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रग-रग में हिंदी साहित्य के संसार का 'मिलन', कानपुर के हरी लाल ने जो लिखा वह सराहा गया

हर बार की तरह इस बार भी हम आपको कानपुर की एक एसी सख्सियत से परिचित कराने जा रहे हैं जिसका हिंदी साहित्य से गहरा नाता है। हरि लाल मिलन श्रम परिवर्तन अधिकारी जरूर रहे लेकिन उनकी हिंदी के प्रति तनमयता कम नहीं हुई।

By Abhishek VermaEdited By: Published: Sat, 25 Jun 2022 02:55 PM (IST)Updated: Sat, 25 Jun 2022 02:55 PM (IST)
रग-रग में हिंदी साहित्य के संसार का 'मिलन', कानपुर के हरी लाल ने जो लिखा वह सराहा गया
कानपुर के हरी लाल मिलन का हिंदी साहित्य से गहरा नाता है।

कानपुर, [शिवा अवस्थी]। मन और विचारों से होकर प्रतिपल रग-रग में हिंदी साहित्य के संसार का 'मिलन' उनके घर के कमरे के कोने-कोने में नजर आता है। नामचीन और युवा लेखकों की किताबों से अलमारियां भरी हैं। बेहद लगाव से इन्हीं किताबों के बीच से उनके मन का लेखक रोज कुछ न कुछ लिखता है। बचपन की सोच जवानी की दहलीज में कदम रखते ही लेखन के रूप में कागजों पर उतरी तो फिर वह पीछे नहीं मुड़े। पढ़ाई के बाद श्रम प्रवर्तन अधिकारी बन गए, लेकिन साहित्य से बंधन अटूट रहा। अब तक 10 किताबें लिख चुके हैं। हिंदी निष्ठा को लेकर उन्हें उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान के कई पुरस्कारों के साथ तमाम प्रतिष्ठित सम्मानों से नवाजा जा चुका है। यह शख्सियत हैं मूलरूप से प्रतापगढ़ जिले के ग्राम पुरे गुलाब राय में आठ जुलाई, 1954 को जन्मे, वहां इंटरमीडिएट तक शिक्षा लेने के बाद आगे की पढ़ाई कानपुर में करने के साथ यहीं पले-बढ़े व स्थायी निवास बना चुके साहित्य के चितेरे हरी लाल 'मिलन', जो श्रम विभाग से सेवानिवृत्त होने के बाद भी लगातार लेखन में कीर्तिमान गढ़ रहे हैं।  

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नौबस्ता के मछरिया रोड पर दुर्गावती सदन में रहने वाले हरी लाल मिलन बताते हैं, जब वह कक्षा छह-सात में पढ़ाई कर रहे थे, तभी से लेखन की तरफ रुझान बढ़ा। लेखन का आधार व्यक्तिगत, सामाजिक, राष्ट्रीय व वैदिक परिस्थितियां रहीं। समाज से लिखने की विषय सामग्री मिली। हालात कविता, कहानियों का रूप लेकर कागज पर उतरते रहे। बाल श्रम पर आधारित कहानी 'व्यवस्था' खूब चर्चित रही। उनके मुताबिक, वर्तमान में लोग कहते हैं कि यह इलेक्ट्रानिक युग है, पुस्तकों का भविष्य सुरक्षित नहीं है, लेकिन उन्हें शायद नहीं पता कि हजारों वर्ष का साहित्य हम सबके पास है। इसलिए पुस्तकें हमेशा हमारे साथ रहेंगी। न जाने कितनी आपदाएं आईं पर इन्हें कोई मिटा नहीं सका। इसे वह अपने एक मुक्तक से बयां करते हैं-'कभी सुख कभी दुख के किस्से कहेंगी, गजल-गीत-दोहे की नदियां बहेंगी, मुझे याद करता रहेगा जमाना, मेरे बाद मेरी किताबें रहेंगी।' उनकी आकाशवाणी से रचनाएं प्रसारित हो चुकी हैं, जबकि पुस्तकों पर छात्र-छात्राएं शोध कर रहे हैं। 

अब तक प्रकाशित पुस्तकें

परित्यक्ता (खंडकाव्य), वक्त रो रहा है और ये आंसू (गजलें), म्रिया (उपन्यास), अंधेरे भी उजाले भी और नमन भारत भारती (गीत), आखिरी झूठ (कहानी संग्रह), कागज कलम कविता, दर्पण समय का (दोहे), मेरी परख (समालोचना)। 

यह मिले प्रमुख पुरस्कार 

उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान लखनऊ की ओर से वर्ष 2020 में 'साहित्य भूषण', हिंदी संस्थान से ही वर्ष 2017 में 'नमन भारत भारती' पुस्तक पर 'कबीर नामित पुरस्कार', उत्तर प्रदेश राज्य कर्मचारी संस्थान लखनऊ से 'सुब्रमण्यम भारती पुरस्कार', राष्ट्रीय, सामाजिक साहित्यिक चेतना जन जागरण मंच 'परिवार मिलन' कोलकाता से 2016 में काव्य वीणा सम्मान, साहित्य मंडल श्रीनाथद्वारा से 'हिंदी भाषा भूषण सम्मान' व 'हिंदी काव्य भूषण सम्मान', हिंदी प्रचारिणी समिति कानपुर से 'साहित्य रत्नाकर', जीवाजी विश्वविद्यालय ग्वालियर से कविवर वीरेंद्र मिश्र गीत अलंकरण, विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ भागलपुर से विद्यासागर, विद्यावाचस्पति मानद उपाधि व भारत गौरव अलंकरण समेत देश भर की कई प्रतिष्ठित संस्थाओं से सम्मानित। 


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