदाधिकारियों ने सभी को बुलाने की योजना भी बनाई थी, बस गलती यह हो गई कि अपने संरक्षक के जरिए आमंत्रण भिजवा दिए गए। संरक्षक महोदय की अपने मूल संगठन में काफी खींचतान चल रही है। उन्होंने आमंत्रण भेजा तो इसका असर तो तहरी वितरण पर दिखना था। बड़े नेताओं में कोई नहीं आया और संरक्षक महोदय के अपने करीबी ही इस कार्यक्रम की शोभा बढ़ा रहे थे।
ना-ना करते बन गए अफसर
वह वर्षों से कर्मचारी यूनियन की राजनीति कर रहे हैं। राजनीति करते-करते रिटायरमेंट की आयु आ गई। पूरा जीवन कानपुर में काट लिया। इसी बीच कर्मचारी से अधिकारी बनाने की वरिष्ठता सूची बनी तो उनका भी नाम आ गया। भाई चाहते थे कि अफसर बनें, लेकिन मार्च के बाद। इसके पीछे भी उनकी सोच काम कर रही थी। अगर वह अभी अफसर बन जाते तो तीन वर्ष से कुछ ज्यादा सर्विस बची होने की वजह से उन्हें कानपुर के बाहर भेजा जा सकता था। तीन वर्ष से कम समय बचता तो वह अफसर बनने के बाद भी कानपुर में अंतिम पोस्टिंग मांग लेते, लेकिन उनसे एक चूक हो गई। अपनी आपत्ति लगाने में वह एक दिन पीछे रह गए और समय गुजर गया। विभाग ने आपत्ति रद करते हुए उन्हें अफसर बना दिया। अब भाई यह जुगाड़ लगा रहे हैं कि कानपुर से ज्यादा दूर उनका तबादला न किया जाए।
सबको साधने की जुगत
शिवाला में पिछले दिनों एक शोरूम का उद्घाटन हुआ। शोरूम सजाया गया और तमाम करीबी व्यापारियों को भी बुलाया गया। दिनभर उद्घाटन का कार्यक्रम चलता रहा। कई व्यापारी भी आए और व्यापारी नेता भी। अगले दिन बाजार में यह बात उठनी शुरू हो गई कि उद्घाटन कार्यक्रम में सभी व्यापारिक संगठनों के बड़े पदाधिकारी पहुंचे थे। होते-होते बात अलग-अलग संगठनों के उन पदाधिकारियों के कानों में भी पहुंची जो कार्यक्रम में पहुंचे थे। व्यापारी नेताओं में आपस में बात तो होती ही है, इसलिए सबने एक दूसरे से इसे पुख्ता भी किया। बात हुई तो पोल भी खुली कि सबको क्यों बुलाया गया। कारोबारी के कुछ ऐसे काम पुलिस और प्रशासन में फंसे हैं। कोई तो यह काम करा सकेगा, इसलिए उन्होंने सभी संगठनों के नेताओं को बुला लिया और सभी के कान में यह बात डाल दी कि भइया आज तो उद्घाटन है, लेकिन यह कार्य आपको कराना है।
ये मुलाकात एक बहाना है
यूं तो अलग-अलग संगठन में होने के बाद भी तमाम कारोबारियों की मुलाकात होती है, लेकिन दो नेताओं की मुलाकातों पर व्यापारियों और व्यापार मंडल नेताओं की कुछ खास ही नजर रहती है। आजकल इनकी मुलाकात कुछ ज्यादा होने लगी है। नए वर्ष पर हर दो-तीन दिन में मुलाकात होने लगी है। पहले एक किसी कार्यक्रम में आता था और मुलाकात कर निकल जाता था। फिर दूसरा आता था। कुछ कार्यक्रमों में दोनों एक समय में पहुंचे और मुलाकात काफी देर तक अकेले में हुई। अब नए हालात में दोनों में जो पहले पहुंचता है, वह दूसरे को फोन कर पूछ लेता है कितनी देर में आ रहे हो। अगर जल्दी आ रहा होता है तो इंतजार कर लिया जाता है, वरना बाद में मिलने की बात हो जाती है। कारोबारी मान रहे हैं कि कुछ नई खिचड़ी पक रही है, लेकिन यह कब तक पकेगी, यह समय ही बताएगा।