इंफोसिस का प्रयास अब तारे होंगे जमीन पर..., आइआइटी कानपुर से मिलाएगा हाथ
डिसलेक्सिया पीडि़त बच्चों की मदद के लिए इंफोसिस ने आइआइटी के मानविकी और समाज विज्ञान विभाग के शोध को सहयोग का भरोसा दिया।
कानपुर, [शशांक शेखर भारद्वाज]। डिस्लेक्सिया पर किए गए आइआइटी के शोध को अब मुकाम मिलने वाला है। इस बीमारी से पीडि़त बच्चों की मदद के लिए आइटी कंपनी इंफोसिस कदम बढ़ाने जा रही है। कारपोरेट सोशल रिस्पांसबिलिटी (सीएसआर) के जरिए बच्चों को मुख्य धारा में लाने की प्लानिंग कर रही कंपनी से आइआइटी प्रशासन की बातचीत चल रही है। सब कुछ ठीक ठाक रहा तो जल्द ही दोनों के बीच करार होगा।
जानें-क्या होता है डिस्लेक्सिया
मशहूर फिल्म अभिनेता आमिर खान की फिल्म तारे जमीन पर तो जरूर देखी होगी, जिसमें दर्शील सफारी को डिस्लेक्सिया नामक बीमारी से पीडि़त दिखाया गया है। शायद आपको नहीं मालूम होगा कि महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन, टेलीफोन के जनक एलेक्जेंडर ग्राहम बेल और अभिनेता टॉम क्रूज और बोमन ईरानी भी इस बीमारी से पीडि़त रहे थे। सरल भाषा में कहे तों डिस्लेक्सिया एक ऐसी स्थिति है जिसमें किसी बच्चे को पढऩे, समझने और लिखने में दिक्कत होती है, वो अक्सर बोलने और लिखने वाले शब्दों को याद नहीं रख पाते हैं और ठीक से समझ भी नहीं पाते हैं। यह एक तरह की न्यूरोलॉजिकल समस्या है, हालांकि इसका असर बौद्धिक क्षमता पर नहीं पड़ता है।
इंफोसिस संस्थापक ने किया था आह्वान
पिछले साल इंफोसिस के संस्थापक एनआर नारायण मूर्ति और उनकी पत्नी सुधा मूर्ति आइआइटी कानपुर आए थे। उन्होंने आइआइटी के शोध और तकनीक से सामाजिक क्षेत्र में जरूरतमंदों व असहाय लोगों की सहायता करने का आह्वान किया था। उनके विचारों पर संस्थान के मानविकी और समाज विज्ञान विभाग (एचएसएस) के विशेषज्ञों ने इंफोसिस फाउंडेशन के आरोहण सोशल इनोवेशन अवार्ड में हिस्सा लिया।
टॉप 30 में था आइआइटी का शोध
देशभर में 1700 से अधिक शोध व आविष्कारों में से आइआइटी कानपुर का शोध टॉप 30 में आया। यह रिसर्च अवार्ड के लिए नहीं चयनित हुआ पर इसे हर किसी ने सराहा। आइआइटी कानपुर के एचएसएस विभाग के प्रो. बृजभूषण कहते हैं कि डिस्लेक्सिया पीडि़त बच्चों की मुश्किलें दूर करने की योजना है, कंपनी के सहयोग से बहुत कुछ किया जा सकता है।
स्कूलों से चिह्नित किए छात्र
आइआइटी के प्रो. बृजभूषण, प्रो. सतरूपा रॉय ने न्यूरोलॉजिस्ट डॉ.आलोक बाजपेयी के साथ शहर के कई स्कूलों में डिस्लेक्सिया से पीडि़त बच्चों की पहचान की। शोध के बाद इसके निदान का रास्ता खोजा।
मोबाइल एप कर रहा बच्चों की मदद
संस्थान ने बच्चों को हिंदी भाषा में आसान तरीके से समझाने के लिए मोबाइल एप विकसित किया है। इसकी शुरुआत वर्णमाला से होती है। सफेद बैकग्राउंड में बड़े फांट में काले रंग की वर्णमाला आती है। बच्चे को उसे बनाने का तरीका बताया गया है। उन्हें कैसे बिंदु से बिंदु मिलाना होता है। बच्चे के बिंदु मिलाने पर सही शब्द बनता है। सही होने पर आवाज भी आती है। दूसरे चरण में जिगसॉ पजल है। तीसरे में वर्णमालाओं के कई टुकड़े जोडऩा होता है।
यह चल रही प्लानिंग
- आइआइटी एप को सॉफ्टवेयर के रूप में टैबलेट में अपलोड करवाने की तैयारी में है।
- जरुरतमंद बच्चों को निश्शुल्क या बहुत सस्ते में दिए जा सकते हैं।
- शोध को बड़े स्तर पर करने की तैयारी है, जिसमें सभी राज्य आ जाएंगे।
- स्थानीय भाषाओं में एप और सॉफ्टवेयर तैयार करना।