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अनोखा है कानपुर स्थित इस मंदिर का इतिहास, महाभारत कालीन शिवालय के विषय में हैं कई मान्यताएं

मान्यता है कि द्वापर युग में गुरु द्रोणाचार्य और पुत्र अश्वत्थामा ने भगवान शंकर काे प्रसन्न करने के लिए यहां कठोर तप किया था। तब यहां घना जंगल हुआ करता था। भगवान शिव उनके तप से प्रसन्न हो गए थे और उन्होंने पिता पुत्र को दर्शन दिया था।

By ShaswatgEdited By: Published: Thu, 26 Nov 2020 05:38 PM (IST)Updated: Thu, 26 Nov 2020 05:38 PM (IST)
अनोखा है कानपुर स्थित इस मंदिर का इतिहास, महाभारत कालीन शिवालय के विषय में हैं कई मान्यताएं
कानपुर के महाराजपुर स्थित खेरेश्वर महादेव का मंदिर।

कानपुर, जेएनएन। गंगा के सुरम्य तट के समीप बसे छतरपुर गांव में स्थति खेरेश्वर महादेव का अति प्राचीन मंदिर है। यह भक्तों की अटूट आस्था और श्रद्धा का केंद्र है। इस मंदिर का इतिहास महाभारत कालीन है और गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा इस मंदिर में पूजन के लिए आते हैं ऐसी मान्यता है। छतरपुर गांव शिवराजपुर कस्बा के समीप स्थित है और यहां कानपुर ही बल्कि कई जिलों के श्रद्धालु आते हैं।  हालांकि यह मंदिर और उसके आसपास का इलाका प्रशासनिक उपेक्षा का शिकार भी है।

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ये है मंदिर के बारे में मान्यता 

मान्यता है कि द्वापर युग में गुरु द्रोणाचार्य और पुत्र अश्वत्थामा ने भगवान शंकर काे प्रसन्न करने के लिए यहां कठोर तप किया था। तब यहां घना जंगल हुआ करता था। भगवान शिव उनके तप से प्रसन्न हो गए थे और उन्होंने पिता पुत्र को दर्शन दिया था। तब गंगा की कल- कल लहरें यहीं से होकर गुजरती थीं। उस समय यह इलाका कर्ण प्रदेश के अंतरगत आता था। पुजारी कमलेश कुमार गोस्वामी का कहना है कि आज भी इस मंदिर में अश्वत्थामा दर्शन पूजन केक लिए आते हैं। रात्रि में शयन आरती के समय मंदिर धुला जाता है। गर्भगृह और शिवलिंग पर एक भी पुष्प नहीं होता और न ही कोई पूजन सामग्री होती है, लेकिन जब सुबह मंदिर खुलता है तो शिवलिंग पर पुष्प अर्पित मिलता है। इस रहस्य को जानने के लिए प्रयास तो खूब हुए लेकिन कभी इसे कोई जान नहीं सका।

इसलिए सत्य मानते कहानी

मान्यता है कि दुर्योधन के गदा युद्ध में जख्मी होने के बाद अश्वत्थामा का पांडव से युद्ध हुआ था। तब अश्वत्थामा ने अर्जुन पर ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया था। अर्जुन ने भी ब्रह्मास्त्र छोड़ दिया था। महर्षि के कहने पर दोनों ने ब्रह्मास्त्र वापस ले लिया था। अश्वत्थामा द्वारा पांडु पुत्रों की हत्या के बाद पांडु खेमे में कोहराम मच गया था। इसके बाद भगवान श्रीकृष्ण ने अश्वत्थामा को शाप दिया था। अश्वत्थामा की मणि निकाल ली गई थी, लेकिन वह अब भी जिंदा है और भटक रहा है। इसी लिए इस मान्यता को बल मिलता है कि  अश्वत्थामा इस मंदिर में पूजन के लिए आते हैं।

इन जिलों से आते हैं श्रद्धालु

मंदिर में महादेव का पूजन व अभिषेक करने के लिए सुदूर क्षेत्राें से बड़ी संख्या में लोग पहुंचते हैं। इनमें कानपुर देहात, हरदोई, फर्रुखाबाद, उन्नाव, सीतापुर, लखनऊ, फतेहपुर, हमीरपुर, बांदा, चित्रकूट आदि जिले प्रमुख हैं। 


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