प्यार की संजीवनी से मिल रही सेहत को डोज
शहरी परिवेश कुछ ऐसा हो गया है कि लोग एकाकी जीवन ज्यादा पसंद आ रहा है लेकिन मजा संयुक्त परिवार में ही है।
जागरण संवाददाता, कानपुर : शहरी परिवेश कुछ ऐसा हो गया है कि लोग एकाकी जीवन ज्यादा पसंद करते हैं हालांकि कोरोना महामारी ने लोगों की इस सोच को बदला है। कोरोना कर्फ्यू के दौरान फोन पर अपनों से बात, वीडियो कॉलिग, चैट भी अब वह खुशी नहीं दे पा रही जो संयुक्त परिवार में है। ऐसे में एक साथ रहने का अनुभव लेना है तो किदवई नगर की श्रीवास्तव फैमिली से पूछिए। यहां लोग अलग ही अंदाज में दिन गुजार रहे हैं। कोरोना का खौफ घर के बाहर सीमित है क्योंकि अंदर खुशियों की चहल पहल है। हाल में परिवार का एक सदस्य बीमार पड़ा तो सभी का प्यार संजीवनी बन गया और उनकी सेहत दुरुस्त हो गई।
किदवई नगर के वाई ब्लाक निवासी रिटायर्ड आरबीआइ अधिकारी अमरनाथ श्रीवास्तव के परिवार में उनकी पत्नी, चार बेटे और बहू तथा बेटों के छह बच्चे हैं। सुबह सभी एक साथ व्यायाम करते हैं। सबसे बड़े बेटे प्रमोद बच्चों को शारीरिक रूप से फिट रखने की जिम्मेदारी देते हैं, छोटे बेटे अरूण ने बच्चों को पढ़ाने की जिम्मेदारी ले रखी है। उनसे छोटे अमित ही कोरोना कर्फ्यू के दौरान जरूरत के वक्त घर से बाहर जाते हैं। सबसे छोटा बेटा अन्नू इस वक्त बेंग्लुरू में हैं। अमरनाथ कहते हैं कि प्यार, अपनापन और एक दूसरे का हाथ थामकर चलने से जिदगी सरल और सुंदर हो जाती है।
-----
हर मुश्किल में साथ
सबसे बड़े बेटे प्रमोद को पिछले दिनों आए अचानक तेज बुखार से परिवार डर गया। हालांकि जांच में रिपोर्ट नेगेटिव आई। बावजूद इसके उन्होंने खुद को 14 दिन तक आइसोलेट रखा। अब वे पूरी तरह स्वस्थ हैं।
-----
बच्चों की गलती पर दादा-दादी देते हैं सीख
बच्चों में प्रखर सबसे बड़े हैं, जबकि उन्नति, प्रगति, अक्षिता, कुष्णा और कुशाग्र छोटे हैं। हंसी ठिठोली के बीच सभी सदस्यों का दिन गुजर जाता है, किसी भी बच्चे की गलती पर तय है कि शिकायत दादा अमरनाथ और दादी ऊषा के पास ही जाएगी। बच्चों को समझाने और सीख देने की जिम्मेदारी इन्हीं दोनों की है।