Positive India : Coronavirus से लडऩे के लिए आगे आए आइआइटी व एचएएल, तैयार किया सुरक्षा कवच
आइआइटी विशेषज्ञों ने एसजीपीजीआइ डॉक्टरों से परामर्श कर तैयार किया एचएएल ने पारदर्शी एक्रेलिक शीट से तैयार किया सुरक्षा कवर।
कानपुर, जेएनएन। कोरोना वायरस के संक्रमण से बचने के लिए आइआइटी व एचएएल आगे हैं। उन्होंने इस महामारी से बचने के लिए सुरक्षा कवच तैयार किए हैं। आइआइटी ने जहां पॉजिटिव प्रेशर रेस्पिरेटर सिस्टम बनाया है वहीं एचएएल ने डॉक्टरों को कोरोना संक्रमण से बचाने के लिए एयरोसॉल बॉक्स तैयार किया है।
पॉजिटिव प्रेशर रेस्पिरेटर सिस्टम से वायरस मुक्त सांसें
कोरोना संक्रमित मरीजों के करीब रहने के बावजूद चिकित्सकों और स्वास्थ्यकर्मियों को वायरस मुक्त सुरक्षित सांसें मिलेंगी। आइआइटी के विशेषज्ञों ने एसजीपीजीआइ लखनऊ के डॉक्टरों के परामर्श से ऐसा पॉजिटिव प्रेशर रेस्पिरेटर सिस्टम तैयार किया है जिसमें मास्क से जुड़ा छोटा एयर सिलिंडर स्वस्थ रखने में मददगार होगा। बड़ा सिलिंडर लगाने पर इसमें दो से तीन लोगों के मास्क जोड़े जा सकेंगे। संस्थान ने प्रोटोटाइप मॉडल तैयार कर पेटेंट की प्रक्रिया शुरू कर दी है।
मास्क में रहता पांच फीसद खतरा
दुनिया भर में सुरक्षा की दृष्टि से फोर लेयर का मास्क सबसे सुरक्षित माना जाता है। यह 95 फीसद वायरस के संक्रमण को रोकता है जबकि ढीला पहनने से या बोलते समय पांच फीसद खतरा हो सकता है। आइआइटी में डिजाइन प्रोग्राम के हेड और मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग के प्रो.नचिकेता तिवारी ने एसजीपीजीआइ के आइसीयू इंचार्ज डॉ.देवेंद्र गुप्ता से संक्रमित रोगियों के इलाज में आने वाली समस्याएं पूछीं, जिसके बाद टीम के साथ दो सप्ताह में सिस्टम तैयार कर दिया।
महंगा नहीं है सिस्टम
प्रो. तिवारी के मुताबिक इसके लिए बाहरी उपकरणों की आवश्यकता नहीं पड़ी। इसको एयर सिलिंडर की सहायता से चलाया जा सकता है। एयर सिलिंडर अस्पताल में उपलब्ध रहते हैं। उसको मास्क के साथ ही जोड़ा गया है। बीच में दो किलो की बोतल भी लगी है, जिसको भी एयर लेने के काम में ला सकते हैं। यह इमरजेंसी के लिए रहता है। सिलिंडर से मास्क तक आने वाली एयर के रास्ते में बैक्टीरिया वायरल फिल्टर लगा है। यह करीब 30 से 35 रुपये का आता है। इसको बदलने की जरूरत पड़ती है। बड़ा एयर सिलिंडर सात से आठ घंटे चलता है। एयर बॉटल 30 से 40 मिनट चलती है।
डॉक्टरों को कोरोना संक्रमण से बचाएगा एयरोसॉल बॉक्स
कोरोना संक्रमित मरीज की जांच के दौरान डॉक्टरों की सुरक्षा के लिए ङ्क्षहदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) कानपुर ने पारदर्शी बॉक्स एयरोसॉल तैयार किया है। संक्रमित मरीज के चेहरे पर इस बॉक्स को रखकर डॉक्टर मरीज के सिर के पास खड़े होकर थ्रोट व नेजल स्वाब ले सकेंगे। इससे डॉक्टर व सहायक स्टाफ सुरक्षित रहेंगे। बॉक्स लगाकर डॉक्टर आसानी से काम कर सकें इसके लिए इसमें डॉक्टर के लिए दो और सहायक स्टाफ के सामान पकडऩे के लिए दोनों साइड में एक-एक गोला बनाया गया है। पारदर्शी कॉमर्शियल एक्रेलिक शीट से तैयार बॉक्स का वजन करीब 4.30 से 5 किलो के बीच है।
कच्चा माल मिलने में दिक्कत
एचएएल एयरक्राफ्ट ट्रांसपोर्ट डिवीजन के महाप्रबंधक अपूर्बा रॉय ने बताया कि पारदर्शी कॉमर्शियल एक्रेलिक शीट का इस्तेमाल किया जा रहा है। इस बॉक्स को तैयार करने के लिए 80 फीट रोड स्थित एक दुकान से 110 पीस शीट मंगवाई थीं। यह शीट जिला प्रशासन से अनुमति लेने के बाद दुकान खुलवाकर मंगवाई थीं। अब कच्चा माल मिलने में दिक्कत आ रही है। शहर के साथ ही दिल्ली और लखनऊ के प्रशासनिक अफसरों के जरिए व्यापारियों से संपर्क कर रहे हैं।
एमपी और राजस्थान सरकार को भी देंगे बॉक्स
महाप्रबंधक ने बताया कि एचएएल की एयरक्राफ्ट डिवीजन बेंगलुरु, नासिक व एयरक्राफ्ट ट्रांसपोर्ट डिवीजन कानपुर में एयरोसॉल बॉक्स बनाए जा रहे हैं। तीनों यूनिटें अब तक तीन सौ बॉक्स तैयार कर चुकी हैं। मध्य प्रदेश और राजस्थान सरकार के लिए कानपुर यूनिट 30-30 बॉक्स तैयार कर रही है। 25 अप्रैल तक डिलीवरी की उम्मीद है।
तीन सौ फेसकवर भी किए तैयार
एचएएल ने पारदर्शी शीट से फेसकवर भी तैयार किए हैं। ये हेलमेट में लगने वाले शीशे की तरह है। महाप्रबंधक ने बताया कि इससे गर्दन तक का हिस्सा सुरक्षित रहता है। इसके 300 पीस तैयार किए गए हैं।
15 बॉक्स जिला प्रशासन को सौंपे
महाप्रबंधक ने बताया कि गुरुवार को औद्योगिक विकास मंत्री सतीश महाना की मौजूदगी में डीएम डॉ.ब्रह्मदेव राम तिवारी, एसएसपी अनंतदेव तिवारी व जीएसवीएम मेडिकल कालेज की प्राचार्य डॉ. आरती लालचंदानी को 15 एयरोसॉल बॉक्स सौंपे हैं। जिनका उपयोग अस्पतालों में होगा वहीं उद्यमियों की प्रमुख संस्था इंडियन इंडस्ट्रीज एसोसिएशन ने कर्मयोगी और आउटसोर्सिंग कर्मियों के लिए 200 राशनकिट दीं, जिसमें आटा, चावल, दाल, तेल, नमक, सब्जी मसाला, चाय, नमकीन आदि सामग्री है।
इनका ये है कहना
यह बहुत ही सार्थक खोज है। एसजीपीजीआइ के डॉक्टर भी सराहना कर चुके हैं। प्रोफेसर और उनकी टीम वास्तव में बधाई की पात्र है।
प्रो.अभय करंदीकर, निदेशक आइआइटी