अलविदा 2021 : जानिए कानपुर को पुलिस कमिश्नरेट का तोहफा मिलने के बाद कैसा बीता साल, क्या मिला सबक
Good bye 2021 कानपुर की पुलिसिंग के लिहाज से यह साल ऐतिहासिक रहा है। पुलिस कमिश्नरेट होने के बाद अपराध के आंकड़ों में कमी आई साथ ही सड़क पर लोग लाल-हरी बत्ती के सहारे चलना सीख गए। अपराध की चर्चित घटनाओं ने झकझोरा तो प्रमुख आयोजन बने सबक की पाठशाला।
कानपुर, जागरण संवाददाता। Good bye 2021 वर्ष 2021 कानपुर की पुलिसिंग के लिहाज से ऐतिहासिक साल रहा। वर्षों की लंबी प्रतीक्षा के बाद बिकरू कांड से सबक लेते हुए कानपुर में सरकार ने कमिश्नरेट पुलिस प्रणाली लागू कर दी। नए सिस्टम ने अपना रंग दिखाया तो अपराध का ग्राफ गिरा और संगठित अपराध के खिलाफ जमकर चाबुक चला। कमिश्नरेट में सबसे बड़ी कामयाबी यातायात प्रबंधन को मिली। लंबे होमवर्क के बाद शहरवासी हेलमेट व सीट बेल्ट लगाकर वाहन चलाने के साथ ही लाल-हरी बत्ती पर चलने का सलीका सीख पाए। अपराध की कुछ बड़ी घटनाओं ने शहर को झकझोरा।
कमिश्नरेट पुलिस ने कोरोना काल में जनसेवा के नाम पर आम लोगों का विश्वास जीता। 26 मार्च को जब पहले पुलिस आयुक्त ने कार्यभार संभाला तो ज्यादा शक्तियां, ज्यादा नियंत्रण, बेहतर नियोजन का सूत्रवाक्य दिया। नई प्रणाली में पुलिस को कुछ मजिस्ट्रेटी शक्तियां मिलीं तो अधिकारियों की फौज भी काम के लिए भेजी गई। इसका असर न केवल अपराध नियंत्रण मेंं दिखाई पड़ा, बल्कि यातायात व्यवस्था को सुधारने पर भी काम हुआ। शहर के प्रमुख चौराहे सीसीटीवी कैमरों व लाल-हरी ट्रैफिक लाइटों से लैस हैं। धड़ाधड़ चालान घर पहुंचने शुरू हुए तो शहर ट्रैफिक लाइट पर चलना सीख पाया। हेलमेट और सीट बेल्ट लगाकर लोग वाहन चलाने लगे हैं। कई इलाकों में सड़क किनारे अतिक्रमण हटा है, जिससे आम लोगों का आवागमन सुगम हुआ है।
कानपुर से ही हुई थी पुलिस कमिश्नरेट की शुरुआत
भले ही लखनऊ और नोएडा में पहले से ही पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू हो चुकी है, मगर कानपुर वह पहला शहर है, जहां दशकों पहले यह व्यवस्था लागू हो चुकी थी। कानपुर में वर्ष 1976-77 में पुलिस कमिश्नर प्रणाली लगभग एक साल तक लागू रही। यह केवल प्रयोग के तौर पर लागू की गई थी, पर अधिक उत्साहजनक नतीजे न मिलने की वजह से इस व्यवस्था को समाप्त कर दिया गया। इसके बाद वर्ष 2009 में मायावती सरकार ने नोएडा और गाजियाबाद को मिलाकर पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू करने की कोशिश की, मगर यह व्यवस्था लागू नहीं हो सकी।
जनोन्मुखी पुलिसिंग...
सबसे बड़ा परोपकार
महानगर में कमिश्नरेट पुलिस व्यवस्था की घोषणा सरकार की ओर से 25 मार्च को की गई और 26 मार्च को पहले पुलिस आयुक्त के रूप में असीम अरुण ने कार्यभार संभाला। उस वक्त शहर कोरोना की चपेट में था। इस महामारी में पुलिस मददगार बनकर लोगों के बीच पहुंची। अस्पताल, आक्सीजन सिलिंडर बैंक, प्लाज्मा बैंक के साथ ही रक्तदान को प्रोत्साहित करने लिए रक्तदान शिविर आयोजित करके कमिश्नरेट पुलिस ने आम शहरी के बीच पैठ बनाई। इसके बाद पुलिस आयुक्त ने वरिष्ठ नागरिकों की समस्याओं को लेकर जिस तरह से आगे बढ़कर समाधान किया, उससे समाज के अंदर एक अलग ही संदेश गया।
यह रही चुनौती:
सबसे बड़े आयोजन
राष्ट्रपति का आगमन : कमिश्नरेट बनने के बाद 25 से 27 जून के बीच राष्ट्रपति राम नाथ कोविन्द का दौरा कमिश्नरेट पुलिस की पहली परीक्षा थी। तीन दिनों के व्यस्त कार्यक्रमों में राष्ट्रपति कानपुर देहात स्थित अपने गांव परौंख भी गए थे। पूरा कार्यक्रम ठीक ढंग से निपट गया, मगर शहर में जब राष्ट्रपति का काफिला रोका गया तो जाम लगा। उस जाम में फंसकर शहर के महिला उद्यमी वंदना मिश्रा की मृत्यु हो गई। इस घटना पर पुलिस आयुक्त असीम अरुण ने न केवल शोक संतप्त परिवार के घर जाकर माफी मांगी थी, बल्कि यह भी तय हुआ था कि किसी भी वीवीआइपी मूवमेंट के बीच किसी एंबुलेंस को रोका नहीं जाएगा, बल्कि ग्रीन कारिडोर बनाकर उन्हें निकाला जाएगा।
