ढांचा विध्वंस मामले में सीबीआइ काेर्ट द्वारा बरी किए जाने पर बोले प्रकाश शर्मा, सच सामने आया
ढांचा विश्वंस मामले में सीबीआइ की विशेष अदालत द्वारा सभी आरोपितों को बरी करने पर बजरंग दल के राष्ट्रीय संयोजक ने बताया कि अदालत में फोटो के निगेटिव नहीं मिले और वीडियो के साक्ष्य भी प्रस्तुत नहीं किए जा सके।
कानपुर, जेएनएन। ढांचा विध्वंस के मामले में सभी आरोपितों को सीबीआइ की विशेष अदालत द्वारा बरी करने पर बजरंग दल के राष्ट्रीय संयोजक रहे प्रकाश शर्मा ने कहा कि यह सच की जीत है। उन्हें न्यायालय पर पूरा भरोसा था। इससे भारतीय न्याय व्यवस्था पर लोगों का विश्वास और बढ़ेगा। प्रकाश शर्मा कानपुर से एक मात्र आरोपित थे।
उन्होंने कहा कि तत्कालीन केंद्र सरकार ने दबाव डालकर मुकदमा दर्ज कराया था। इसमें गलत तथ्यों का इस्तेमाल हुआ था। यह बात न्यायालय की कार्यवाही के दौरान सामने आ गई है। ढांचा विध्वंस में किसी तरह की कोई पूर्व नियोजित योजना नहीं बनाई गई थी। वहां सिर्फ सरयू नदी की रेत डालकर कारसेवा करने को लोग पहुंचे थे। अशोक सिंहल ने भी कारसेवकों को रोकने का प्रयास किया था। भीड़ ज्यादा होने के कारण घटना हुई। उन्होंने कहा कि न्यायालय में साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत किए गए फोटो के निगेटिव नहीं मिले। इसके साथ जो वीडियो दिखाए गए, उनका भी कोई साक्ष्य नहीं था। इससे साफ हो गया कि किसी ने ढांचा ढहाने की कोई साजिश नहीं की थी।
बजरंग दल के हाथ में थी रामकथा कुंज की सुरक्षा
उन्होंने कहा कि उनका श्रीराम जन्मभूमि मंदिर आंदोलन के दौरान अयोध्या नियमित रूप से जाते थे। 1992 में दो दिसंबर को अयोध्या पहुंचे थे। वहां कारसेवकपुरम और रामकथा कुंज की सुरक्षा कानपुर के बजरंग दल कार्यकर्ताओं के हाथ में थी। रामकथा कुंज मेंं बड़े नेताओं के बैठने के लिए मंच बना था। इससे पहले कानपुर की टीम 1989 में शिलान्यास स्थल की सुरक्षा कर चुकी थी। उनके मुताबिक, ढांचा ढहने के बाद बजरंग दल को प्रतिबंधित कर दिया गया था। जब वह कानपुर आए तो यहां प्रतिबंधित संगठन की बैठकें करने में उनके खिलाफ मुकदमा हुआ था। 24 जनवरी को तत्कालीन एसपी कमल सक्सेना से उनके शिविर कार्यालय में मिलने पहुंचने पर उन्हें गिरफ्तार किया गया था।
कई बार हुए थे गिरफ्तार
उन्होंने बताया कि ढांचा विध्वंस के मामले में सीबीआइ ने उन्हें आठ अप्रैल 1993 को गिरफ्तार किया था। 20 अप्रैल 1993 को जमानत पर छोड़ा गया था। इससे पहले वह 11 नवंबर 1989 को सरयू से अमावां मंदिर जाते समय संतों के साथ गिरफ्तार हुए थे। 1988 में आठ दिन और 1991 मेें तीन दिन के लिए गिरफ्तार किए गए थे।