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Kanpur Naaptol Ke Column: तू डाल-डाल मैं पात-पात.., सहालग का खाना, बना बहाना

कानपुर शहर में विधानसभा चुनाव आते ही व्यापारिक संगठनों की राजनीति ने भी तेजी पकड़ ली है ऐसे ही चर्चाओं को बाजार है नापतोल के कालम । व्यापारियों की राजनीति आम राजनीति से अलग नहीं होती है ।

By Abhishek AgnihotriEdited By: Published: Thu, 02 Dec 2021 11:58 AM (IST)Updated: Thu, 02 Dec 2021 05:35 PM (IST)
Kanpur Naaptol Ke Column: तू डाल-डाल मैं पात-पात.., सहालग का खाना, बना बहाना
कानपुर नापतोल के कालम में बाजार की राजनीतिक सरगर्मी।

कानपुर, [राजीव सक्सेना]। चुनाव आते ही राजनीतिक गतिविधियों के साथ ही व्यापारी संगठनों की सक्रियता भी बढ़ गई है। शहर के व्यापारी नेताओं ने भी हलचल बढ़ा दी है और चर्चाओं का भी बाजार गर्म होने लगा है। इस सप्ताह नापतोल के कालम ऐसी चर्चाओं को लेकर फिर आया है, कहीं व्यापार मंडल के कार्यक्रम में माननीय मुख्य अतिथि बन रहे हैं तो कहीं व्यापारी नेता विधानसभा चुनाव में टिकट के लिए दावेदारी ठोक रहे हैं।

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सहालग का खाना, बना बहाना

बहाने अक्सर कमियां छिपाने के लिए बनाए जाते हैं। पिछले दिनों व्यापार मंडल का एक कार्यक्रम था। स्वभाव से कड़क माने जाने वाले माननीय मुख्य अतिथि थे। पहले ही तय हो गया कि आने के एक घंटे के अंदर चले जाएंगे। सुबह साढ़े दस बजे कार्यक्रम शुरू होना था। तय समय पर सभागार में अंगुलियों पर गिने जाने लायक लोग थे। मुख्य अतिथि को मजबूरी बताई गई कि बहुत सुबह कार्यक्रम होने से व्यापारियों को लाने में दिक्कत है, लेकिन सभागार में मौजूद लोगों से मजाकिया अंदाज में बहाना बनाया गया कि आजकल सहालग ज्यादा है। व्यापारी पार्टियों में खाना खाकर देर से सो रहे हैं, इसलिए देर से उठ रहे हैं। आखिर, एक घंटे बाद कार्यक्रम तब शुरू हो सका, जब मुख्य अतिथि के जाने का समय था। अ'छा यह था कि तब तक सभागार भर गया था और मुख्य अतिथि इस भीड़ को देख डेढ़ घंटा रुके रहे।

तू डाल-डाल, मैं पात-पात

व्यापारियों की राजनीति आम राजनीति से अलग नहीं होती। सामने जो भी प्रतिद्वंद्वी होता है, वह हर समय काट के प्रयास में लगा रहता है। आर्यनगर विधानसभा सीट से एक ही व्यापारी संगठन के तीन नेता टिकट के दावेदार हैं। पद के हिसाब से दावेदारी में लगे सबसे छोटे नेता संचालन कर रहे थे। जिस पार्टी से टिकट मांग रहे हैं, उनके बड़े नेता को मंच पर आने में समय था। संचालक ने ऐसे में अपने सबसे बड़े नेता को भाषण देने बुला लिया। बड़े नेता ने भांप लिया कि संचालक ने पार्टी के नेता के सामने उनका पत्ता काटने का प्रयास किया है। उन्होंने भी तुरंत संगठन के तीसरे नेता को भाषण देने के लिए कह दिया। अपने से बड़े नेता की बात को वह काट नहीं सके और भाषण देकर चुपचाप बैठ गए। कुछ देर बाद पार्टी के नेता पहुंचे तो बड़े नेता ने खुद माइक संभाल लिया।

इनकी दुकान चलेगी, तभी हमारी भी

शहर में एक बड़ा व्यापारिक कार्यक्रम हुआ। प्रदेश के तमाम हिस्सों से आए व्यापारी इस सम्मेलन में जुटे। सम्मेलन का संचालन भी शहर के एक बड़े व्यापारी नेता कर रहे थे, लेकिन उनके संचालन का तरीका बिल्कुल नया नवेला था। वह सम्मेलन में आए हुए व्यापारियों का स्वागत तो कर ही रहे थे, साथ ही उनके प्रतिष्ठान का नाम और उसमें क्या बिकता है, यह भी बता रहे थे। साथ ही सम्मेलन में मौजूद व्यापारियों को भी यह कहकर प्रेरित कर रहे थे कि अब जब भी उन्हें जरूरत हो तो उनकी दुकान पर जाकर ही खरीदारी करें। कुछ व्यापारियों के लिए तो उन्होंने यहां तक कह दिया कि यदि जरूरत होगी तो उनकी दुकान रात में भी खोलकर सामान मिल जाएगा। आखिर उन्होंने अपने इस तरह के प्रचार को भी खुद ही माइक पर खोल दिया और बोले कि जब इनकी दुकानें चलेंगी तभी तो हमारी दुकान भी चलेगी।

अब आ रहा असली आनंद

समय सभी का आता है, यह बिल्कुल सही है और अब इसी का आनंद कुछ व्यापारी नेता ले रहे हैं। व्यापार से जुड़े सरकारी विभागों के जो अधिकारी उनकी बात टाल देते थे, आजकल उनकी बातों पर पूरा ध्यान दे रहे हैं। साफ भी है, ध्यान न देने पर कार्रवाई तक हो सकती है। बदलाव यूं नहीं आया। बदलाव आया है, संगठन बदलने से। पहले जिस संगठन में थे, उसकी ऊपर इतनी हनक नहीं थी। इसके चलते जब भी अपनी बात कहते थे तो उसे इतनी तवज्जो नहीं मिलती थी। अब कुछ माह पहले इन नेताओं ने संगठन बदल लिया। नए संगठन के मुखिया के पास व्यापारियों के कल्याण से जुड़ा दायित्व भी है तो अधिकारियों को प्रोटोकाल के तहत उनके आने पर जाना होता है। अब उन्होंने सर्किट हाउस में बैठक बुलाई तो विभाग के बड़े-बड़े अधिकारी पहुंचे और व्यापारियों ने जीभर के वहां अपने मन की बात कही।


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