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कानपुर मेट्रो : लखनऊ से टुकड़ों में कानपुर में आई मशीन, हांगकांग से भी आए आधे पार्टस

कानपुर में मेट्रो ट्रैक निर्माण में सुरंग खोदने को मशीन आ गई है जिसे असेंबल करने में एक माह लग जाएंगे। वहीं दूसरी ओर सुरंग के लिए बीआइसी की जमीन अबतक नहीं मिल सकी है। इससे अब बड़ा चौराहा की तरफ से खोदाई करने की तैयारी है।

By Abhishek AgnihotriEdited By: Published: Sat, 22 Jan 2022 11:33 AM (IST)Updated: Sat, 22 Jan 2022 11:33 AM (IST)
कानपुर मेट्रो : लखनऊ से टुकड़ों में कानपुर में आई मशीन, हांगकांग से भी आए आधे पार्टस
अप्रैल के अंत में शुरू होगा सुरंग बनाने का काम।

कानपुर, जागरण संवाददाता। मेट्रो की भूमिगत सुरंग बनाने के लिए लखनऊ से एक टनल बोरिंग मशीन (टीबीएम) कानपुर पहुंच चुकी है। हांगकांग से भी आधे पाट्र्स यहां आ गए हैं। हालांकि, बीआइसी की जिस जमीन से सुरंग के शुरुआत की योजना थी, वह अभी तक मेट्रो को नहीं मिली है। अब बड़ा चौराहा से सुंरग बनाई जाएगी। मशीनों के सभी पार्ट पहुंचने के बाद इन्हें जोडऩे में करीब एक माह का समय लगेगा। अप्रैल के अंत में काम शुरू हो जाएगा।

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मेट्रो के प्राथमिक कारिडोर पर ट्रेन शुरू हो चुकी है और अब इसे आगे बढ़ाते हुए अंडरग्राउंड रूट के पहले सेक्शन चुन्नीगंज से नयागंज स्टेशन के बीच काम तेज कर दिया गया है। मेट्रो ने जब अपना प्रोजेक्ट तैयार किया था तो उसमें मोतीझील से आगे बढ़ते हुए बीआइसी की जमीन पर ग्वालटोली में भूमिगत सुरंग की रूपरेखा बनी थी। हालांकि, बीआइसी ने अभी तक मेट्रो को जगह ही नहीं दी है। इसके चलते अब बड़ा चौराहा से सुरंग की खोदाई होगी।

इसी माह आ जाएगी दूसरी टीबीएम : हांगकांग से आने वाली टीबीएम के सारे पाट्र्स इस माह के अंत में आ जाएंगे। ये पाट्र्स हांगकांग से मुंद्रा पोर्ट पर पहुंच गए हैं।

80 मीटर हो जाती है एक टीबीएम : टीबीएम के टुकड़े जोडऩे पर यह 80 मीटर तक लंबी हो जाती है। ऐसे में जहां से इस मशीन को जमीन के नीचे ले जाना होता है, वहीं इन्हें जोड़ा जाता है। दोनों टीबीएम को एक साथ ही जमीन में डाला जाता है। इसके अगले हिस्से में एक कटर होता है जो मिट्टी को काटता जाता है। सामान्य तौर पर यह टीबीएम जमीन से 40 फीट नीचे जाएगी। कुछ स्थानों पर गहराई 70 मीटर तक हो सकती है। टीबीएम का बाहरी व्यास 6.6 और अंदरूनी व्यास 5.8 मीटर का है।

दोनों सुरंग में नौ मीटर की दूरी रहेगी : दोनों टीबीएम एक-दूसरे से नौ मीटर की दूरी पर चलेंगी। सुरंग भी इतनी ही दूरी पर रहेंगी। दोनों सुरंग स्टेशन पर खुलेंगी। हर दो स्टेशन के बीच सुरंग में एक आपातकालीन रास्ता होगा जो दोनों को आपस में जोड़ेगा। इसके जरिए आपात स्थिति में यात्रियों को दूसरी सुरंग से सुरक्षित निकाला जाएगा।


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