GSVM मेडिकल कॉलेज में होगा Black Fungus पर शोध, दवाइयों के असर का भी लगाएंगे पता
जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के विशेषज्ञ ब्लैक फंगस पर शोध करेंगे और इलाज के दौरान दवाइयों और उनके इफेक्ट का पता लगाएंगे। साथ ही नाक की कोशिकाओं व बायोप्सी के टिश्यू को लेकर भी अध्ययन करेंगे। इलाज के तरीके में बदलाव कर महामारी से निजात पाने का प्रयास होगा।
कानपुर, जेएनएन। देश में ब्लैक फंगस (म्यूकर माइकोसिस) के तेजी से फैलते संक्रमण के बीच मरीजों के स्वजन से लेकर आमजन में भ्रम की स्थिति बन गई है। इसे दूर करने के लिए अब जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज की बहु विषयक अनुसंधान इकाई यानी मल्टी डिसिप्लिनरी रिसर्च यूनिट (एमआरयू) में ब्लैक फंगस फैलने की वजह पर शोध होगा। इसमें इलाज के दौरान दवाओं के प्रभाव का पता लगाकर इलाज के तरीके में बदलाव कर महामारी से निजात पाने का प्रयास होगा।
बैक्टीरिया, वायरस और फंगल हमारे वातावरण में मौजूद रहते हैं, जो नाक और मुंह के माध्यम से शरीर के अंदर घुसते हैं। नाक, गले व फेफड़े में संक्रमण पैदा करते हैं। सामान्य स्थिति में बैक्टीरियल इंफेक्शन होता है। शरीर की प्रतिरोधक क्षमता कमजोर (इम्योनो कम्प्रोमाइज स्टेज) होने पर फंगल इंफेक्शन होता है। इसमें कुछ फंगल निष्क्रिय होते हैं, जबकि कुछ तेजी से फैलते हैं। म्यकूर माइकोसिस भी नाक गले से होकर नाक की हड्डी के अगल-बगल के साइनस के म्यूकोजा को संक्रमित कर आंख व ब्रेन की हड्डियों को तोड़कर आगे बढ़ता है। यह खून की नलिकाओं में पहुंच कर उन्हें ब्लॉक कर देता है, जिससे प्रभावित हिस्सा काला पडऩे लगता है। इससे ब्रेन स्ट्रोक से मौत हो जाती है। कई बार फेफड़ों में पहुंच कर निमोनिया पैदा करता है।
एस्परजिलस फंगल है कॉमन : समान्य स्थिति में 90 फीसद मरीजों में एस्परजिलस फंगस का संक्रमण मिलता था। इस बार बदलाव देखने को मिला है कि कोरोना या इससे उबरने वाले 99 फीसद मरीज म्यूकर माइकोसिस की चपेट में आ रहे हैं। वहीं, पहले आइसीयू में भर्ती मरीजों में कैनडिडा का संक्रमण मिलता था।
हाई रिस्क में यह मरीज : अनियंत्रित मधुमेह, गुर्दा, लिवर कैंसर, कैंसर पीडि़त रेडियोथेरेपी एवं कीमोथेरेपी के मरीज, लंबे समय तक स्टेरॉयड का सेवन, ऑटो इम्यून डिजीज।
ये है पुराना अध्ययन : पुराने अध्ययन के मुताबिक, शरीर में आयरन की अधिकता से म्यूकर माइकोसिस होता है, जबकि इस बार मरीजों को आयरन दिया ही नहीं गया।
ऐसे करेंगे शोध
न्यूरो सर्जरी विभागाध्यक्ष डॉ. मनीष ङ्क्षसह का कहना है कि पहली बार इस तरह से फैले म्यूकर माइकोसिस को लेकर वजह जानना जरूरी है। पीडि़तों की पूरी हिस्ट्री तैयार की जाएगी। उन्हें कौन-कौन सी दवाइयां चलाई गईं। उनके नाक की सेल (कोशिकाएं) लेकर उसका कल्चर कराएंगे। फिर उनकी दवाइयों का परीक्षण कर देखा जाएगा कि म्यूकर माइकोसिस किससे ग्रोथ कर रहा है। माइक्रोबायोलॉजी लैब से बायोप्सी के टिश्यू के सैंपल लेकर बायोकेमिकल में बदलाव का अध्ययन भी होगा। अगर बदलाव की बात सामने आई तो इलाज में चूक जानेंगे। उसकी जेनेटिक सिक्वेंसिंग भी की जाएगी।