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Kanpur Naaptol Column: ये एक्सप्रेस रोड वाले.., ढूंढ रहे हैं गूढ़ रहस्य

कानपुर के बाजार की हलचल को नापतोल कॉलम बताता है। व्यापारियों की राजनीति करने वाले नेता सड़क पर कभी सीधे नहीं चलते हैं। वहीं हाल ही में व्यापारियों के एक कार्यक्रम में शॉल खासा चर्चा का विषय बना रहा।

By Abhishek AgnihotriEdited By: Published: Thu, 28 Jan 2021 08:46 AM (IST)Updated: Thu, 28 Jan 2021 08:46 AM (IST)
Kanpur Naaptol Column: ये एक्सप्रेस रोड वाले.., ढूंढ रहे हैं गूढ़ रहस्य
कानपुर का नापतोल कॉलम बताएगा बाजार की चर्चाएं।

कानपुर, [राजीव सक्सेना]। कानपुर में बाजार की गतिविधियां काफी रहती हैं और तरह तरह की चर्चाओं का बाजार भी गर्म रहता है। ऐसी चर्चाओं को आप तक पहुंचाता है नापतोल कॉलम। इस सप्ताह की बाजार में वो चर्चाएं जो सुर्खियां नहीं बन पाईं।

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ये एक्सप्रेस रोड वाले

ये एक्सप्रेस रोड वाले व्यापारी नेता हैं। ऐसा नहीं है कि यहां राजनीति करने वाले हमेशा अपनी सड़क की तरह सीधे ही चलते हैं। जरूरत पडऩे पर वे दूसरे रास्ते भी निकाल लेते हैं और आगे बढ़ते हैं। पिछले दिनों कुछ ऐसा ही हुआ। हाल ही में एक राजनीतिक दल में शामिल हुए व्यापार मंडल के नेता पार्टी के फ्रंटल संगठन में पद के दावेदार भी थे। इसका प्रयास उन्हें पार्टी में लेकर गए नेताजी भी कर रहे थे। इस बीच शहर के ही एक दूसरे व्यापारी नेता अपने करीबी को उस फ्रंटल संगठन का कानपुर नगर का अध्यक्ष बनवा लाए। उनका स्वागत हुआ। एक्सप्रेस रोड पर भी रेड कारपेट बिछे। वहां के व्यापारी नेता ने इसे अपने लिए चुनौती के रूप में ले लिया। फिर से जोर लगाया गया और वे इसबार पूरे कानपुर मंडल के अध्यक्ष बन गए। अब नगर के अध्यक्ष भी उन्हें बधाई दे रहे हैं।

कार वाला शॉल

तालियों की गडग़ड़ाहट के बीच मुख्य अतिथि मंच पर पहुंचे तो स्वागत का सिलसिला शुरू हो गया। एक-एक कर मंच पर व्यापारी पहुंचने लगे। मुख्य अतिथि के गले में फूलों की मालाएं बढ़ीं तो उन्हें निकालकर एक तरफ रखा गया। इसके बाद शॉल से स्वागत होना था, लेकिन शॉल लेने गए पदाधिकारी लौटे ही नहीं। मंच के किनारे एक पदाधिकारी लगातार फोन पर उनकी लोकेशन ले रहे थे। 15-20 मिनट गुजर गए, लेकिन अगला माला नहीं आया। मुख्य अतिथि पुराने थे। समझ कि गए कुछ गड़बड़ है। मंच के किनारे खड़े पदाधिकारी की बात भी कान में पड़ गई। आयोजक धर्मसंकट में थे, क्या करें। ऐसे में मुख्य अतिथि ने दरियादिली दिखाई। उन्होंने आयोजकों से कहा, अन्यथा न लें तो उनकी कार में एक शॉल है, उसे मंगा लीजिए। स्वागत हो जाए तो आगे की बातें शुरू हों। इसके बाद उनकी कार से शॉल लाकर स्वागत की प्रक्रिया पूरी हुई।

ढूंढ रहे हैं गूढ़ रहस्य

इन दिनों एक व्यापार मंडल के दो पदाधिकारियों की गलबहियां सबको चिंतित किए हैं। ऐसा इसलिए भी है कि अक्सर व्यापार मंडल के पदाधिकारियों या सदस्यों से बात करने पर यही सुनाई पड़ता था कि भइया क्या कहें, बड़े नेताओं में आपस में नहीं पट रही है। जहां एक जाता है तो वहां दूसरा नहीं जाता। सब सोच रहे थे कि अब कम से कम इस कार्यकाल में तो दोनों फिर एक साथ नजर नहीं आएंगे, लेकिन पिछले सप्ताह जैसे सबकुछ बदल गया। एक स्वागत मंच पर वह दोनों ही साथ नहीं रहे, कई पदाधिकारी भी शामिल हुए। व्यापारी राजनीति के साथ वास्तविक राजनीति को करीब से जानने वाले भी इस गूढ़ रहस्य को अब सामने लाने के प्रयास में जुटे हैं। कहते हैं, एक वर्ष बाद विधानसभा चुनाव है। इस व्यापार मंडल के कई लोग टिकट के दावेदार हैं सो नेताजी के सामने एकजुट नजर आने का प्रयास किया।

बस मनमाफिक चेहरे की तलाश

एक अध्यक्ष जी हैं, नगर के नहीं प्रदेश स्तरीय संगठन के। कुछ वर्ष पहले तक ओवरलोड, अंडरलोड का खूब मुद्दा उठाया करते थे। अक्सर अपनी आवाज उठाने संगठन के पदाधिकारियों के साथ आरटीओ पहुंच जाते थे। केवल यहीं के नहीं, प्रदेश के कई जिलों के कई विभागों के अधिकारियों के नाम उन्हें जुबान पर रटे हुए थे कि कौन, कहां और क्या गड़बड़ कर रहा है। अक्सर इन मुद्दों को लेकर धरना, प्रदर्शन करते भी नजर आ जाते थे, लेकिन समय बदला तो अध्यक्ष जी के सुर भी बदल गए। अब न आरोपों की झड़ी न ही धरना, प्रदर्शन। करें भी तो कैसे धर्मसंकट है, लेकिन उनके इस धर्मसंकट से उनके संगठन के पदाधिकारी ही नाराज हैं। उनकी इस निष्क्रियता की वजह से ही कुछ समय पहले एक और संगठन बनकर खड़ा हो गया। बेबस अध्यक्ष जी पद छोडऩे की फिराक में हैं, बस किसी मनमाफिक चेहरे की तलाश है।


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