Move to Jagran APP

स्‍वतंत्रता के सारथी : इस किसान ने खोजा अंत्येष्टि में लकड़ी का विकल्प, अब गो-काष्ठ से अंतिम संस्कार

उन्नाव के किसान की पहल से प्रतिमाह 315 पेड़ों का जीवन बचाया जा सकेगा।

By AbhishekEdited By: Published: Sat, 10 Aug 2019 12:26 PM (IST)Updated: Sat, 10 Aug 2019 10:37 PM (IST)
स्‍वतंत्रता के सारथी : इस किसान ने खोजा अंत्येष्टि में लकड़ी का विकल्प, अब गो-काष्ठ से अंतिम संस्कार
स्‍वतंत्रता के सारथी : इस किसान ने खोजा अंत्येष्टि में लकड़ी का विकल्प, अब गो-काष्ठ से अंतिम संस्कार

उन्नाव, [राजीव द्विवेदी]। मृत्यु अंतिम सत्य तो अन्त्येष्टि जीवन का आखिरी संस्कार है। इसके लिए लकड़ी की चिता पर अंतिम संस्कार की मान्यता अब पर्यावरण के लिए नुकसानदेह साबित होने लगी है और हजारों की संख्या में पेड़ कटने से जीवन के लिए खतरा दिन-ओ-दिन बढ़ता जा रहा है। हालांकि विद्युत शव दाह गृह का विकल्प दिया गया लेकिन यह विकल्प पारंपरिक मान्यताओं के चलते ज्यादा कारगर नहीं हो सका है। इसपर बेहद गंभीर उन्नाव के किसान ने अब अंत्येष्टि में लकड़ी के विकल्प को खोज निकाला है। अब अंतिम संस्कार के लिए न तो लकड़ी जलानी पड़ेगी और न ही पेड़ काटने पड़ेंगे।

loksabha election banner

लकड़ी की जगह अब गो-काष्ठ का इस्तेमाल

उन्नाव के कल्याणी मोहल्ला निवासी किसान व पर्यावरण प्रेमी रमाकांत दुबे ने पहल की है और उनका प्रोजेक्ट प्रशासन को भी खूब भाया। उन्होंने गाय के गोबर से बने गो-काष्ठ को लकड़ी के विकल्प रूप में तैयार किया है, ये पर्यावरण संरक्षण में भी मददगार भी। उन्होंने बताया कि 75 हजार से एक लाख रुपये लागत वाला यह प्लांट रोज दो क्विंटल गो-काष्ठ तैयार करेगा। इसके लिए गो आश्रय स्थलों से गोबर खरीदा जाएगा, उनकी आमदनी से गो संरक्षण भी होगा।

प्रतिमाह बच जाएंगे 315 पेड़

यदि अंत्येष्टि में गो-काष्ठ का प्रयोग सफल तरीके से हुआ तो अकेले उन्नाव जिले में ही हर साल ही करीब 3780 पेड़ यानि प्रतिमाह 315 पेड़ बच जाएंगे और वन क्षेत्र बचने से पर्यावरण बेहतर होगा। 10 वर्ष का एक पेड़ 10 ङ्क्षक्वटल लकड़ी देता है। प्रतिमाह 3150 किवंटल लकड़ी जलाई जाती है। गोकाष्ठ से हर माह 315 पेड़ कटने से बच जाएंगे।

प्रतिमाह 900 अंत्येष्टि में जल जाती 3150 क्विंटल लकड़ी

बांगरमऊ के नानामऊ घाट पर एक माह में औसतन 110, बक्सर में औसतन 500, शुक्लागंज में औसतन 110 और परियर घाट पर औसतन 200 शवों का दाह संस्कार होता है। जिले में प्रतिमाह करीब 900 शवों की अंत्येष्टि होती है और इसमें 3150 किवंटल लकड़ी जल जाती है। गो-काष्ठ अधिकतम 1800 किवंटल लगेगी जिसकी कीमत ज्यादा से ज्यादा 7.20 लाख रुपये होगी वहीं लकड़ी की कीमत 31.50 लाख होगी।

लकड़ी से बेहतर, पर्यावरण हितैषी भी

लकड़ी में 15 फीसद तक नमी होती है, जबकि गो-काष्ठ में डेढ़ से दो फीसद ही नमी रहती है। लकड़ी जलाने में 5 से 15 किलो देसी घी या फिर रार का उपयोग होता है, जबकि गो-काष्ठ जलाने में एक किलो देसी घी पर्याप्त होगा। लकड़ी के धुएं से कार्बन डाईआक्साइड गैस निकलती है जो पर्यावरण व इंसानों के लिए नुकसानदेह है जबकि गो-काष्ठ जलाने से 40 फीसद आक्सीजन निकलती है जो पर्यावरण संरक्षण में मददगार होगी। गोकाष्ठ में लेकमड (तालाब का कीचड़) मिलाई जाती है जिससे देर तक जलती है।

पांच गुना कम खर्च

अंत्येष्टि में अमूमन सात से 11 मन ( एक मन में 40 किलो) यानि पौने तीन से साढ़े चार किवंटल लकड़ी लगती है। शुद्धता के लिए 200 कंडे लगाए जाते हैं। लकड़ी की कीमत तीन से साढ़े चार हजार रुपये होती है वहीं गोकाष्ठ की कीमत अधिकतम चार रुपये किलो तक होगी। एक अंत्येष्टि में यह डेढ़ से दो किवंटल लगेगी तो 600 से 800 रुपये में अंत्येष्टि हो सकेगी।

60 किलो गोबर से बनेगी 15 किलो गो-काष्ठ

60 किलो गोबर से 15 किलो गो-काष्ठ बनेगा। एक किलो गो-काष्ठ बनाने में अधिकतम तीन से चार रुपये का खर्च आता है जो एक किलो लकड़ी की कीमत से करीब 60 फीसद सस्ता है। यदि अनुमान के तौर पर देखें तो जिले में 205 गोशालाएं हैं, जिनमें करीब 5417 गोवंशीय है। इस तरह प्रतिदिन करीब 5400 किलो एकत्र होगा और इससे 1350 किलो गो-काष्ठ रोजाना तैयार हो सकेगा।

राजस्थान से मिला आइडिया

रमाकांत किसी काम से राजस्थान गए थे। वहां उन्होंने गो-काष्ठ मशीन देखी और लोगों को गो-काष्ठ इस्तेमाल करते देखा तो यहां प्लांट लगाने का आइडिया मिला। चार मशीनें लागने को उन्होंने प्रधानमंत्री रोजगार योजना के तहत आवेदन किया और प्लान प्रशासन के सामने रखा, जिसे मंजूरी मिल गई। सीडीओ की अध्यक्षता वाली अधिकारियों की कमेटी को प्रोजेक्ट अच्छा लगा।

अब खबरों के साथ पायें जॉब अलर्ट, जोक्स, शायरी, रेडियो और अन्य सर्विस, डाउनलोड करें जागरण एप


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.