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Kanpur Dakhil Daftar Column: बड़े साहब थोड़ा सख्त हैं.., हम लोग फंसेंगे तो पीछे भी पड़ेंगे

कानपुर शहर में सरकारी दफ्तरों की हलचल लेकर आता है दाखिल दफ्तर कॉलम। शादी अनुदान और पारिवारिक लाभ योजना में हुए करोड़ों रुपये के घोटाले में कई अफसरों की गर्दन नपने वाली है। विकास विभाग से जुड़े एक साहब रिटायरमेंट के बाद विधायक बनना चाहते हैं।

By Abhishek AgnihotriEdited By: Published: Tue, 29 Jun 2021 10:46 AM (IST)Updated: Tue, 29 Jun 2021 10:46 AM (IST)
Kanpur Dakhil Daftar Column: बड़े साहब थोड़ा सख्त हैं.., हम लोग फंसेंगे तो पीछे भी पड़ेंगे
कानपुर में सरकारी दफ्तरों की हलचल दाखिल दफ्तर।

कानपुर, [दिग्विजय सिंह]। शहर में सरकारी दफ्तरों में रोजाना की हलचल और चर्चाओं को चुटीले अंदाज में आपतक पहुंचाता है हमारा दाखिल दफ्तर कॉलम। आइए देखते है बीते सप्ताह कौन सी चर्चाएं जोरों पर रहीं और क्या कानाफूसी होती रही...।

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हम लोग फंसेंगे तो पीछे भी पड़ेंगे

शादी अनुदान और पारिवारिक लाभ योजना में हुए करोड़ों रुपये के घोटाले में कई अफसरों की गर्दन नपने वाली है। यह बात अफसरों को भी पता है। अब वे बचाव का रास्ता तो निकाल ही रहे हैं, डराने धमकाने के अंदाज में जांच अधिकारी से बात भी कर रहे हैं। एक अफसर महोदय थोड़ा रौब में रहते हैं। वह कब किसे क्या बोल दें, कोई भरोसा नहीं। इस घोटाले में अपात्रों को पात्र बनाने में उनका भी नाम सामने आया तो साहब की त्योरियां चढ़ गई। उन्होंने जांच अधिकारी को फोन किया। बड़े ताव में बोले, भाई साहब हम लोगों के पास काम ज्यादा होता है। प्रत्येक आवेदनकर्ता की घर पर जाकर जांच कर नहीं सकते। देख लीजिएगा, मेरा नाम कहीं न आए। अगर हम लोग फंसेंगे तो फिर उनके भी पीछे पड़ेंगे जिन्होंने जांच की है। इस पर जांच अधिकारी महोदय आग बबूला हो गए और फोन काट दिया।

बड़े साहब थोड़ा सख्त हैं...

गांवों में शौचालयों, सड़कों का निर्माण कराने वाले विभाग के बड़े साहब थोड़ा सख्त हैं। उन्हें काम चाहिए और काम न करने वाले को दंड देना उनकी आदत है, लेकिन साहब एक दिन बड़ी सोच में पड़ गए, क्योंकि उनके ही मातहत ने साहब के फैसले पर सवाल जो खड़ा कर दिया और उन्हीं से जवाब मांग लिया। दरअसल, हुआ यह कि साहब कुछ अधिकारियों के साथ चाय पी रहे थे। तभी उनके एक मातहत ने उन्हें मैसेज किया और कहा कि साहब किसी महिला सचिव को गांव में कैसे तैनात कर सकते हैं। साहब ने कहा कि तैनाती तो शासनादेश के अनुसार होती है। इस पर सचिव ने उनसे उस शासनादेश के बारे में पूछ लिया। साहब ने जवाब दिया तो उसने फिर जवाब मांग लिया। साहब थोड़ा मुस्कराए और फिर गुस्सा हो गए। मातहत को फोन किया और अफसर से कैसे बात करनी है, सख्त लहजे में समझाया।

और कानपुर में रहने का सपना साकार

विभागीय मंत्री की नाराजगी से विकास विभाग से जुड़े एक साहब का तबादला हो गया था। साहब यहां से जाना नहीं चाहते थे, इसलिए दो से तीन महीना किसी तरह कोरोना की समस्या बताकर यहीं कुर्सी पर जमे रहे। कोरोना की कमर टूटी तो शासन से साहब को जल्दी कार्यमुक्त करने का फरमान आ गया। उन्हें मुक्त करने की इच्छा तो बड़े साहब की भी नहीं थी, लेकिन क्या करते, जब शासन से ही सख्ती होने लगी। साहब कार्यमुक्त तो हो गए हैं, लेकिन कानपुर का मोह नहीं छूटा। कोशिशें करते रहे और अंतत: कामयाबी मिल ही गई। अब साहब फिर कानपुर आ रहे हैं तो उनके चाहने वालों की बाछें खिल गईं। एक साहब, जिन पर उन्हें हटवाने का दाग लगा था, वे भी खुश हो गए और किसी से बोले, चलो यार इस शहर से जाने से पहले कम से कम एक दाग से मुक्ति तो मिल गई।

अब विधायक बनना है

विकास विभाग से जुड़े एक साहब रिटायर हो गए हैं और भगवा झंडे वाली पार्टी से जुड़कर एक कैबिनेट मंत्री के सलाहकार के रूप में काम कर रहे हैं। साहब राजनीतिज्ञों के साथ रहने में अपनी शान समझते हैं। मंत्री जी के साथ हैं तो पार्टी के तमाम बड़े नेताओं से उनकी मुलाकात भी होती है। विधायक, सांसद और मंत्रियों के जलवे से साहब इतने प्रभावित हुए कि अब उन्होंने खुद विधायक बनने की ठान ली है। साहब शहर आए तो उन्होंने अपने कुछ पुराने परिचितों को बुलाया। उन्होंने शहरी क्षेत्र की सीटों का गुणा गणित समझा। एक मित्र ने बताया कि एक विधायक जी से पार्टी और जनता दोनों ही नाराज हैं। टिकट कटने वाला है, साहब वहां के लिए लग जाएं। साहब से रहा नहीं गया। बोले, क्षेत्र का भ्रमण कराओ। भ्रमण कर लौटे तो विधायक से नाराजगी पता चल गई, अब जुट गए टिकट के जुगाड़ में।


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