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Kanpur Heritage: सिपाहियों ने दिया था ऐसा जख्म जिसे भूल न सके अंग्रेज, जानें- 1857 का ये किस्सा

इसमें अंग्रेजों ने उन्हें भी फांसी दे दी जिन्होंने उनको कानपुर से इलाहाबाद (वर्तमान में प्रयागराज) ले जाने के लिए नावों की व्यवस्था कराई थी। नाना साहब के आदेश पर किसी तरह करीब 200 अंग्रेज पुरुष महिला और बच्चों को बचाकर बीबीघर लाया गया।

By ShaswatgEdited By: Published: Sun, 06 Dec 2020 03:13 PM (IST)Updated: Sun, 06 Dec 2020 03:13 PM (IST)
Kanpur Heritage: सिपाहियों ने दिया था ऐसा जख्म जिसे भूल न सके अंग्रेज, जानें- 1857 का ये किस्सा
विद्रोह के दौरान जंग में अंग्रेजों से लोहा लेते हुए सिपाहियों की प्रतीकात्मक फोटो।

कानपुर, [राजीव सक्सेना]। अपने ऐतिहासिक महत्व के लिए विख्यात कानपुर शहर के इतिहास में कई ऐसी ऐसी बातें हैं जो देश बलिदानियों के त्याग की गवाही देती हैं। इसी से जुड़ा एक किस्सा है 1857 का। जिसमें अंग्रेजों ने उन लोगों को सजा देना शुरू किया जिन पर उन्हें जरा भी संदेह था कि उन्होंने इस विद्रोह में नाना साहब का साथ दिया। इसमें अंग्रेजों ने उन्हें भी फांसी दे दी जिन्होंने उनको कानपुर से इलाहाबाद (वर्तमान में प्रयागराज) ले जाने के लिए नावों की व्यवस्था कराई थी। इसके अलावा नाना साहब के कुछ दिन के शासन में जज रहे ब्रिगेडियर ज्वाला प्रसाद को भी फांसी दे दी गई।

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दीवानी और अपराध के मामले निस्तारित करने के लिए बनी अदालतें 

छह जून 1857 की सुबह नाना साहब ने अंग्रेजों के अस्थाई किले पर हमला करने के बाद सात जून को हिंदी और उर्दू में एक पत्र जारी कर नागरिकों से सहयोग मांगा था। इस पर नागरिक प्रशासन चलाने के लिए नागरिकों की राय से हुलास सिंह को शहर कोतवाल व चीफ मजिस्ट्रेट बनाया गया। दीवानी व अपराध के मामले निपटाने के लिए न्यायालय बनाए गए। इसमें ज्वाला प्रसाद, अजीमउल्ला खां, डिप्टी कलेक्टर राम लाल को जज बनाया गया। नाना साहब के भाई बाबा भट्ट को अध्यक्ष बनाया गया।

स्वजन की याद में बनाया मेमोरियल वेल 

25 जून 1857 को जनरल ह्वीलर ने आत्मसमर्पण कर दिया। 26 जून को ब्रिगेडियर ज्वाला प्रसाद, अजीमउल्ला खां और अंग्रेजों के कैप्टन मुरे व कैप्टन ह्वीटिंग की बीच समझौता हुआ कि उन्हें नावों से इलाहाबाद जाने दिया जाएगा। 27 जून की सुबह शहर कोतवाल हुलास सिंह ने नाविकों की मदद से 40 नावों की व्यवस्था की जिसमें अंग्रेजों को भेजा जाना था। नावें चली ही थीं कि किसी खास संकेत पर नाव चला रहे मल्लाह नाव छोड़ कर गंगा की धारा में कूद गए। इससे अंग्रेजों में हड़कंप मच गया। उन्होंने नाविकों पर गोलियां चलानी शुरू कर दीं। जवाब में घाट पर खड़े सिपाहियों ने अंग्रेजों पर गोलियां चलानी शुरू कर दीं। इसमें बड़ी संख्या में अंग्रेज मारे गए थे। नाना साहब के आदेश पर किसी तरह करीब 200 अंग्रेज पुरुष, महिला और बच्चों को बचाकर बीबीघर लाया गया जिन्हें बाद में मार कर कुएं में डाल दिया गया था। उन्हीं की याद में मेमोरियल वेल बनाया गया था।

इस घटना को अंग्रेज काफी समय भूल नहीं सके। उन्होंने तीन वर्ष बाद इलाहाबाद भेजने के लिए वार्ता करने वाले ब्रिगेडियर ज्वाला प्रसाद को 1860 में सत्तीचौरा घाट पर फांसी दे दी। मल्लाहों में समाधान, बुद्धू चौधरी, लोचन ने नाव उपलब्ध कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इन तीनों को भी अंग्रेजों ने नावों में हुई घटना के लिए दोषी मानते हुए उसी स्थान पर फांसी दे दी।


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