खतरे में 10 हजार किताबों की विरासत, यहां मिलता है देश की भाषाओं का खास संकलन
कानपुर में 58 साल पुराना पार्षद पुस्तकालय बदहाल हालत में है यहां की टूटी अलमारियों में कैद किताबों पर धूल की मोटी परत जमा है।संसाधनों और रखरखाव के साथ स्टाफ की कमी से पाठकों ने भी मुंह मोड़ लिया है।
जागरण संवाददाता, कानपुर : फूलबाग स्थित गांधी भवन का पार्षद पुस्तकालय बदहाल है। संसाधनों, रखरखाव के अभाव में पुस्तकालय में अब सन्नाटा पसरा रहता है। सैकड़ों साल का इतिहास समेटे 10 हजार किताबों की विरासत खतरे में है। 58 साल पुराने इस पुस्तकालय में हिंदी, पंजाबी, मराठी, गुजराती, कन्नड़, मलयालम भाषा में साहित्य व कानून की किताबों पर धूल की मोटी परत जमा है। टूटी अलमारियों में किताबों को टिका दिया गया है। पुस्तकालय को आइसीयू से बाहर लाने के लिए प्रशासन की ओर से सार्थक पहल की दरकार है।
दो फरवरी 1963 में स्थापित हुआ था पुस्तकालय : दो फरवरी 1963 में कानपुर पब्लिक लाइब्रेरी (वर्तमान नाम पार्षद पुस्तकालय) को स्थापित किया गया था। तत्कालीन मुख्यमंत्री चंद्रभानु गुप्ता ने इस पुस्तकालय का उद्घाटन किया था। यहां रखीं किताबों में एक 3600 पेज का शब्दकोश है। इसके अंदर के शुरुआती पन्ने खराब हो चुके हैं। इसमें शब्दों का भंडार होने के साथ-साथ अमेरिका के पक्षियों और वहां की प्राचीन मुद्राओं का ब्योरा दिया गया है।
ताला लगने की नौबत : बदहाली का दंश झेल रहे पुस्तकालय में ताला लगने की नौबत आ गई है। लाइब्रेरियन की नियुक्ति नहीं है। जबकि यहां पर आठ लोगों के स्टाफ की जरूरत है। क्लर्क अमित बताते हैं कि प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करने वाले 25 से 30 युवा ही यहां आते हैं। मासिक सदस्य बनने के लिए 130 रुपये निर्धारित है। एक समय था जब यहां किताब प्रेमियों की भीड़ जुटती थी। अब यहां सन्नाटा पसरा रहता है।
चार करोड़ का प्रोजेक्ट तैयार : केडीए पार्षद पुस्तकालय की देखरेख का जिम्मा संभाल रहा है। गांधी भवन के सुंदरीकरण के लिए स्मार्ट सिटी लिमिटेड ने चार करोड़ रुपये का प्रोजेक्ट तैयार किया है। सारनाथ की तर्ज पर लाइट एंड साउंड के जरिए स्वतंत्रता संग्राम और शहर का इतिहास दिखाने व पुस्तकालय का नवीकरण प्रस्तावित है। इसके लिए टेंडर प्रक्रिया चल रही है, लेकिन अभी तक कार्य गति नहीं पकड़ पाया है।