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Kanpur Heritage: 90 साल तक भारतीय नहीं देख पाए थे मेमोरियल वेल, अंग्रेजों ने लगाई थी पाबंदी

कानपुर में एतिहासिक स्थलों में शुमार मेमोरियल वेल को देखने के लिए सिर्फ अंग्रेज ही जा सकते थे। कई बार पास जारी करने को लेकर बात उठी लेकिन कोई हल नहीं निकला। कांग्रेस अधिवेशन के दौरान कुछ नेता जबरन घुस गए थे।

By Abhishek AgnihotriEdited By: Published: Mon, 07 Dec 2020 11:25 AM (IST)Updated: Mon, 07 Dec 2020 11:26 AM (IST)
Kanpur Heritage: 90 साल तक भारतीय नहीं देख पाए थे मेमोरियल वेल, अंग्रेजों ने लगाई थी पाबंदी
कानपुर में पुरात्व विभाग का संरक्षित मेमोरियल वेल।

कानपुर, [राजीव सक्सेना]। शहर के एतिहासिक स्थलों में शुमार पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित मेमोरियल वेल को भारतीय 90 साल तक नहीं देख पाए थे।। 1857 का विद्रोह अंग्रेज कुचल चुके थे और इस विद्रोह को लेकर उन्हें जिन लोगों पर शंका थी, उनको भी वे अलग-अलग तरह की सजाएं दे चुके थे। इसके बाद अंग्रेजों ने पूरा ध्यान लगाया मेमोरियल वेल बनाने में, जिसमें अगले 90 वर्ष तक भारतीय नहीं जा सके। बीच में पास जारी करने की बात भी हुई लेकिन भारतीयों को अंग्रेज मित्रों के साथ भी जाने की अनुमति नहीं मिलती थी।

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1925 में जबरन घुसे थे कांग्रेस के नेता

1925 में जब कानपुर में कांग्रेस का अधिवेशन हुआ तो कांग्रेस के करीब एक दर्जन नेताओं सहित 20 लोग भारतीय वेशभूषा में जबरन मेमोरियल वेल में घुसे। इसमें एक अंग्रेज सांसद डाॅ. वीएच रदरफोर्ड भी शामिल थे। वहां से बाहर निकलते समय सभी ने एक स्लिप भी लिखकर दी कि चौकीदार के मना करने के बाद भी वे लोग भारतीय वेशभूषा में जबरन घुसे। इसमें सभी ने अपने नाम भी लिखे। आखिरकार 1947 में जब अंग्रेज चले गए तभी भारतीय मेमोरियल गार्डन में जा सके, अब उन्हें किसी की अनुमति की जरूरत नहीं थी।

कुएं को दिया था कब्र का रूप, लगाई थी एंजिल प्रतिमा

कुएं में अंग्रेजों को मारकर डाला गया था, उसे एक कब्र का रूप दिया गया। कुएं के चारों और पत्थरों की नक्कासीदार जाली बनाई गई। इसके बीच एक मूर्ति भी लगाई गई, जिसे एंजिल कहा गया। यहां लगभग 40 एकड़ क्षेत्र में गार्डन बनाया गया। इसी को मेमोरियल वेल गार्डन का नाम दिया गया। इसके पास ही गार्डन के अधीक्षक के लिए दो एकड़ में एक बंगला बनाया गया। एक अगस्त 1919 को यह गार्डन दि कानपुर मेमोरियल वेल गार्डन सोसाइटी को सौंप दिया गया।

1938 में लगा दो आना शुल्क

1938 में नियमों में बदलाव कर गार्डन में प्रवेश के लिए दो आना शुल्क तय किया गया। इससे मिलने वाली राशि से गार्डन के रखरखाव की व्यवस्था की गई। आखिरकार 15 अगस्त 1947 को आजादी मिलने के बाद भारतीय इस गार्डन में जा सके। उन्हें इसके बाद इसमें जाने के लिए किसी की अनुमति की जरूरत नहीं थी।


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