कानपुर में दिखी कांग्रेस कमेटी की खेमेबंदी, टी-पार्टी में नहीं आमंत्रित किए गए नगर जिलाध्यक्ष
Internal Conflict of Congress सिविल लाइंस में पीसीसी सदस्य कृपेश त्रिपाठी और संदीप शुक्ला के नेतृत्व में कांग्रेस के कई वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं का जमावड़ा लगा। पूर्व केंद्रीय मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल और पूर्व विधायक अजय कपूर ने इस बैठक से दूर रहना ही उचित समझा।
कानपुर, जेएनएन। Internal Conflict of Congress वर्तमान समय में देश की राजनीति पर नजर डालें तो सबसे पुरानी पार्टी यानि कांग्रेस अपने अस्तित्व के लिए जद्दोजहद करती नजर आ रही है। किसी भी चुनाव में जब किसी पार्टी की हार पर समीक्षा होती है तो सबसे बड़े और प्रमुख कारणों में से खेमेबंदी मुख्य वजह होती है। शहर कांग्रेस कमेटी की बात करें तो अब इसका दायरा खत्म होता नजर आ रहा है। सोमवार को जिलाध्यक्षों के खिलाफ यह खेमेबंदी उस वक्त जगजाहिर हो गई जब शहर कांग्रेस कमेटी उत्तर और दक्षिण के जिलाध्यक्षों की गैरमौजूदगी में चाय पार्टी के लिए दिग्गज नेता जुटे।
सिविल लाइंस में पीसीसी सदस्य कृपेश त्रिपाठी और संदीप शुक्ला के नेतृत्व में कांग्रेस के कई वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं का जमावड़ा लगा। मौका था कोरोना संक्रमण में लंबे समय बाद चाय पार्टी के बहाने शिष्टाचार भेंट का। इस आयोजन में शहर कांग्रेस कमेटी उत्तर के जिलाध्यक्ष नौशाद आलम मंसूरी और दक्षिण जिलाध्यक्ष डॉ. शैलेंद्र दीक्षित आमंत्रित नहीं थे, जबकि दो बड़े और दिग्गज नेता पूर्व केंद्रीय मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल और पूर्व विधायक अजय कपूर ने इस बैठक से दूर रहना ही उचित समझा। बता दें कि कोरोना महामारी भयानक परिदृश्य में शहर कांग्रेस कमेटी का आंदोलन नहीं दिखा। इसी का नतीजा है कि चिकित्सीय व्यवस्था से परेशान आदमी सरकार से भी नाराज है, लेकिन वह कांग्रेस से नहीं जुड़ सका।
...तो टी-पार्टी का यह था उद्देश्य: आयोजनकर्ताओं के मुताबिक इस टी-पार्टी का मूल उद्देश्य पार्टी की कार्यशैली की समीक्षा करना था, क्योंकि शहर कांग्रेस कमेटी कहीं न कहीं अपने काम से भटक गई है। बताया गया कि आगामी विधानसभा चुनाव की तैयारियों में जुटीं प्रियंका वाड्रा तो यही सोच रहीं हैं कि सत्ता से सीधे कांग्रेस की लड़ाई होगी लेकिन जमीनी हकीकत इससे जुदा है। सत्तापक्ष की गिनती में कांग्रेस एक क्षेत्रीय पार्टी है। परिणामस्वरूप, कांग्रेस के दिग्गजों की बैठक से निकला संदेश प्रदेश कांग्रेस कमेटी और प्रियंका वाड्रा तक भी पहुंच चुका है। अब देखने वाली बात है कि आखिर प्रदेश कांग्रेस कमेटी (पीसीसी) कोई निर्णय लेगी या फिर खेमेबंदी को पुरानी बात समझकर हर बार की तरह नजरअंदाज कर देगी।