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CAA Protest In Kanpur : नाकाम रहा खुफिया तंत्र, पर्दे के पीछे पहले से तय हो चुका था सब कुछ?

जुमे की नमाज के मद्देनजर पुलिस-प्रशासन पहले से अलर्ट था।

By AbhishekEdited By: Published: Sat, 21 Dec 2019 04:46 PM (IST)Updated: Sat, 21 Dec 2019 04:46 PM (IST)
CAA Protest In Kanpur : नाकाम रहा खुफिया तंत्र, पर्दे के पीछे पहले से तय हो चुका था सब कुछ?
CAA Protest In Kanpur : नाकाम रहा खुफिया तंत्र, पर्दे के पीछे पहले से तय हो चुका था सब कुछ?

कानपुर, जेएनएन। शुक्रवार को यतीमखाना से परेड और बेगमपुरवा तक जो हुआ, वह एक सोची-समझी साजिश का हिस्सा लग रहा है। यूं लगा, जैसे सब कुछ पहले से तय था। बेहद गोपनीय था और रणनीतिक भी। कुछ तैयारियां बाहरी थीं और कुछ अंदरखाने। अहिंसक आंदोलन की तैयारी के बीच शरारती तत्व भी ङ्क्षहसा की तैयारी किए बैठे थे। दुखद बात यह रही कि न खुफिया तंत्र इन खुराफातियों के बारे में सटीक सूचनाएं जुटा पाया और न ही इनके खिलाफ प्रशासन कोई सख्त एक्शन ले सका।

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दरअसल, जुमे की नमाज की आड़ में खुराफात होने की आशंका को लेकर पुलिस-प्रशासन पहले से अलर्ट था। यह भी अंदेशा था कि भीड़ परेड पर एकत्र हो सकती है। इसके अनुरूप तैयारी भी थी, लेकिन भीड़ की संख्या का अंदाजा न होने से मामला बेकाबू हो गया। हलीम चौक, चमनगंज आदि करीबी इलाकों के हजारों लोगों का हुजूम यतीमखाने में जुट गया। पुलिस इन्हें रोक पाती कि ये परेड की ओर चल पड़े। इस बीच, हजारों की संख्या में चुन्नीगंज, बकरमंडी, ग्वालटोली और नई सड़क की ओर से भी लोग आ जुटे। सिलसिला यहीं नहीं थमा और आसपास की तकरीबन हर गली से 100-150 लोगों का जत्था इनके साथ जुडऩे लगा। कुछ इस तरह जैसे सबकुछ पहले से तय हो कि किसको कहां पर आकर मिलना है। परेड आते-आते कारवां बन गया।

तैयारी का दूसरा पहलू भी देखिए। भीड़ में बड़ी संख्या में तिरंगे लहरा रहे थे। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और भारत रत्न डॉ. भीमराव आंबेडकर के चित्र वाले पोस्टर हाथों में थे। गो बैक एनआरसी और सीएए के पंफ्लेट बांटे जाने लगे। भीड़ में बड़ी संख्या बच्चों की भी थी। यह तैयारी ऐसी थी, जिससे पुलिस भीड़ पर कार्रवाई से परहेज करे। भीड़ का पूरा चेहरा और तैयारी अहिंसक दिखाने की कोशिश की गई। इसके बावजूद सोमदत्त प्लाजा और परेड पर भीड़ ने दुकान, बैंक और वाहनों में तोडफ़ोड़ की।

यहां तक गनीमत थी, लेकिन कुछ इसी अंदाज में बेगमपुरवा में जुटी भीड़ ने पुलिस पर पेट्रोल बम फेंके। पत्थरबाजी की, बोतलें फेंकी और वाहनों में आग लगा दी। इससे साफ था कि इस भीड़ का एक तबका ङ्क्षहसा की तैयारी के साथ आया था। इस पूरे परिदृश्य से साफ लगा कि कोई अदृश्य हाथ इस आंदोलन को कंट्रोल कर रहा था।

अचानक बदला वक्त, रात भर बंटे पर्चे

सीएए और एनआरसी के विरोध में आंदोलन की तैयारी कई दिन से चल रही थी। 18 दिसंबर को भी सोशल मीडिया पर 'द प्रोटेस्ट कैंपेन अगेंस्ट सीएबी-एनआरसी' के नाम से मैसेज चलाए गए। इसमें 21 दिसंबर को दो बजे परेड चौराहे पर एकत्र होने की अपील की गई थी। इसके बाद इस अहिंसक आंदोलन की तारीख 22 दिसंबर कर दी गई। फिर, गुरुवार रात जुमे की नमाज के बाद चक्का जाम का आह्वïान हुआ। रातों-रात पर्चे बांटकर सूचनाएं पहुंचाई गईं। इसमें मौखिक ज्यादा हुआ, डिजिटल प्लेटफार्म के जरिये बेहद कम।

फिर सामने आई खुफिया नाकामी

आंदोलनकारियों ने पुलिस और प्रशासन को गुमराह करने की काफी कोशिश की और सफल भी हो गए। पुलिस के डिजिटल वालंटियर और एस-10 सदस्य भी कोई सटीक सूचना पहले से नहीं दे पाए। पुलिस का खुफिया तंत्र भी नाकाम रहा।


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