सियाचीन व लद्दाख में सरहदों की निगहबानी करने वाले सैनिकों के लिए कवच बनेगी इनर Kanpur News
ठंडे क्षेत्रों में सरहदों की निगहबानी करने वाले सैनिक अब ठंड से बचने के साथ अपनी त्वचा को भी सुरक्षित रख सकेंगे।
कानपुर, जेएनएन। सियाचीन व लद्दाक जैसे ठंडे क्षेत्रों में सरहदों की निगहबानी करने वाले सैनिक अब ठंड से बचने के साथ अपनी त्वचा को भी सुरक्षित रख सकेंगे। डीआरडीओ ने उनके लिए एक ऐसा इनर बनाया है जो -50 डिग्री सेल्सियस में उन्हें सुरक्षित रखने के साथ पसीने को भी शरीर पर ठहरने नहीं देगा। पसीना इससे आसानी के साथ बाहर आ सकेगा जिससे वह कड़ाके की ठंड में जमेगा नहीं।
उत्तर प्रदेश वस्त्र प्रौद्योगिकी संस्थान (यूपीटीटीआइ) के अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में बतौर वक्ता शिरकत करने आए डीआरडीओ के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. बिस्व रंजन दस ने इस इनर को बनाया है। उन्होंने बताया कि -50 डिग्री सेल्सियस तापमान पर पसीना बाहर न आने से वह शरीर के अंदर ही बर्फ बन जाता है जिससे त्वचा संक्रमण के साथ ठंड से बीमार होने का खतरा भी रहता है। इसी बात को ध्यान में रखकर उन्होंने पॉलिस्टर व लाइक्रा मिलाकर यह इनर बनाया है। प्रयोगशाला में इसका परीक्षण सफल होने के बाद अब सेना में इसका परीक्षण किया जाएगा।
टेंट बनाया, जिसे दुश्मन नहीं देख सकेगा
उन्होंने बताया कि इसके अलावा उन्होंने एक ऐसा टेंट बनाया है जिसे दुश्मन नहीं देख सकेगा। यह रेगिस्तान, हरियाली व पथरीले क्षेत्रों के रंगों का होगा। इसके अलावा इसकी खासियत इसका हल्कापन भी है। अभी तक पोल में कपड़े के जरिए टेंट बनाया जाता है जिसका वजन 200 किलो होता है। इसे एक स्थान से दूसरे स्थान तक लाना ले जाना मुश्किल भी होता है। जबकि उन्होंने जो तकनीक इजाद की है उससे टेंट को हवा भरकर पल भर में तैयार किया जा सकता है जबकि इसका वजन महज 50 किलो है। इस टेंट में छह से दस सैनिक रह सकते हैं।
एके-47 की गोली को रोकेगी ढाई किलो की बुलेट प्रूफ जैकेट
टेक्निकल यूनिवर्सिटी चेक रिपब्लिक से आए प्रो. राजेश मिश्रा ने बताया कि उन्होंने महज ढाई किलो की ऐसी बुलेट प्रूफ जैकेट बनाई है जो एके-47 की गोली रोकने में सक्षम है। आरामीड फाइबर व थ्रीडी विविंग से मिलाकर यह जैकेट बनाई गई है। अभी तक सैनिकों को साढ़े चार किलो की बुलेटप्रूफ जैकेट पहननी पड़ती है जो बहुत भारी होती हैं। यह हल्की होने के कारण उनके काम आसान करेगी।
वाहनों का प्रदूषण रोकने के साथ इंजन की उम्र भी होगी लंबी
आइआइटी दिल्ली से आए प्रोफेसर इश्तियाक ने बताया कि विविंग फैब्रिक कंपोजिट से अब वाहनों के फिल्टर बनाए जा रहे हैं। उनका संस्थान एक कार बनाने वाली कंपनी के लिए यह फिल्टर बना रहा है। इसमें उन्हें सफलता भी मिल चुकी है। वहीं प्रो. भुवनेश गुप्ता ने फाइबर कंपोजिट से ऐसे टांके तैयार किए हैं जो पकेंगे नहीं। इन टांके का उपयोग मरीज जल्द कर सकेंगे।