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आइआइटी कानपुर के मॉडल से चंद मिनटों में साफ हो सकेगा गंगा का जहर

केमिकल इंजीनियरिंग विभाग द्वारा तैयार मॉडल से चंद मिनटों में फैक्ट्रियों से निकलने वाले प्रदूषित पानी को शोधित किया जाएगा। इसकी खासियत है कि यह सौर ऊर्जा से संचालित होता है।

By Ashish MishraEdited By: Published: Thu, 19 Apr 2018 10:37 AM (IST)Updated: Thu, 19 Apr 2018 12:04 PM (IST)
आइआइटी कानपुर के मॉडल से चंद मिनटों में साफ हो सकेगा गंगा का जहर
आइआइटी कानपुर के मॉडल से चंद मिनटों में साफ हो सकेगा गंगा का जहर

कानपुर [शशांक शेखर भारद्वाज]। औद्योगिक और व्यावसायिक गतिविधियों से गंगा, राम गंगा, यमुना, गोमती नदियों में समा रहे जहर को कम करने का उपाय मिल गया है। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) के शोध से जल प्रदूषण को रोका जा सकेगा। केमिकल इंजीनियरिंग विभाग द्वारा तैयार मॉडल से चंद मिनटों में फैक्ट्रियों से निकलने वाले प्रदूषित पानी को शोधित किया जाएगा। इसकी खासियत है कि यह सौर ऊर्जा से संचालित होता है। यह टेनरियों और डाइंग इकाइयों में लगे ट्रीटमेंट प्लांट से काफी ज्यादा सस्ता है। आइआइटी अब बड़े मात्रा में पानी के शोधन के लिए रिएक्टर तैयार कर रहा है। इस शोध को अंतरराष्ट्रीय जरनल में प्रकाशित किया जा चुका है।

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फैक्ट्रियों से कई तरह के रसायन निकलते हैं। इनमें से कुछ तो पानी के साथ घुल जाते हैं जबकि कुछ सतह पर रहते हैं। कई उद्योगों से हानिकारक मैटल भी निकलते हैं जो यह मनुष्य के साथ जलीय जंतुओं को भी नुकसान पहुंचाते हैं। इनमें टेनरी उद्योग भी है। आइआइटी के वैज्ञानिकों का दावा है कि ट्रीटमेंट प्लांट में फैक्ट्रियों से निकलने वाले कचरे को शोधित होने में 24 घंटे से अधिक समय लगता है जबकि संस्थान के रिसर्च में बने मॉडल से कुछ ही देर में पानी साफ हो जाता है।

नैनोफाइबर पर आधारित मॉडल

असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. राजू कुमार गुप्ता के मुताबिक आइआइटी में तैयार मॉडल नैनोफाइबर तकनीक पर आधारित है। इसके लिए किसी भी तरह का पारदर्शी कंटेनर लिया जाता है। उसके चारों ओर कार्बन डॉट्स, क्वानटम डॉट्स और नैनोपार्टिकल्स कालेप लगाया जाता है। उसके बाद टाइटेनियम डाईऑक्साइड या फिर जिंक ऑक्साइड के नैनोफाइबर लगाए जाते हैं।

फैक्ट्री से निकला दूषित पानी कंटेनर में आता है तो सूर्य की अल्ट्रावायलेट लाइट से नैनोफाइबर और रासायनिक मिश्रण सक्रिय हो जाता है। इससे कुछ ही मिनटों में पानी साफ हो सकता है। इस प्रक्रिया में कार्बन डाईऑक्साइड और पानी शेष रह जाता है। समय का हिसाब प्रदूषण की मात्रा पर भी निर्भर करेगा। क्रोमियम, आर्सेनिक या अन्य मेटल के प्रदूषण में कुछ घंटे लग सकते हैं।

कौन सा प्रदूषण है, मिलेगी जानकारी

मॉडल में नई सरफेस इनहैन्सड रेमन स्कैटरिंग (एसईआरएस) तकनीक का इस्तेमाल हुआ है। इससे पानी में कौन का प्रदूषण है, इसकी सटीक जानकारी मिल सकेगी। आइआइटी ने डाइंग इकाइयों में इसका परीक्षण किया है। रिसर्च में प्रो. राजू गुप्ता के साथ ही पीएचडी के छात्र नरेंद्र सिंह, प्रसन्नजीत, शालिनी और भावना ने सहयोग किया।

रिएक्टर हो रहा तैयार

शोध के बेहतर परिणाम आने के बाद संस्थान के वैज्ञानिक बड़े स्तर पर रिएक्टर तैयार कर रहे हैं। यह भी सौर ऊर्जा पर आधारित रहेगा। इसे किसी भी बड़े नाले या छोटी नहर में इंस्टाल किया जा सकेगा। 


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