धूल, धुआं से भयावह हुए हालात, प्रदेश का सातवां सबसे प्रदूषित शहर बना कानपुर Kanpur News
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट में शहर की हवा खराब प्रदूषित शहरों में पहले स्थान पर है नोएडा।
कानपुर, जेएनएन। शहर की हवा लगातार जहरीली होती जा रही है। प्रदेश में कानपुर सातवां सबसे प्रदूषित शहर हो गया है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) की ओर से रविवार को जारी वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआइ) हालात के बद से बदतर होने का इशारा कर रहा है। पर्टिकुलेट मैटर (पीएम 2.5), नाइट्रोजन डाईऑक्साइड, सल्फर डाईऑक्साइड की मात्रा मानक से कई गुणा अधिक पहुंच गई है।
वायुमंडल के सबसे निचली परत में गैसों की चादर सी बन गई है। सड़कों पर उड़ती धूल, धुआं और कूड़ा जलने से वायु मंडल में हानिकारक गैसों का घनत्व बढ़ता जा रहा है। तापमान गिरने से हालात और खराब हो गए हैं। विशेषज्ञों की मानें तो हवा चलने या बारिश होने पर ही कुछ दिन के लिए राहत मिल सकती है। उप्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के क्षेत्रीय अधिकारी डॉ. एसबी फ्रैंक्लिन ने बताया कि सर्दी बढऩे पर प्रदूषण की स्थिति और बिगड़ सकती है। हवा सुधारने के लिए प्रयास शुरू हो गए हैं।
कानपुर से ज्यादा लखनऊ की हवा खराब
शहर एक्यूआइ
नोएडा 495
गाजियाबाद 491
ग्रेटर नोएडा 482
हापुड़ 471
मेरठ 445
लखनऊ 400
कानपुर 383
शहर में गैसों की स्थिति
गैसें औसत अधिकतम
पीएम 2.5 379 479
एनओटू 112 222
एसओटू 81 129
(मात्रा माइक्रोग्राम पर मीटर क्यूब में)
देश में कानपुर का 27वां नंबर
वायु प्रदूषण में कानपुर 27वें नंबर पर है। पहले नंबर पर रोहतक (498) फिर फरीदाबाद (494), नोएडा (495), दिल्ली (494) व गाजियाबाद (491) आदि शहर हैं।
वायु प्रदूषण ने बढ़ाया इमोशनल स्ट्रेस
शहर की हवा में घुली जहरीली गैसों का सेहत पर बुरा असर पड़ रहा है। सांस, दमा व सीओपीडी के मरीजों में इमोशनल स्ट्रेस (भावनात्मक तनाव) भी बढ़ गया है। मुरारी लाल चेस्ट हॉस्पिटल में काफी संख्या में इसके मरीज आने लगे हैं। कुछ रोगियों में तनाव की वजह से ब्लड प्रेशर अनियंत्रित पाया गया है। पल्स रेट अधिक होने और ऑक्सीजन की कमी से बेहोशी की हालत में चले जा रहे हैं। ऐसे मरीजों को तत्काल भर्ती करना पड़ रहा है। वायु मंडल में पर्टिकुलेट मैटर (पीएम 2.5 और पीएम 10), नाइट्रोजन डाईऑक्साइड (एनओटू), सल्फर डाईऑक्साइड (एसओटू), कार्बन डाईऑक्साइड (सीओटू), कार्बन मोनोऑक्साइड (सीओ) समेत अन्य गैसों का स्तर खतरनाक स्थिति में पहुंच गया है।
सांस और दमा के रोगियों की परेशानी भी काफी हो गई है। चेस्ट सोसाइटी ऑफ इंडिया के अध्यक्ष व चेस्ट रोग विभाग के प्रो. सुधीर चौधरी के मुताबिक न्यूरोटिज्म (मनोविक्षुब्धता) व्यक्तित्व के सांस रोगियों में वायु प्रदूषण को लेकर भय बन रहा है। उनमें बेवजह घबराहट और चिंता होती है। ओपीडी में कई ऐसे रोगी आ रहे हैं, जिन्हें सांस रोग की मामूली समस्या होती है। तनाव की वजह से दिल का मर्ज बढ़ रहा है। रोजाना छह से सात रोगी इमोशनल स्ट्रेस की समस्या लेकर आ रहे हैं। वायु प्रदूषण से अस्थमा की दिक्कत गंभीर रूप ले रही है। इमोशनल स्ट्रेस उसमें घी डालने का काम कर रहा है।
फेफड़ा रोगियों का हो रहा हार्ट फेल
प्रो. चौधरी के मुताबिक वायु प्रदूषण की वजह से फेफड़ा रोगियों में खून की नलियां सिकुड़ जाती हैं। फेफड़ों की नलियां सिकुडऩे से खून दिल तक नहीं पहुंच पाता है, जिससे तेजी से ब्लड प्रेशर घट जाता है। इस स्थिति में रोगी बेहोशी की हालत में पहुंच जाता है। कुछ मामलों में रक्त के प्रवाह से ज्यादा तेज गति से पल्स रेट हो जाता है, जो हार्ट फेल का कारण हो सकता है।