बुझ गया कानपुर का एक नूर, रोशनी के रंगीन सपने दिखाने वाले डॉ. महमूद रहमानी नहीं रहे
कन्नौज के रहने वाले डॉ. महमूद रहमानी ने वर्ष 1989 में नेत्रदान महादान अभियान की शुरुआत की थी।
कानपुर, जेएनएन। सूनी आंखों को रंगीन सपने दिखाने वाले 66 वर्षीय डॉ. महमूद रहमानी नहीं रहे। वह पिछले एक पखवाड़े से बीमार थे और अस्पताल में भर्ती थे। उन्होंने 13 मार्च को अपने जीवन का आखिरी ट्रांसप्लांट किया था। नेत्रहीनों को नेत्र ज्योति देने के लिए उन्होंने मुफ्त कार्निया ट्रांसप्लांट अभियान शुरू किया था। सोमवार सुबह उनका जनाजा (अंतिम यात्र) सिविल लाइंस स्थित आवास से उठेगा। वे अपने पीछे तीन बेटियों का भरपुरा परिवार छोड़ गए हैं।
मूलरूप से कन्नौज के रहने वाले डॉ. महमूद रहमानी कानपुर में आकर बस गए थे। वर्ष 1989 में उन्होंने नेत्रदान महादान अभियान की शुरुआत कानपुर में की थी। उस समय श्रीमती मर्चेंट ने नेत्र दान किया था लेकिन उसके बाद उन्हें करीब 10 वर्ष इंतजार करना पड़ा था। वर्ष 2000 में देहदान अभियान के मनोज सेंगर, आजाद हिंद फौज की सेनापति मानवती आर्या सब एक साथ आए और उसके बाद इस अभियान को तेज गति मिली। आजाद हिंद फौज में महिला विंग की कमांडर रहीं कैप्टन लक्ष्मी सहगल का भी उनकी मृत्यु के बाद डॉ. रहमानी ने नेत्रदान कराया था।
सिविल लाइंस स्थित एम्पायर इस्टेट में रहने वाले डॉ. रहमानी ने 13 मार्च को अंतिम नेत्र ट्रांसप्लांट किया। उसकी पट्टी 10 दिन बाद यानी 23 मार्च को खुलनी थी लेकिन 22 मार्च की दोपहर में घर में नमाज पढ़ते समय उन्हें ब्रेन हैमरेज हुआ। उन्हें अस्पताल ले जाया गया। तब से वह वहीं भर्ती थे। रविवार देर रात उन्होंने सवरेदय नगर स्थित एक अस्पताल में अंतिम सांस ली। उन्होंने अपने जीवन में 1224 ट्रांसप्लांट किए। नवीन मार्केट स्थित सोमदत्त प्लाजा में गॉड सर्विस आई क्लीनिक चलाने वाले डॉ. महमूद हुसैन रहमानी चमनगंज में शिफा आई रिसर्च सेंटर के नाम से तीस बेड का अस्पताल भी चला रहे थे।