कानपुर कमिश्नरेट पुलिस को लेकर आइआइटी की चौंकाने वाली रिपोर्ट, आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस से खुली पोल
आइआइटी कानपुर और कमिश्नरेट पुलिस मिलकर आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस पर काम कर रही है। इसके पहले चरण में पीआरवी की लोकेशन पर कल्याणपुर सर्किल में 20 सप्ताह तक प्रयोग चला जिसमें पुलिस गश्त समेत रिस्पांस टाइम की असलियत सामने आ गई।
कानपुर, गौरव दीक्षित। दो दिन पहले नवागत पुलिस आयुक्त विजय सिंह मीना ने पुलिस की गश्त को लेकर जो चिंता जताई थी, वह अब आइआइटी कानपुर की रिपोर्ट में भी सामने आ गई है। कमिश्नरेट पुलिस की गश्त की पोल खोलते हुए आइआइटी की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि पीआरवी (पुलिस रिस्पांस व्हीकल) 90 प्रतिशत नियत स्थानों पर खड़ी ही नहीं होती हैं। पुलिस कर्मी या तो मौके पर होते ही नहीं हैं या मनमानी करते हैं। बड़ी बात ये है कि मामला पीआरवी की लोकेशन से गायब रहने तक सीमित नहीं है, आइआइटी रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि पुलिस कंट्रोल रूम में लोकेशन दर्ज कराने की जो व्यवस्था है, वह भी फेल है। रिपोर्ट का आधार केवल कल्याणपुर सर्किल है, लेकिन आइआइटी के विशेषज्ञों का मानना है कि यह स्थिति पूरे जनपद में है। जल्द ही आइआइटी के विशेषज्ञ एडीजी तकनीक से मिलकर पुलिस की गश्त व्यवस्था में बदलाव का माडल पेश कर सकते हैं।
आइआइटी कानपुर और कमिश्नरेट पुलिस ने छह महीने पहले आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (एआइ) पर एक साथ काम शुरू किया था। इसमें गणितीय माडल के माध्यम से एक ऐसी पद्धति विकसित की गई है, जिसमें कंप्यूटर यह बताता है कि किस दिन किन-किन स्थानों पर पुलिस गश्त तैनात की जाए, जिससे आपराधिक घटनाएं रुकें और किसी भी सूचना पर पुलिस जल्द से जल्द पहुंच सके। इससे पुलिस न केवल समय पर घटनास्थल पर होगी, बल्कि कम दूरी तय करने की वजह से तेल का खर्च भी बचेगा। इसके लिए पांच साल के अपराध के आंकड़ों और कंट्रोल रूम को मिलने वाली सूचनाओं को पहले कंप्यूटर में फीड किया गया। रिकार्ड में दिन, समय, स्थान के अलावा अपराध की प्रकृति और सूचना की प्रकृति भी दर्ज है। इसी के आधार पर कंप्यूटर बताता है कि पुलिस की पीआरवी किस दिन कहां और किस स्थान पर रहनी चाहिए।
कल्याणपुर सर्किल में हुआ प्रयोग : आइआइटी के इस गणितीय माडल को पूरे पुलिस विभाग में लागू होना है, लेकिन प्रयोग के तौर पर कानपुर कमिश्नरेट को फिलहाल चुना गया है। कमिश्नरेट में भी कल्याणपुर सर्किल के कल्याणपुर, बिठूर और पनकी थाना क्षेत्रों में 20 हफ्ते तक यह प्रयोग चला। कुछ स्थानों पर प्रभारी निरीक्षक पीआरवी की ड्यूटी तय करते थे, जबकि कुछ स्थानों पर कंप्यूटर बताता था कि कहां पीआरवी को खड़ा होना है।
ये है आइआइटी की रिपोर्ट : आइआइटी ने जो रिपोर्ट कमिश्नरेट पुलिस को सौंपी है, उसमें कहा गया है कि 10 प्रतिशत पीआरवी ही नियत स्थान पर खड़ी मिली है। शेष 90 प्रतिशत मनमानी करते हैं। कुछ दूसरे स्थान पर खड़े हो जाते हैं तो कुछ निकलते ही नहीं हैं। यही नहीं रिपोर्ट के मुताबिक जो अफसर पीआरवी की लोकेशन लेते हैं, वे भी कंट्रोल रूम को गलत फीडिंग करते हैं। बड़ी बात यह है कि कमिश्नरेट पुलिस अपना रिस्पांस टाइम जहां आठ मिनट बता रही है, वहीं आइआइटी के विशेषज्ञों का मानना है कि कमिश्नरेट पुलिस का रिस्पांस टाइम 15 से 20 मिनट है।
प्रयोग सफल रहा : इस मामले में प्रयोग का नेतृत्व कर रहे आइआइटी के प्रोफेसर निशिथ श्रीवास्तव ने बताया कि पीआरवी लोकेशन पर नहीं खड़ी हो रहीं। जिन 10 प्रतिशत मामलों में पीआरवी तय स्थान पर खड़ी रही, वहां से घटनास्थल पर पहुंचने में पुलिस को कम दूरी व कम समय खर्च करना पड़ा। इस लिहाज से यह साफ है कि प्रयोग सफल है, लेकिन पीआरवी को नियत स्थान पर खड़ा करना पुलिस अफसरों का काम काम है। अगर पीआरवी नियत स्थान पर खड़ी हो तो प्रदेश पुलिस हर साल लगभग पांच करोड़ रुपये के तेल की बचत कर सकती है। वह जल्द ही एडीजी तकनीक से मिलकर पीआरवी की गश्त व्यवस्था में बदलाव का माडल पेश करेंगे।