चार्टर्ड बैंक से इस्तीफा देकर बने सैनिकों के मददगार, डक डाउन फेदर देने वाले पहले भारतीय हैं कानपुर के श्याम
कानपुर में रक्षा क्षेत्र के उत्पाद बनाने वाले बड़े कारोबारियों में शुमार हो चुके श्याम मेहरोत्रा ने 1975 में चार्टर्ड बैंक से इस्तीफा देकर अपना कारोबार शुरू किया था। जर्मनी से टेंडर छीनकर सैनिकों के लिए स्लीपिंग बैग बनाकर मददगार बन गए।
कानपुर, जागरण संवाददाता। सीमा पर देश की रक्षा करने वाले सैनिकों को बर्फीले मौसम से कानपुर का स्लीपिंग बैग बचा रहा है। यह शून्य से 40 डिग्री सेल्सियस तापमान पर भी सैनिकों को सुरक्षित रखता है। इसके निर्माण के लिए तंत्र के गण पार्वती बागला रोड निवासी श्याम मेहरोत्रा ने फूलबाग स्थित ओईएफ को डक डाउन फेदर (बत्तख के पंखों) की सप्लाई की थी। 45 वर्ष से ज्यादा समय से रक्षा क्षेत्र के उत्पाद बनाने वाले श्याम अब निर्यात के क्षेत्र में भी कदम रखने की तैयारी कर रहे हैं।
सात अप्रैल 1955 को जन्मे श्याम मेहरोत्रा बहुत ही कम उम्र में अपने पैरों पर खड़े हो गए थे। वर्ष 1970 में हाईस्कूल पास करते ही मात्र 15 वर्ष की आयु में उनकी चार्टर्ड बैंक में नौकरी लग गई थी लेकिन यह नौकरी उन्हें रास नहीं आई। उनके मुताबिक उनके सभी दोस्त कारोबार से जुड़े थे और वे उन्हें भी कारोबार करने के लिए कहते थे। इसलिए पांच वर्ष बैंक की नौकरी कर उन्होंने 1975 में बैंक से इस्तीफा दे दिया था। उस समय उन्हें 390 रुपये वेतन मिलता था, जो उनके लिए पर्याप्त था। अपने कारोबारी जीवन में उन्होंने पहला आर्डर टेनरी एंड फुटवियर कारपोरेशन आफ इंडिया (टेफ्को) का लिया जो सैनिकों के लिए जूते बनाती थी। उन्हें सबसे पहले झाडू सप्लाई करने का आर्डर मिला।
उस समय सैनिकों के जूतों में पीतल की कीलें लगती थीं और पीतल के स्क्रू वायर से ही उसकी सिलाई होती थी। इसकी सप्लाई में आगरा के उद्यमियों का वर्चस्व था। उन्होंने इसके टेंडर में भाग लिया और टेंडर उन्हें मिला। इसके बाद उन्होंने पीतल की कील व स्क्रू वायर बनाना शुरू कर दिया। पहला ही आर्डर उस दौर में 45 हजार रुपये का मिला था। श्याम मेहरोत्रा के मुताबिक इसके बाद उन्होंने रक्षा क्षेत्र में बनने वाली तमाम चीजों की सप्लाई की। इसमें बक्कल बनाने की एल्युमीनियम शीट, हैसियन जूट, लैमिनेटेड जूट, बूट प्लांट से जुड़े एडहेसिव की सप्लाई भी की। जूते की मशीन का मोल्ड बनवाकर आपूर्ति की लेकिन उनकी असली पहचान तब बनी जब उन्होंने बर्फीले क्षेत्र में तैनात सैनिकों के लिए बनने वाले स्लीपिंग बैग के लिए आस्ट्रेलिया से मंगवाकर डक डाउन फेदर की आर्डनेंस इक्विपमेंट फैक्ट्री (ओईएफ) को सप्लाई की।
उससे पहले जर्मनी से यहां इसकी सप्लाई होती थी लेकिन 1994 में जारी ग्लोबल टेंडर उन्हें मिला तो उन्होंने इसकी भी सप्लाई की और वह पहले सप्लायर थे, जिन्होंने भारतीय होते हुए इसकी सप्लाई की थी। इसके लिए उन्हें उस समय सम्मान पत्र भी दिया गया था। इसके लिए 5,000 किलो डक डाउन फेदर की सप्लाई की थी।
इसके बाद उन्होंने बर्फीले पहाड़ों पर चढऩे के काम आने वाले आइस स्पैनर, बैग के फ्रेम, टीपी शीट, स्किप बोर्ड, वेलक्रो भी बनाए। उन्होंने टैफ्को, ओईएफ, आर्डनेंस क्लोदिंग फैक्ट्री शाहजहांपुर, पैराशूट फैक्ट्री, डीएमएसआरडीई में आपूर्ति की। इस समय भी वह सैनिकों के टेंट में लगने वाले बहुत से उपकरण बनाकर सप्लाई कर रहे हैं। उनके अनुसार पिछले 45 वर्ष के अनुभव का लाभ उठाते हुए अब वह निर्यात के क्षेत्र में भी जाने की तैयारी कर रहे हैं।