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Kanpur Dakhil Daftar Column: बहुत ज्यादा व्याकुल न हों, मेरे आदमी को ठेका दो और बचो...

कानपुर शहर में प्रशासनिक हलचल खासा रहती है जिसकी खास चर्चाओं का कॉलम है दाखिल दफ्तर। भूखंडों का आवंटन करने वाले विभाग में एक अफसर जब कुर्सी से हटते हैं तो बीमार हो जाते हैं। यहां तो अधीनस्थ ही जांच करते और रिपोर्ट भी बना लेते हैं।

By Abhishek AgnihotriEdited By: Published: Tue, 23 Mar 2021 02:18 PM (IST)Updated: Tue, 23 Mar 2021 02:18 PM (IST)
Kanpur Dakhil Daftar Column: बहुत ज्यादा व्याकुल न हों, मेरे आदमी को ठेका दो और बचो...
दाखिल दफ्तर में कानपुर के प्रशासनिक अमले की हलचल।

कानपुर, [दिग्विजय सिंह]। कानपुर शहर में प्रशासनिक अमले में रोजाना हलचल रहती है और इस दरमियान कई बातें खास चर्चा का विषय भी बन जाती हैं। इन्हीं चर्चाओं को लोगों तक चुटीलें अंदाज में दाखिल दफ्तर कॉलम पहुंचाता है..।

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बहुत ज्यादा व्याकुल न हों

भूखंडों का आवंटन करने वाले विभाग में एक अफसर इनदिनों क्षेत्रीय प्रबंधक बनने को आतुर हैं। कई जगहों पर क्षेत्रीय प्रबंधक रह चुके साहब पिछले कई सालों से साइड लाइन हैं। बताते हैं कि जब वे कुर्सी से हट जाते हैं तो बीमार हो जाते हैं और कुर्सी मिलने के नाम से ही उनमें फुर्ती आ जाती है। साहब को आजकल किसी जनप्रतिनिधि से आश्वासन मिल गया है। ऐसे में वे खुश हैं और अब तो लोगों से कहने लगे हैं कि मेरे दिन भी बहुरने वाले हैं। साहब के बच्चों के तरह खुश होकर उछलने की जानकारी जब एक कर्मचारी नेता को हुई तो उसने मजा ले लिया। उनके ही खास अफसर से कह दिया कि साहब से कहो ज्यादा व्याकुल न हों। कहीं ऐसा न हो कि फिर बीमारी का बहाना बनाकर काम से बचने की नौबत न आ जाए। बात साहब तक पहुंची तो चेहरा लटक गया।

मेरे आदमी को ठेका दो और बचो

सत्तारूढ़ दल में दूसरी पार्टी से आकर जनप्रतिनिधि बने एक महोदय विकास कार्यों में खूब रुचि लेते हैं। उनकी पार्टी के लोग सोचते हैं कि वे बड़े कर्मठ हैं और उन्हें विकास की चिंता है, लेकिन ऐसा नहीं है। जो ऐसा सोचते हैं, बड़े भ्रम में हैं। जनप्रतिनिधि महोदय को विकास कार्यों की जगह ठेकेदारों से लगाव ज्यादा है। उन्हें जीत दिलाने में अहम भूमिका निभाने वाले कुछ युवाओं ने ठेकेदारी शुरू कर दी है। ऐसे में उन्हें अपने लोगों को संतुष्ट भी करना है। यही वजह है कि जैसे ही किसी सड़क या अन्य निर्माण कार्य का टेंडर निकालने की तैयारी होती है, वे संबंधित विभाग के बड़े साहब को बुला लेते हैं। हाल ही में उन्होंने सड़क निर्माण कराने वाले एक विभाग के अफसर को बुलाया। दो टूक शब्दों में कहा मेरे आदमी को ठेका दोगे तो बचोगे, वर्ना अपने कार्यों की जांच कराने के लिए तैयार रहो।

ऐसा न हो मेरी गर्दन भी नप जाए

अभी तक डीएम या सीडीओ किसी मामले की जांच देते तो विकास विभाग से जुड़े एक साहब उसे अपने अधीनस्थ को पकड़ा देते थे। अधीनस्थ ही जांच करते और रिपोर्ट बना देते। साहब उस पर एक नजर मारते और हस्ताक्षर करके उच्चाधिकारियों को भेज देते थे। अभी अनुदान से जुड़े एक मामले के कुछ आवेदनपत्रों की नमूने के तौर पर उन्हें जांच मिली तो आदत के अनुसार उन्होंने अपने अधीनस्थ को दे दी। जांच हुई तो गड़बड़ी मिली। डीएम ने सभी आवेदन पत्रों की जांच का आदेश दिया तो साहब फिर जांच अधिकारी बन गए। अधीनस्थों ने आवेदन पत्र उठाया और जांच करने के लिए जाने लगे तो साहब बोले अरे रुको भाई। ये वाली जांच मुझे करने दो। जरा सी गलती हो गई तो मुझे भी जांच का सामना करना पड़ेगा। जानते हो साहब कितने सख्त हैं। ऐसा न हो कि भ्रष्टाचारियों के साथ मेरी गर्दन भी नप जाए।

भइया न सही भाभी प्रमुख बनेंगी

राज्य सरकार में एक बड़े ओहदे वाले मंत्री के खास जिला पंचायत सदस्य ने तो सपना बड़ा देख रखा था। पहले वे एक विधानसभा क्षेत्र से विधायक बनने का ख्वाब देख रहे थे। अपनों से कहते थे कि पार्टी में ऊंची पहुंच के दम पर टिकट मिल जाएगा, फिर उन्होंने तय किया कि अब जिला पंचायत अध्यक्ष बनना है। अध्यक्ष बनने के लिए उन्होंने बड़ी तैयारी कर ली, लेकिन पता चला कि यह सीट तो अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हो गई। यहां से भी उनका सपना टूट गया तो ब्लाक प्रमुख बनने का ताना बाना बुनने लगे, क्योंकि ब्लाक प्रमुख का पद अनारक्षित हो गया था। हालांकि, यहां भी किस्मत दगा दे गई और दोबारा जब आरक्षण का निर्धारण हुआ तो यह सीट महिलाओं के लिए आरक्षित हो गई। अब महोदय निराश हो गए। उनके अपने अब बोलने लगे हैं कि भइया न सही भाभी तो प्रमुख बनेंगी ही।


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