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मुकदमे में साक्ष्य बनी फैजाबाद के तत्कालीन डीएम की किताब

खोदाई में मिले साक्ष्यों के आधार पर किताब में राम मंदिर होने का किया दावा -खोदाई में मिले सा

By JagranEdited By: Published: Wed, 02 Sep 2020 06:37 AM (IST)Updated: Wed, 02 Sep 2020 06:37 AM (IST)
मुकदमे में साक्ष्य बनी फैजाबाद के तत्कालीन डीएम की किताब
मुकदमे में साक्ष्य बनी फैजाबाद के तत्कालीन डीएम की किताब

जागरण संवाददाता, कानपुर :

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सेवानिवृत्त आइएएस अफसर रामशरण श्रीवास्तव को अयोध्या में राम मंदिर निर्माण आंदोलन के दौरान 17 जुलाई 1987 को तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने उन्हें फैजाबाद (अब अयोध्या) में डीएम नियुक्त किया था। उन्होंने राम मंदिर आंदोलन, खोदाई के दौरान वहां मिले साक्ष्यों पर आधारित 'अयोध्या : एक दृष्टिकोण' पुस्तक भी लिखी। इसमें बताया कि साक्ष्य श्रीराम मंदिर की स्थापना को प्रमाणित करते हैं। पुस्तक मुकदमे में भी पेश की गई। अयोध्या विवाद पर उन्होंने तीन किताबें लिखीं जबकि चौथी किताब श्रीराम जन्मभूमि पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद से ही लिख रहे थे।

मूलरूप से हमीरपुर जिले के कुरारा गांव निवासी रामशरण श्रीवास्तव वर्ष 1962 में पीसीएस बने थे और बाद में प्रोन्नत होकर आइएएस। उनकी दो बेटियां प्रियंका व अवंतिका हैं। प्रियंका सिगापुर व अवंतिका हैदराबाद में रहती हैं। पत्नी का देहांत हो चुका है। वह साढ़े तीन साल तक फैजाबाद के डीएम रहे। सुप्रीम कोर्ट ने जब मंदिर निर्माण के पक्ष में फैसला सुनाया तो उन्होंने सुंदरकांड का सामूहिक पाठ कराया था।

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श्री राम की कृपा से हो गया शिलान्यास का काम..

सेवानिवृत्त आइएएस रामशरण श्रीवास्तव का अपने पैतृक गांव कुरारा, हमीरपुर से हमेशा लगाव रहा है। वह हमेशा दशहरे में एक हफ्ते लगातार अपने गांव में सांस्कृतिक कार्यक्रम करवाते थे। उनकी इंटर तक शिक्षा हमीरपुर में ही हुई। उनके पिता पारा कंडोर में पटवारी रहे हैं। रामशरण और उनके भाई गांव से पैदल चलकर हमीरपुर आते-जाते थे। सेवानिवृत्त होने के बाद क्षेत्र के पिछड़ेपन को देखते हुए वह एक महाविद्यालय, दो इंटर कॉलेज संचालित कर रहे थे। उन्होंने बीते 15 अगस्त को कुरारा व पैतृक गांव स्थित कॉलेजों में तिरंगा फहराया था। इस दौरान उन्होंने जागरण से श्रीराम जन्मभूमि के ऐतिहासिक पूजन पर खुशी बयान करते हुए 1987 से 1990 के बीच फैजाबाद का डीएम रहते मंदिर आंदोलन की यादें भी साझा की थीं।

उस दौर की तस्वीर उकेरते हुए उन्होंने बताया था कि उस वक्त अयोध्या में तीनों गुंबद थे। बीच वाले गुंबद में रामलला की मूर्ति रखी थी। कारसेवा और शिलान्यास के दौरान जरूर थोड़ी दिक्कतें आई थीं। करीब बीस लाख लोगों की भीड़ थी, लेकिन भगवान राम की कृपा से काम आसानी से हो गया। सभी चाहते थे कि वहां राम मंदिर बने। सुप्रीम कोर्ट ने इस विवाद का अकल्पनीय समाधान कर दिया।


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