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Kanpur Naaptol Column: साहब हैं नहीं और शान में पढ़ रहे कसीदे, और वो रह गए खामोश

कानपुर शहर में व्यापारिक संगठन और राजनीतिक हलचल को लेकर आता नापतोल के कॉलम। आजकल व्यापारी संगठनों की लड़ाई भी वाट््सएप ग्रुप में जारी है। फेसबुक पर उन्होंने एक वर्ष पुराना मनोनयन पत्र डाला और खामोशी पर चंद लाइनें भी।

By Abhishek AgnihotriEdited By: Published: Thu, 03 Jun 2021 10:58 AM (IST)Updated: Thu, 03 Jun 2021 10:58 AM (IST)
Kanpur Naaptol Column: साहब हैं नहीं और शान में पढ़ रहे कसीदे, और वो रह गए खामोश
अब बाजार में भाई लोगों के सुर बंद हो गए हैं।

कानपुर, [राजीव सक्सेना]। कानपुर शहर के व्यापार और व्यापारिक गतिविधियों को चुटीले अंदाज में हर सप्ताह लेकर आता है नापतोल के कॉलम। इस बार भी कुछ ऐसे ही रोचक वाक्ये खासा पठनीय हैं...।

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हम घर कैसे जाएंगे

कभी-कभी बड़े भी बच्चों जैसी हरकतें करने लगते हैं। जब ऐसा होता है तो सिर्फ जगहंसाई होती है और ऐसा ही इस समय कुछ व्यापारियों के साथ हो रहा है। पहले मांग कर रहे थे, बाजार खोल दो, बाजार खोल दो। एक जून से जब सुबह सात बजे से शाम सात बजे तक बाजार खोलने और शाम सात बजे से सुबह सात बजे तक कफ्र्यू लगने की बात कही गई तो उन्होंने यह कहना शुरू कर दिया कि शाम सात बजे तक दुकान खोलेंगे और सात बजे से ही कफ्र्यू लगेगा तो घर कैसे जाएंगे। घर जाने का भी तो समय मिलना चाहिए। पहले लोगों ने समझा हंसी मजाक कर रहे हैं लेकिन भाई लोगों ने इसकी मांग ऊपर तक कर डाली तो आला अफसर को कड़ा होकर कहना पड़ा कि सात बजे तक दुकान बंद कर अपने घर पहुंच जाएं। अब भाई लोगों के सुर बंद हो गए हैं।

जहां जाना मुश्किल था वहां फ्री इंट्री

बड़े-बुजुर्ग कह गए हैं न कि सारी लड़ाइयां मैदान में नहीं लड़ी जातीं, कुछ दिमाग में भी लड़ी जाती हैं। आजकल तो सारा ज्ञान वाट््सएप ग्रुपों में ही मिलता है, इसलिए व्यापारी संगठनों की लड़ाई भी वाट््सएप ग्रुप में जारी है। अब इस बार देखिए, ग्रुप से निकाले गए नेताजी ने दूसरा ग्रुप तो बनवा लिया था। जिन व्यापारी नेताओं को पहले वाले ग्रुप में जुडऩे का मौका नहीं मिल रहा था, सभी के लिए राह खोल दी। पहले जो व्यापारी इस प्रयास में रहते थे कि किसी तरह साहब के वाट््सएप ग्रुप में जुड़कर अपनी बात उनके सामने रख सकें, अब सभी को मौका मिल गया। नेताजी भी खुश हैं क्योंकि वह चाहते थे कि साहब के सामने वही शहर के एकमात्र सबको साथ लेकर चलने वाले नेता नजर आएं और अपनी तरफ से उन्होंने यह काम पूरा कर दिया है। अब साहब क्या सोचते हैं, यह अलग है।

और वो खामोश रह गए

दिल की बात दिल में रह जाए और किसी से कुछ कहा भी न जा सके, इससे ज्यादा कठिन दौर शायद कभी नहीं हो सकता। वह भी तब, जब आप दौड़ में अपने से आगे चल रहे तमाम व्यापारी नेताओं को पीछे छोड़ते हुए आगे निकल जाओ। लेकिन आजकल कुछ तो समस्या है, वे अपनी दास्तां को अपने दिल में ही दबाए हुए हैं क्योंकि उन्हें लग रहा है कि वे कहीं मजाक न बन जाएं। बस वे मुस्करा रहे हैं और खामोश हैं। मगर कहने वालों की जुबां कौन रोक सकता है। बाजार में चर्चा है कि इस बार की टॉफी उनके लिए मीठी नहीं रही। पिछले दिनों उनके मुखिया लखनऊ गए थे। भाई को उम्मीद साथ जाने की थी लेकिन उन्हें पूछा तक नहीं गया, जबकि वह प्रदेश स्तर के पदाधिकारी हैं। अब फेसबुक पर उन्होंने एक वर्ष पुराना मनोनयन पत्र डाला और खामोशी पर चंद लाइनें भी।

साहब हैं नहीं और शान में पढ़ रहे कसीदे

दरबार में साहब को खुश करने के लिए उनकी शान में कसीदे पढऩे वालों की कमी नहीं है। सुबह से शाम तक तमाम लोग तो सिर्फ इस प्रयास में रहते हैं कि कैसे साहब उनकी लिखी लाइनों पर गौर कर लें ताकि जब रूबरू मुलाकात हो तो उन्हें भी पूरा सम्मान मिले। लेकिन जब आंख बंदकर शान में कसीदे पढ़े जाएंगे तो यह पता कैसे चलेगा कि साहब हैं भी या नहीं। फिर उनके पास तक चाशनी में डुबोकर पेश किए गए शब्दों का क्या मोल रह जाएगा। बात हो रही है व्यापारियों के एक वाट््सएप ग्रुप की। यह ग्रुप उस समय का है जब कानपुर पुलिस कमिश्नरी नहीं था। सबकुछ ठीक चल रहा था लेकिन अब व्यापारी तो शहर के हैं और काम भी शहर के ही अधिकारी से पडऩा है तो बिना यह सोचे समझे मीठे बोल बोलने लगे कि साहब उस ग्रुप में हैं भी या नहीं।


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