पकड़ा गया साइबर ठगों का गिरोह, जानिए किस तरह खातों से निकाल लेते थे रुपये Kanpur News
महिला समेत पांच शातिर गिरफ्तार कैनरा बैंक के खातेदारों की 25 लाख रुपये की रकम निकाली।
कानपुर, जेएनएन। खातेदारों के मोबाइल नंबर बंद कराकर उनके खातों से लाखों रुपये उड़ाने वाले साइबर ठगों के अंतरजनपदीय गिरोह का साइबर सेल ने शनिवार को पर्दाफाश कर दिया। गिरोह के पांच सदस्य गिरफ्तार कर जेल भेज दिए गए, जिसमें एक महिला भी शामिल है। अभी तक गिरोह कैनरा बैंक के दर्जन भर खातों का ब्योरा लेकर करीब 25 लाख रुपये निकाल चुका है। पुलिस मोबाइल नेटवर्किंग कंपनी की सेल्सगर्ल समेत दो अन्य आरोपितों की तलाश कर रही है।
बीते छह माह के अंदर कोतवाली, फीलखाना और कर्नलगंज क्षेत्र में मोबाइल नंबर बंद कराके खातों से रकम निकाले जाने की आधा दर्जन घटनाएं सामने आ चुकी हैं। जुलाई में रणजी खिलाड़ी अलमास शौकत के दो खातों व ओएफसी कर्मी की मां के खाते से भी पांच लाख रुपये निकल गए थे। पुलिस, सर्विलांस व साइबर एक्सपट्र्स की मदद से जांच में जुटी थी। शनिवार को जेके मंदिर के पास पुलिस ने सर्विलांस की मदद से इस गिरोह के सरगना शुक्लागंज पोनी रोड के दुर्गेंद्र मिश्रा उर्फ छोटू उर्फ जंगली, शुक्लागंज श्रीनगर निवासी प्रदीप कुमार सिंह उर्फ हिमांशु, अंकित सिंह उर्फ सोनू, प्रेमनगर निवासी किरन शुक्ला और कोतवाली सिविल लाइंस निवासी सुखेंद्र कुमार को गिरफ्तार कर लिया।
एसपी क्राइम राजेश यादव ने बताया कि आरोपित अंकित के पास बाइक, दो मोबाइल व दो हजार रुपये, किरन शुक्ला के पास ई-रिक्शा, दुर्गेंद्र और प्रदीप के पास दो-दो मोबाइल व चार-चार हजार रुपये, सुखेंद्र के पास एक मोबाइल व 870 रुपये बरामद हुए हैं। आरोपितों ने उन्नाव, सीतापुर व लखनऊ में भी वारदात की थीं। अब तक करीब 25 लाख रुपये खातों से निकाल चुके हैं। गिरोह के अन्य सदस्यों के बारे में जानकारी जुटाई जा रही है।
ग्राहकों की खाता नंबर लिखी पर्ची थी ठगी का जरिया
खातेदारों की लापरवाही साइबर ठगों के लिए हथियार बन गई। गिरफ्तार ठगों ने बताया कि बैंक में पड़ी आधी भरी हुई पर्ची पर लिखे खाता नंबर को कस्टमर केयर पर बताकर खाते का ब्योरा जुटाते थे। मोबाइल नंबर हासिल कर फर्जी आधार कार्ड से डुप्लीकेट सिम निकलवाकर मोबाइल बैंकिंग व यूपीआइ जैसे एप के जरिये रकम दूसरे खातों में ट्रांसफर करते थे।
एसपी क्राइम राजेश यादव ने बताया कि खाता धारकों की डिटेल एकत्रित करने के लिए दुर्गेंद्र, प्रदीप व उसके बाकी साथी विभिन्न बैंक की शाखाओं में जाकर उन ग्र्राहकों पर नजर रखते थे, जो जमा या निकासी पर्ची भर रहे होते थे। जैसे ही ग्र्राहक ब्योरा गलत हो जाने पर पर्ची फेंकते थे, उसे वह उठा लेते थे। खाता नंबर और नाम पता लगने पर कस्टमर केयर से मोबाइल नंबर हासिल करने की कोशिश करते थे। कहते थे कि नंबर बदल गया है और पुराना नंबर भूल गए हैं। नया नंबर जुड़वाना है। जानकारी लेने के लिए 30 से 40 बार तक फोन करते और मोबाइल नंबर पता लगते ही उसे बंद करा दूसरा सिम ले लेते थे। फिर एप के जरिये पीडि़तों के खातों से रकम अपने परिचितों के खातों में डालते थे।
खातेदार से करते थे लंबी बात
मोबाइल कंपनियां नंबर बंद करने व दूसरा सिम जारी करने से पहले सत्यापन करती हैं। इसी वजह से ठग, खातेदार के मोबाइल नंबर पर टॉपअप रीचार्ज कराते और जानबूझकर उसे फोन कर लंबी बात करते थे। डेबिट व क्रेडिट कार्ड संबंधी ब्योरा पूछने की कोशिश करते थे। मोबाइल नंबर बंद कराने पर वैरीफिकेशन के लिए पुराने टॉपअप रीचार्ज व बातचीत का ब्योरा देते थे। नंबर बंद होते ही फोटोशॉप एप से जाली आधार बनवाकर पोस्टपेड सिम जारी करवाते थे।
उधार चुकाने के लिए बना साइबर ठग
सरगना दुर्गेंद्र ने बताया कि शिवकुमार गुप्ता से उधार रकम ली थी। चुकाने के लिए शिवकुमार ने उसे साइबर ठग से मिलवाया, जिसकी मदद से ठगी करना सीखा। शिवकुमार की उधारी चुकाने के बाद वह अपने शौक पूरे करने लगा। प्रदीप के कहने पर वह किरन शुक्ला के खाते में रकम ट्रांसफर करके निकाल रहे थे। हाल ही में कमीशन की रकम से किरन ने भी नया ई-रिक्शा खरीदा था।
चार से दस फीसद देते थे कमीशन
पीडि़तों के खातों से जिन खातों में ऑनलाइन रकम ट्रांसफर की जाती थी। उन खातेदारों को आरोपित चार से दस फीसद कमीशन देते थे। रकम निकालने के समय वे शहर से बाहर रहते थे। तीर्थ स्थलों पर जाकर रकम ट्रांसफर करते थे क्योंकि वहां भीड़ होती है।