तंगदिली राजनीति के दौर में अचरज में डालता है ये अनोखा किस्सा, कभी ऐसे भी होते थे नेता
घाटमपुर विधानसभा सीट पर उपचुनाव की तैयारी शुरू हो चुकी है दावेदार अभी से प्रचार में जुट गए हैं इन सबके अतीत में चुनाव लड़ चुके विभिन्न दलों के वरिष्ठ नेताओं का प्रचार याद करने पर एक बारगी अचरज हो जाता है।
कानपुर, महेश शर्मा। कांग्रेस प्रत्याशी पंडित बेनी सिंह अवस्थी की जीप सामने से आते देख सोशलिस्ट प्रत्याशी कुंवर शिवनाथ सिंह कुशवाहा साइकिल से उतर पड़े। नजदीक पहुंच कर पैर छुए, तो बेनी बाबू ने आशीर्वाद दिया और कुशलक्षेम पूछी। चलते-चलते बेनी बाबू यह भी बताना नही भूले कि शिवनाथ तुम्हारी फलां पोलिंग गड़बड़ है, देख लेना...। तंगदिली की ओर बढ़ रही राजनीति के दौर में ऐसे वाकये आज सपने सरीखे हैं, लेकिन चुनावी राजनीति में आपसी सौहार्द व सदाशयता के साक्षी अब गिने चुने लोग ही बचे हैं।
घाटमपुर सीट पर कांग्रेस के कद्दावर नेता पंडित बेनी सिंह अवस्थी व सोशलिस्ट पार्टी के शिवनाथ सिंह कुशवाहा 1962, 67, 69 व 74 के चुनाव आमने-सामने थे। 1962 व 74 में शिवनाथ सिंह जीते, तो 1967 व 69 में बाजी पंडित बेनी सिंह अवस्थी के हाथ रही। हालांकि एक दूसरे के प्रति सदाशयता व सम्मान सर्वोपरि होता था। सम्मान का आलम यह था कि चारों चुनाव में शिवनाथ सिंह प्रतिद्वंदी बेनी बाबू के पैतृक गांव बिरसिंहपुर में वोट मांगने नहीं जाते थे। शिवनाथ सिंह के साथ साइकिल चलाकर चुनाव प्रचार में साथ रहने वाले असवारमऊ निवासी बुजुर्ग अजय निषाद उर्फ पुतई नेता बताते हैं कि सोशलिस्ट के समर्थक उत्साह में आकर कभी-कभी बेनी बाबू के खिलाफ आपत्तिजनक नारे लगा देते थे तो शिवनाथ सिंह उन्हें डांट कर चुप करा देते थे।
शिवनाथ सिंह के भतीजे अरविंद सिंह बताते हैं कि 1957 से 1967 के बीच वह हरे रंग वाली साइकिल से ही चुनाव प्रचार करने निकलते थे। 1969 और 1974 में वह पड़ोसी देवी प्रसाद सचान की मोटर साइकिल पर पीछे बैठकर प्रचार करने निकलते थे। पंडित बेनी ङ्क्षसह अवस्थी की पुत्री एवं कानपुर देहात की सीएमओ रहीं डॉ. प्रभा पांडेय बताती हैं कि बाबूजी को राजनीतिक कार्यों में परिवारीजनों की दखलंदाजी कतई पसंद नहीं थी। वह चुनावी राजनीति में किसी के लिए कभी बैरभाव नही रखते थे।