मास्क नहीं अब नाक में लगाएं छोटा फिल्टर, घुसने नहीं देगा प्रदूषण के हानिकारक तत्व Kanpur News
आइआइटी के रिसर्च ऑफिसर ने नाक की तरह काम करने वाला अलग तरह का फिल्टर बनाया है।
कानपुर, [विक्सन सिक्रोडिय़ा]। दुनिया भर में अपनी तकनीक का लोहा मनवा रहे आइआइटी कानपुर के वैज्ञानिकों के बाद अब रिसर्च ऑफिसर ने ऐसा अनोखा नाक का फिल्टर बनाया है, जो बैक्टीरिया और वायु प्रदूषण से बचाव करेगा। बिल्कुल असली नाक की तरह यह फिल्टर पीएम-1 जैसे महीन कण को भी नहीं घुसने देगा। इसे लगाकर आसानी से बात की जा सकती है और मास्क की तरह सांस लेने में बाधा भी नहीं पैदा करेगा।
बिल्कुल नाक की तरह काम करेगा फिल्टर
खुद में अनोखा यह फिल्टर आइआइटी के सिडबी इनोवेशन एंड इंक्यूबेशन सेंटर के रिसर्च एस्टेब्लिशमेंट ऑफिसर और बायो टेक्नोलॉजी टेक्नोक्रेट रवि पांडेय ने बनाया है। उन्होंने इसे 'एंटीपॉल्यूशन एंटीबैक्टीरियल नजल ब्रीथिंग फिल्टर' नाम दिया है। फिल्टर में संरचनात्मक अवयव नाक की तरह रखे गए हैं। जिस प्रकार नाक में 'म्यूकस फ्लूड' रहता है, उसी प्रकार इस फिल्टर में 'एनामेट फ्लूड' और नाक के बाल अथवा रोम की तर्ज पर 'माइक्रो पिलर' हैं।
प्रदूषण के हानिकारक तत्व रोकेगा
रवि पांडेय ने बताया कि माइक्रो पिलर की चार लेयर बैक्टीरिया, पीएम-1 (अति सूक्ष्म धूल कण) पार्टिकल व हानिकारक तत्वों को फंसाकर रोक लेती है और नाक में नहीं घुसने देती है। इसे लगाने के बाद भी पूरी सांस ली जा सकेगी। इसे लगाने के बाद मनुष्य के शरीर की आवश्यकता के अनुसार 12 से 15 लीटर प्रति मिनट की दर से सांस ली जा सकती है। इसे केवल नाक पर लगाया जाता है, इसलिए आसानी से बात कर सकते हैं। एक नजल फिल्टर 45 दिन तक चलेगा। इसका आइआइटी की प्रयोगशाला में सफल परीक्षण हो चुका है। यातायात पुलिस के लिए यह काफी लाभदायक होगा। उन्हें धूल व धुएं से बचने के साथ वाहनों को रोकना व वाहन चालकों को निर्देशित भी करना होता है।
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग ने दिया दस लाख का अनुदान
रवि पांडेय ने बताया कि नजल फिल्टर बनाने के लिए विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के अंतर्गत निधि 'प्रयास' ने दस लाख रुपये का अनुदान दिया है। इसकी तकनीक पेटेंट कराई जा चुकी है। प्रोटोटाइप तैयार कराकर बल्क मैन्यूफैक्चरिंग की तैयारी की जा रही है। विभाग ने इसके लिए 12 महीने का समय दिया है।