Kanpur Naaptol Ke Column: प्रांतीय स्तर के व्यापारी ने तय किया अधिवेशन...संगठन ने लगा दी लगाम
कानपुर शहर में बाजार की गतिविधियों के बीच व्यापरिक संगठनों के कार्यक्रम आयोजित होते हैं। आंदोलन में आगे न आने से कुछ व्यापारी नेताओं के बीच तल्खियां बढ़ रही हैं तो कुछ दिन पहले व्यापारियों ने प्रशासनिक बैठक का बहिष्कार कर दिया था।
कानपुर, [राजीव सक्सेना]। कानपुर शहर में व्यापारिक गतिविधियां खासा रहती हैं, कई व्यापारिक संगठन भी सक्रिय हैं। अाए दिन कारोबारियाें और व्यापारिक संगठनों के अलग अलग कार्यक्रमों का आयोजन होता है। इन सबके बीच कुछ ऐसी चर्चाएं भी रहती हैं, जो सुर्खियां बनने से रह जाती है, जिन्हें चुटीले अंदाज में आप तक पहुंचाता है हमारा, नापतोल के कॉलम...।
आपसी खींचतान में टला अधिवेशन
एक राजनीतिक दल के व्यापारियों की साइकिल आजकल ठीक से नहीं चल रही। एक पहिया एक तरफ भाग रहा है तो दूसरा दूसरी तरफ। इससे संगठन का भी हाल बुरा है। पहले पदों को लेकर खींचतान मची हुई थी। एक दूसरे को नीचा दिखाने की होड़ भी चल रही थी। यह होड़ खत्म हुई तो एक दूसरे की काट शुरू हो गई। प्रांतीय स्तर के एक पदाधिकारी ने मंडल स्तर का अधिवेशन खुद तय कर लिया। होली से पहले अधिवेशन होना था। नेताजी खुद को और अपनी टीम को हाईलाइट करना चाहते थे। मंडल अध्यक्ष को यह बर्दाश्त नहीं हुआ तो उन्होंने और ऊपर जाकर शिकायत कर दी। अब नेताजी से और ऊपर के नेताजी नाराज हो गए। मंडल अध्यक्ष को पूरी तरह विश्वास में लिए बिना आयोजित किए जा रहे अधिवेशन पर वहीं लगाम लगा दी गई। अब व्यापारी नेताओं में बातचीत बंद है और मुंह फुलाए बैठे हैं।
नेताजी के निष्कासन पर चाचा का वीटो
दो नावों की सवारी अक्सर भारी पड़ जाती है। आजकल लकदक सफेद कपड़ों में रहने वाले एक व्यापारी नेता भी दो नावों में सवार नजर आ रहे हैं। कहां उनका हवा में उड़ता कपड़े का व्यापार और कहां भारी भरकम लोहे के कारोबारी। कहीं कोई मेल नहीं है, लेकिन नेताजी को वह भी भा रहा है। बात यहीं तक रहती तो ठीक था, लेकिन पिछले दिनों उन्होंने एक तीसरी नाव में भी पैर रख दिया। इस संगठन के खेवनहार वहीं हैं जिन्होंने कभी चाचा को झटका दिया था। अब संगठन में जितने भी नाराज पदाधिकारी थे, सभी सक्रिय हो गए। आननफानन में बैठक बुलाई गई। कई पदाधिकारियों ने संगठन से निकालने की आवाज बुलंद कर दी। बैठक में ही निर्णय लेने का दबाव था, लेकिन चाचा ने अपना वीटो लगाते हुए एक और मौका देने की बात कह दी। अब निष्कासन की मांग करने वालों का मूड उखड़ा हुआ है।
अपनी ढपली, अपना राग
इनके बालों की सफेदी इनके कारोबारी अनुभव को दर्शा देती है। पिछले कुछ वर्षों में काले-काले बाल अब खिचड़ी से आगे बढ़ते हुए सफेदी की ओर पहुंच चुके हैं, लेकिन जब देखो संगठन में बगावत का बिगुल फूंक देते हैं। संगठन का चुनाव हुआ तो वे पराजित हो गए, लेकिन संगठन को एकजुट रखने के लिए उन्हें अध्यक्ष के भी ऊपर का पद दे दिया गया। भाई के तेवर अब भी नहीं बदले हैं। अब जहां भी उन्हें किसी अधिकारी या वीआइपी से समय चाहिए होता है तो वह इसी पद का इस्तेमाल कर समय हासिल कर लेते हैं, लेकिन जब मुलाकात होती है तो अपनी पहचान क्षेत्रीय संगठन के संरक्षक के रूप में कराते हैं। उनके इस रवैये संगठन के पदाधिकारी नाराज हैं, लेकिन उन पर कोई असर नहीं पड़ रहा है। अब तो पदाधिकारी भी कहने लगे हैं कि उनकी तो अपनी ढपली, अपना राग वाली स्थिति है।
फिर हाथ रहे, खाली के खाली
किसी ने सच ही कहा है कि खाली बैठाने से अच्छे-अच्छे लड़ाके बेकार हो जाते हैं। वे लडऩे की इच्छा होने पर भी लड़ नहीं पाते हैं। मैदान से उन्हें खाली हाथ लौटना पड़ता है। एक दौर था जब व्यापार मंडल किसी आंदोलन की घोषणा करता था तो अधिकारी परेशान हो जाते थे। बड़े-बड़े आंदोलन भी हुए, लेकिन इधर कई वर्ष से आंदोलन की घोषणाएं तो हुईं, लेकिन आंदोलन नहीं। इसके पीछे भी अलग कहानी है, लेकिन लंबी-चौड़ी फौज खाली बैठे-बैठे बेकार सी हो गई। पिछले दिनों अचानक प्रोग्राम बना कि एक ट्रक पकड़ा गया है, तुरंत ही वाणिज्य कर कार्यालय पहुंचना है। संगठन में सबको मैसेज किया गया, लेकिन पहुंचे मात्र एक दर्जन। अधिकारी समझ चुके हैं कि दांत खाने के कौन से हैं, दिखाने के कौन से। अधिकारी ने उन्हें थोड़ी देर बैठाकर प्रेम से बात की और उतने ही प्रेम लौटा दिया। बस ट्रक वहीं खड़ा रहा।