घबराएं नहीं, छूने व हाथ मिलाने से नहीं फैलता जीका
प्रभावित क्षेत्र में रह रही सभी गर्भवती की जरूर कराएं जीका वायरस की जांच
जागरण संवाददाता, कानपुर : शहर के एयरफोर्स स्टेशन से लेकर चकेरी, श्याम नगर व कोयला नगर क्षेत्र जीका वायरस प्रभावित है। फिर भी जीका से घबराने की जरूरत नहीं, क्योंकि 80 फीसद संक्रमितों में कोई लक्षण नहीं होता। जीका गर्भवती के गर्भस्थ शिशु के लिए ही घातक है। शहर के लिए जीका नया है, इसलिए लोग डरे हुए हैं। जीका से घबराएं नहीं, क्योंकि इसका संक्रमण छूने, गले मिलने और हाथ मिलाने से नहीं फैलता। ये बातें सोमवार को दैनिक जागरण कार्यालय में आयोजित जागरण विमर्श में जीएसवीएम मेडिकल कालेज के माइक्रोबायोलाजी विभाग के प्रोफेसर डा. विकास मिश्रा ने कहीं।
उन्होंने बताया कि वर्ष 1947 में दक्षिण अफ्रीका के जीका फारेस्ट में बंदरों की एक प्रजाति बुखार से पीड़ित थी, जब विशेषज्ञों ने अध्ययन किया तो जीका वायरस के संक्रमण का पता चला। 1952 में नाइजीरिया के मनुष्य में पहली बार जीका का संक्रमण पाया गया। उसके बाद दक्षिण अफ्रीका, यूरोप एवं अमेरिकी देशों में जीका फैलता चला गया। वर्ष 1953 में भारत, इंडोनेशिया, थाइलैंड, पाकिस्तान, बांगलादेश में भी संक्रमित मिले। विशेषज्ञ जीनोम सीक्वेंसिग से जीका के दो म्यूटेशन अफ्रीकन लीनएज वायरस एवं एशियन लीनएज वायरस का पता लगाने में कामयाब हुए। उन्होंने बताया कि जीका सुषुप्त आरएनए वायरस है, इसी फैमिली के डेंगू, चिकनगुनिया, यलो फीवर एवं जापानी इंसेफ्लाइटिस के वायरस हैं। इसके संक्रमण से गर्भवती के गर्भस्थ शिशु को संक्रमित कर माइक्रो सिफैली (छोटा सिर होने से विकृति) मानसिक विकार, गर्भपात व गर्भ में बच्चे की मौत जैसी समस्याएं होती हैं।
संक्रमित को काटकर फैलाते संक्रमण
जीका वायरस का संवाहक एडीज एजिप्टी और एडीज एब्बोपिक्टस मच्छर हैं, जिन्हें टाइगर मच्छर भी कहते हैं। संक्रमित क्षेत्र से लौटे व्यक्ति को काटने के बाद दूसरे को काटकर संक्रमण फैलाते हैं। जीका में 80 फीसद में कोई लक्षण नहीं होते, जबकि 20 फीसद में तेज बुखार, शरीर में लाल चकत्ते, जोड़ों व मांसपेशियों में ऐंठन, आंखों में लालीपन व कीचड़ आने लगता है। अंत में प्लेटलेट्स काउंट कम होता है। डेंगू व चिकनगुनिया के अनुपात में जीका का खतरा 10 गुना कम होता है। वायरस 15 दिन बाद स्वयं शरीर से बाहर चला जाता है।
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ऐसे लगाते हैं वायरस का पता
संक्रमित व्यक्ति के खून से शुरुआती पांच दिन आरटीपीसीआर जांच कराते हैं। उसके बाद पेशाब का सैंपल लेकर आरटीपीसीआर जांच कराई जाती है।
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ऐसे करें बचाव
मच्छरों से बचाव करना जरूरी है। इसके लिए मच्छरों का ब्रीडिग स्थल चिह्नित कर उन्हें खत्म कराएं। जहां मच्छरों के लार्वा हों, उन्हें नष्ट कराएं। मच्छरदानी का इस्तेमाल करें। लेमन ग्रास व यूकेलिप्टिस का तेल लगाने से भी मच्छर भागते हैं।
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यह एहतियात जरूरी
- अफ्रीका या प्रभावित क्षेत्र से लौटने के तीन हफ्ते तक महिलाएं संबंध न बनाएं।
- प्रभावित क्षेत्र से लौटने के बाद पुरुष दो हफ्ते तक महिलाओं से दूरी बनाए रखें।
- प्रभावित क्षेत्र से लौटने के छह माह तक महिलाएं गर्भधारण न करें।
- गर्भधारण करने पर सेकेंड लेवल अल्ट्रासाउंड जांच से शिशु की स्थिति जानते रहें।