ग्रीनपार्क टेस्ट मैच : भारत और न्यूजीलैंड के बीच ग्रीनपार्क में 25 से 29 नवंबर के बीच टेस्ट मैच खेला गया। भीड़भाड़ के लिहाज से यह बड़ी चुनौती थी। कमिश्नरेट पुलिस ने मैच समाप्त होने के बाद जो आंकड़े जारी किए उसके मुताबिक ग्रीनपार्क में कुछ वर्ष पूर्व हुए टेस्ट मैच की अपेक्षा एक तिहाई फोर्स तैनात करके सकुशल आयोजन संपन्न कराया गया। पुलिसकर्मियों के स्थान पर तकनीक व प्लानिंग का सहारा लिया गया। यह आयोजन पूरी तरह सफल साबित हुआ।
प्रधानमंत्री का दौरा : प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 28 दिसंबर को एक दिवसीय दौरे पर कानपुर पहुंचे। यहां उन्होंने आइआइटी के दीक्षा समारोह, मेट्रो व बीपीसीएल पाइप लाइन के लोकार्पण के अलावा निराला नगर में जनसभा को भी संबोधित किया। यह दौरा कमिश्नरेट पुलिस के इंतजामों के लिहाज से ऐतिहासिक रहा। मौसम के बिगड़े रुख के चलते ऐन टाइम प्रधानमंत्री का तय कार्यक्रम बदलना पड़ा। उन्हें पूरे हवाई मार्ग से एक कार्यक्रम स्थल से दूसरे कार्यक्रम स्थल जाना था, लेकिन आखिर में उन्हें सड़क मार्ग से यात्रा करनी पड़ी। आखिर में उन्हें लखनऊ तक सड़क मार्ग से ही जाना पड़ा। यह चैप्टर कमिश्नरेट पुलिस के साथ ही अन्य एजेंसियों के लिए किसी प्रशिक्षण से कम नहीं था।
यह रहे दाग...
सबसे बड़ी घटनाएं
गुलमोहर अपार्टमेंट कांड : 22 सितंबर को कल्याणपुर स्थित गुलमोहर अपार्टमेंट की दसवी मंजिल से फेंककर एक युवती की हत्या कर दी गई थी। जांच में सामने आया कि वह माडल डेयरी के मालिक डा. एसके वैश्य के बेटे प्रतीक वैश्य के कार्यालय में काम करती थी। प्रतीक ने तीन दिन पहले ही उसे नौकरी पर रखा था और काम सिखाने के बहाने युवती को अपने घर लाया था। पुलिस इस प्रकरण में चार्जशीट लगा चुकी है। आरोप है कि प्रतीक ने युवती के साथ दुष्कर्म करने के बाद उसे दसवीं मंजिल से नीचे फेंक दिया। प्रतीक वैश्य इस समय जेल में है।
डिविनिटी हत्याकांड : 3 दिसंबर को कल्याणपुर थानाक्षेत्र स्थित इंदिरा नगर के डिविनिटी होम्स अपार्टमेंट निवासी डा. सुशील कुमार ने अपनी पत्नी चंद्रप्रभा, 21 साल के बेटे शिखर व 16 साल की बेटी खुशी की हत्या कर दी थी। डाक्टर घर पर नहीं मिला था। उसका लिखा नोट बरामद हुआ, जिससे पता चला कि वह अवसाद में था और उसकी वजह से ही उसने इस घटना को अंजाम दिया। चूंकि डाक्टर लापता था, इसलिए तमाम आशंकाएं व्यक्त की गई। हालांकि बाद में डाक्टर का शव भी गंगा में मिला। डाक्टर ने परिवार की हत्या के बाद अटलघाट पर गंगा में कूदकर आत्महत्या कर ली थी।
फजलगंज तिहरा हत्याकांड : एक अक्टूबर की रात फजलगंज निवासी परचून दुकानदार प्रेम किशोर उनकी पत्नी ललिता व 12 वर्षीय बेटे नैतिक की हत्या कर दी गई थी। पुलिस ने तीन दिन बाद इस वारदात का पर्दाफाश किया तो पता चला कि प्रेमकिशोर के दोस्त गौरव शुक्ला और हिमांशु चौहान ने लूट के इरादे से ट्रेन छूटने का बहाना बनाकर उसके घर में रुके। जब पूरा परिवार सो गया तो सभी को बेहोश करके दोनों आरोपितों ने पूरे परिवार को मौत के घाट उतार दिया।
कचहरी में बवाल : 17 दिसंबर को कचहरी में बार एसोसिएशन का मतदान था। मतदान में बवाल हुआ तो मतदान निरस्त कर दिया गया। शाम को अचानक गोली चली, जिसमें एक वकील गौतम दत्त की मौत हो गई। कचहरी के इतिहास में पहली बार चुनाव के दौरान कचहरी परिसर में इस तरह से हत्या की वारदात को अंजाम दिया गया।