सफेद चमकदार व रोगमुक्त है 'कुफरी गंगा' आलू
विक्सन सिक्रोड़िया कानपुर आलू की नई प्रजाति कुफरी गंगा किसानों के लिए मुनाफे की फसल
विक्सन सिक्रोड़िया, कानपुर : आलू की नई प्रजाति 'कुफरी गंगा' किसानों के लिए मुनाफे की फसल होगी। चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (सीएसए) के सब्जी विज्ञान विभाग ने केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान शिमला के साथ मिलकर संकर की यह प्रजाति विकसित की है। सफेद चमकदार, गोल, चपटे व उभरी आंखों वाली कुफरी गंगा आम आलू की अपेक्षा 20 फीसद अधिक फसल देगा। इसके साथ ही यह आलू में लगने वाले 'पिछेती' व 'झुलसा' रोग से लड़ने में भी सक्षम है।
आलू की इस नई प्रजाति के जनक 'गौरव' व 'एमएस 638' हैं। तीन वर्ष के शोध कार्य व परीक्षण के बाद सीएसए ने यह प्रजाति प्राप्त की है। भारत सरकार की राष्ट्रीय प्रजाति विमोचन समिति ने इसके बीज उत्पादन के लिए नोटीफाई कर दिया है जिसके बाद यह बीजों के उत्पादन की श्रृंखला में आ गई है।
दो वर्ष में पहुंच जाएगा किसानों के खेतों तक :
सीएसए के सब्जी विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. अजय कुमार दुबे ने बताया कि करीब दो वर्ष में इसके बीज किसानों तक पहुंच जाएंगे। इस सफेद गूदे वाले आलू का भंडारण कमरे के तापमान में भी किया जा सकता है। इस तापमान में 75 दिन तक रख कर इसका परीक्षण किया गया है। परीक्षण में यह पाया गया कि नमी बहुत अधिक कम नहीं हुई।
450 से 500 कुंतल उत्पादन देगी कुफरी गंगा
आलू की कुफरी गंगा प्रजाति अब तक विकसित की गई प्रजातियों की तुलना में अधिक उत्पादन देती है। इसका उत्पादन 450 से 550 कुंतल प्रति हेक्टेयर पाया गया है। फसल 80 से 90 दिन में पकती है। जबकि आम प्रजातियों का उत्पादन 350 से 450 कुंतल प्रति हेक्टेयर होता है। एक आलू का वजन 80 से 100 ग्राम के बीच होता है। प्रत्येक आलू में उभरी हुई आठ से 10 आंखें होती हैं। यह आलू मैदानी क्षेत्रों के लिए मुफीद है। प्रो. दुबे ने बताया कि इस शोध कार्य के लिए उनकी टीम में डॉ. रमेश सिंह, डॉ. यूसी मिश्रा, डॉ. अजय कुमार यादव व अन्य साथी वैज्ञानिक शामिल थे।