पैसा काम तो आएगा लेकिन जाने वाले का प्यार नहीं दे पाएगा, कोरोना से अपनों को खोने वालों ने बयां किया दर्द
कोविड में जान गंवाने वाले कर्मचारियों के आश्रितों को 50 लाख रुपये दिए जाने की घोषणा की गई है। कोरोना संक्रमण से अपनों को खोने वाले आश्रितों को अभी जानकारी नहीं है लेकिन जाने वाले का प्यार न लौटने की बात कह रहे हैं।
कानपुर, जेएनएन। परिवार का मुखिया साथ छोड़ दे तो उसकी कमी जिंदगी भर अखरती है। तमाम सहायता और सहायता राशि भी परिवार में उसकी कमी पूरा नहीं कर सकती है। पैसा हर जरूरत तो पूरी कर सकता है लेकिन जाने वाले का प्यार नहीं दे सकता। सरकार द्वारा कोविड के जान गंवाने वाले कर्मचारियों के आश्रितों को 50 लाख रुपये देने के फैसले के बाद यह टिप्पणी उन परिवारों की थी जिन्होंने अपनों को खो दिया। आंखों में आंसू भरकर आश्रित कहते हैं कि दो दिन में वह सब हो गया जिसकी कल्पना जीवन में कभी भी नहीं की थी। ऐसे दो परिवारों से जागरण ने बातचीत की तो आठ माह पहले के उस मंजर को याद का उनका दिल सिहर उठा। आंखें नम हो गईं।
जिंदगी की हर खुशी उनसे थी
लाटूश रोड में रहने वाले आंनद कुमार नगर निगम के स्वास्थ्य विभाग में सफाई पर्यवेक्षक थे। आनंद अपने काम के माहिर थे। यही कारण था कि घंटाघर, नौघड़ा, सब्जीमंडी, कलक्टरगंज जैसे बड़े क्षेत्र में सफाई की जिम्मेदारी उन्हें सौंपी गई थी। काम के दौरान 29 जुलाई 2020 को कोरोना वायरस की चपेट में आए। रात करीब तीन बजे उन्हें हैलट में भर्ती कराया गया। एक अगस्त को उनकी मौत हो गई। बेटी प्रतिमा को नगर निगम में मृतक आश्रित में नौकरी मिली है लेकिन वह कहती हैं कि मेरे पापा की कमी कोई पूरी नहीं कर सकता है। जागरण ने उन्हें 50 लाख रुपये सहायता मिलने की बात बतायी तो पत्नी आरती ने कहा, सरकार ने सुध ली इसके लिए शुक्रिया।
रुंधे गले से बोलीं, पैसा पति की कमी को पूरा नहीं कर सकता है। ङ्क्षजदगी की हर खुशी उनसे थीं। छोटी बेटी संस्कृति तो आज भी पापा को याद कर चीख पड़ती है। परिवार के करीबी कर्मचारी नेता हरिओम बाल्मीकि बताते हैं कि आनंद की मौत के बाद से परिवार सदमे में है। नौ माह बाद भी पत्नी आरती की हालत ठीक नहीं रहती।
पैसों से नहीं मिलेगा पिता का प्यार
काकादेव थाने में तैनात एसआइ मुकेश कुमार आर्य का परिवार मुजफ्फरनगर में रहता है। 27 अक्टूबर 2020 को मुकेश संक्रमित हुए। उसी दिन उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया। बेटे अंकुर कानपुर आए फिर भी पिता से नहीं मिल पाए। 29 अक्टूबर को मुकेश की मौत की खबर मिली तो पैरों तले जमीन खिसक गई। बावजूद इसके पिता का चेहरा तक नहीं देख सके।
अंकुर बताते हैं कि मां चंद्रेश देवी की हालत आज भी स्थिर नहीं है। पापा के अचानक चले जाने से पूरी जिम्मेदारी उनके कंधे पा आ गई। शिक्षण कार्य कर वह परिवार चला रहे हैं। पापा की पेंशन भी अभी नहीं मिली। भाई अरुण और बहन सोनिया प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहे थे। पापा के न होने से वह भी टूट गए। 50 लाख सहायता राशि मिलने की जानकारी से इन्कार करते हुए अंकुर बोले पापा की नामौजूदगी में यह पैसे हमारे काम जरूर आएंगे लेकिन उनके होने का एहसास नहीं मिलेगा।