367 करोड़ का प्रोजेक्ट, दस साल तक चली कवायद 11वें वर्ष में रखी आधारशिला और नतीजा सिफर
कर्मचारी राज्य बीमा निगम के अफसरों की प्लानिंग लापरवाही की भेंट चढ़ गई है। यहां सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल बनाने का काम मशक्कत के बाद शुरू हुआ था जो फिर से बंद हो गया है। 13 साल बाद भी कामगारों को अस्पताल की सुविधा नहीं मिल पाई है।
कानपुर, जेएनएन। कर्मचारी राज्य बीमा निगम (ईएसआइसी) के अधिकारियों की भटकी प्लानिंग ने कामगारों के 367 करोड रुपये बर्बाद कर दिए। 13 साल बाद भी कुछ निष्कर्ष नहीं निकल सका है कि आखिर बनाना क्या है। अधिकारी कभी मेडिकल कॉलेज, कभी डेंटल कॉलेज और कभी सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल बनाने की प्लानिंग करते रहे। हद तो यह रही कि अधिकारियों ने केंद्रीय श्रम मंत्री बंडारू दत्तात्रेय से सुपरस्पेशलिटी हॉस्पिटल की आधारशिला भी रखवा दी, लेकिन आज तक पूरा नहीं हो सका है। इसका प्रोजेक्ट 289 करोड़ रुपये से बढ़कर 367 रुपये तक पहुंच गया। आज भी यह बिल्डिंग अधूरी खड़ी अफसरों की भूमिका पर अंगुली उठा रही है।
कर्मचारी राज्य बीमा निगम के अधिकारियों ने कानपुर के पांडु नगर स्थित बीमा अस्पताल परिसर में 289 करोड़ रुपये की लागत से ईएसआइसी का मेडिकल कॉलेज बनाने का निर्णय लिया था। इसके लिए वर्ष 2006 में निर्माण एजेंसी भी फाइनल कर दी गई। हालांकि बाद में मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया के मानक के अनुसार जमीन कम होने पर निर्णय बदलना पड़ गया।
इसके बाद ईएसआइसी के अधिकारियों ने डेंटल कॉलेज खोलने का फैसला कर लिया। इस दिशा में बात भी आगे बढ़ने लगी। इस बीच बोर्ड ने कामगारों के पैसे से डेंटल कॉलेज बनाने के फैसले पर एतराज़ जताया और इसे पैसों की बर्बादी करार दिया। इस पर पुनर्विचार करने के बाद ईएसआइसी बोर्ड की बैठक में निर्णय बदल दिया गया। पैरामेडिकल स्टॉफ की कमी दूर करने के लिए ईएसआइसी का नर्सिंग कॉलेज खोले जाने का फैसला हो गया और अधिकारियों की टीम ने निरीक्षण भी कर लिया।
इन कवायदों के बीच वर्ष 2007 में दिल्ली की निर्माण एजेंसी ने कार्य भी शुरू कर दिया। कुछ दिन बाद अधिकारियों ने अपने खुद के फैसले को पलट दिया और नर्सिंग कॉलेज का प्रोजेक्ट भी ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। इसके बाद भाजपा सरकार ने कानपुर में सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल खोलने का निर्णय लिया और इस पर तेजी से कवायद भी शुरू हुई। तत्कालीन केंद्रीय श्रम मंत्री बंडारू दत्तात्रेय ने छह अक्टूबर 2016 में सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल की आधारशिला भी रखी। कुछ दिन काम में तेजी भी आई और फिर बाद में कार्य अटक गया। ठीकेदार ने पैसों की कमी बताते हुए कार्य रोक दिया और आज भी बिल्डिंग अधूरी खड़ी है।
बढ़ती गई लागत
यहां जिस तरह से भवन बनाने और उस पर निर्णय बदलते गए। उसी प्रकार से बजट की लागत बढ़ती गई। जो 289 से बढ़कर 367 करोड़ रुपये तक पहुंच गया। फिर भी पूरा नहीं हो सका।
करोड़ रुपये के उपकरण जंक का रहे
भवन निर्माण एजेंसी ने कार्य पूरा करने से पहले ही अत्याधुनिक उपकरण खरीद लिए। उसमें एसी प्लांट, आइसीयू के उपकरण, वेंटीलेटर, बड़े जनरेटर सेट, ट्रांसफार्मर आदि। जो कई वर्षों से खुले में रखे हैं। पानी एवं धूप पड़ने से जंक पड़ चुकी है।
कई बार निरीक्षण पर निर्णय नहीं
दिल्ली से ईएसआइसी मुख्यालय से अधिकारियों की टीम निरीक्षण करने यहां आ चुकी है। इसके बाद भी कोई हल नहीं निकला। ईएसआइसी बोर्ड की बैठक में लगातार इस मसले को उठाया भी जा रहा है।
- कामगारों के करोड़ों रुपयों के पैसों की बर्बादी का मामला बोर्ड की बैठकों में लगातार उठा रहे हैं। ईएसआइसी के महानिदेशक निरीक्षण करने भी आए थे। इसके बाद जल्द ही सुपरस्पेशलिटी हॉस्पिटल का निर्माण शुरू कराने की बात भी कही थी। अभी तक कोई निष्कर्ष नहीं निकल सका है। पिछली बोर्ड बैठक में धन की बर्बादी के लिए जिम्मेदारी तय कराने को लेकर मसला उठाया है। नए वर्ष में होने वाली ईएसआइसी बोर्ड की बैठक में निर्णय होने की संभावना है। -राम किशोर त्रिपाठी, सदस्य, ईएसआइसी बोर्ड।