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इटावा में आंकड़ों में हेरफेर की गवाही दे रहीं शवों की कतारें, अधिकारियों ने साधी चुप्पी

चंद रोज बाद ही 26 अप्रैल को 37 और एक मई को 39 अंत्येष्टि के साथ नया रिकार्ड बना। एक मई को रात डेढ़ बजे अंतिम अंत्येष्टि हुई थी। इसी प्रकार शहर के कब्रिस्तानों में दफीना का औसत एक-दो से बढ़कर तीन-चार तक चल रहा है।

By Akash DwivediEdited By: Published: Thu, 06 May 2021 05:10 PM (IST)Updated: Thu, 06 May 2021 05:10 PM (IST)
इटावा में आंकड़ों में हेरफेर की गवाही दे रहीं शवों की कतारें, अधिकारियों ने साधी चुप्पी
स्वास्थ्य विभाग और प्रशासन का कहना है कि मौत के आंकड़ों में गड़बड़ी करके किसी को क्या मिलेगा

इटावा (सोहम प्रकाश)। श्मशान का सन्नाटा आईने की तरह सच बोलता है। इन्सान जीवन दर्शन से यहीं आकर रूबरू होता है। कोविड महामारी के भयावह दौर में उसी इन्सान का वजूद सिर्फ आंकड़ा बनकर रह गया है। वह आंकड़ा कोरोना संक्रमित के तौर पर सरकारी रिकार्ड में दर्ज हो अथवा पीपीई किट में पैक ÓबॉडीÓ के रूप में। इन सरकारी आंकड़ों को श्मशान में शवों की कतारें आईना दिखा रही हैं। चिताओं से उठती लपटें सरकारी आंकड़ों को झुठला रहीं हैं। अकेले शहर के यमुना तलहटी स्थित श्मशान घाट पर 18 दिनों में 428 अंत्येष्टि हुई हैं, जबकि इसी अवधि में सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 87 कोरोना पीडि़तों की जान गई। साफ है, महामारी में मृत्यु दर बढऩे से शहर के श्मशान पर अंत्येष्टि के आंकड़ों के आधार पर पूरे जनपद में मृतकों की संख्या दोगुना होने का अनुमान है। दीगर तौर पर यह संख्या सरकारी रिकार्ड में नजर नहीं आएगी। कोविड महामारी की पहली लहर में शहर के श्मशान पर रोजाना शवों की आमद एक तो कभी अधिकतम सात रही। कुछ दिन ऐसे भी रहे, जब एक भी शव नहीं आया। जबकि दूसरी लहर में मृत्यु दर बढ़ी तो रिकार्ड टूटते चले गए। अप्रैल के पहले पखवाड़े में रोजाना चार-पांच अंत्येष्टि का औसत था। इधर 18 दिनों के आंकड़ों में पहली बार 20 अप्रैल को सर्वाधिक 21 अंत्येष्टि हुई थीं।

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चंद रोज बाद ही 26 अप्रैल को 37 और एक मई को 39 अंत्येष्टि के साथ नया रिकार्ड बना। एक मई को रात डेढ़ बजे अंतिम अंत्येष्टि हुई थी। इसी प्रकार शहर के कब्रिस्तानों में दफीना का औसत एक-दो से बढ़कर तीन-चार तक चल रहा है। जानकारी के अनुसार अधिकारियों ने आंकड़ों में कोरोना से हुई संदिग्ध मौतों को शामिल नहीं किया है। सामान्य तौर पर अंतर तब सामने आता है, जब आधिकारिक आंकड़ों की मौजूदा कोरोना की केस फेटेलिटी रेट (सीएफआर) से तुलना की जाती है। बहरहाल कोविड मृतकों की आधिकारिक संख्या और कोविड प्रोटोकॉल के तहत श्मशान में हो रहे दाह संस्कार के आंकड़ों के बीच बड़ा अंतर दिख रहा है। स्वास्थ्य बुलेटिन में रोजाना चार-पांच कोविड मृतकों का औसत रहता है। इस पर स्वास्थ्य विभाग और प्रशासन का कहना है कि मौत के आंकड़ों में गड़बड़ी करके किसी को क्या मिलेगा।

अच्छा-बुरा चेहरा सामने लाती महामारियां : महामारियां इन्सान का सबसे अच्छा चेहरा भी सामने लाती हैं और सबसे बुरा भी। महामारियों से इन्सान लड़ लेता है। उनके ऊपर जीत हासिल कर लेता है। लेकिन यह जीत एक कीमत पर आती है। बहुत कुछ खत्म हो जाता है। हजारों-लाखों परिवार तबाह हो जाते हैं। 21वीं सदी की पीढ़ी की त्रासदी यह है कि वह सब कुछ घटित होते हुए देख रही है। ऐसे-ऐसे मंजर दिखाई दे रहे हैं कि पत्थर दिल भी पिघल उठते हैं। श्मशान पर शवों की कतार के बीच नई चिता सजाने की जद्दोजहद में ऐसे असहज हालात पैदा हो गए हैं कि आंखों में ही आंसू सूख जाते हैं। दूसरी तरफ एक-दूसरे का गम बांटकर इन्सानियत की नई-नई मिसालें सामने आती हैं।

इनका ये है कहना

  • मृत्यु दर बढऩे की वजह सिर्फ कोरोना पॉजिटिव या संदिग्ध संक्रमित होना नहीं है। रोग प्रतिरोधक क्षमता में कमी से उम्रदराज और जो पहले से किसी न किसी मर्ज से पीडि़त हैं, उनकी मृत्यु भी एक बड़ी वजह है। इसलिए वैक्सीन की दोनों डोज लेना जरूरी है। इससे 99 प्रतिशत सुरक्षित हो सकते हैं। विड़बना यह है कि अभी भी कोविड गाइड लाइन का सामाजिक स्तर पर पूरी तरह पालन नहीं किया जा रहा है। संक्रमण से बचाव के लिए सिर्फ सरकार पर निर्भर नहीं रहा जा सकता, यह हमारी भी व्यक्तिगत जिम्मेदारी है।

                                                                                                         डॉ. भगवान दास, सीएमओ  


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