CSA Agriculture University: नैनो पार्टिकल तकनीक से फसल की सेहत रहेगी फिट और उत्पादन भी बढ़ेगा
चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के विशेषज्ञों ने फसलों पर नैनो पार्टिकल तकनीक का प्रयोग शुरू किया है इससे फसलों में हुए बदलाव और गुणवत्ता का अध्ययन करके आइसीएआर को रिपोर्ट दी जाएगी। फसलों पर रोगों के हमले का पता लग सकेगा।
कानपुर, जेएनएन। देश में किसान फसल उत्पादन में जी जान लगा देते हैं लेकिन उत्पादन अपेक्षा से कम ही रहता है। इसकी मुख्य वजह फसलों में लगने वाले कीट होते हैं, जिनसे बीज अंकुरण के बाद पौधा रोगग्रस्त होकर नष्ट हो जाता है। इस समस्या को देखते हुए सीएसए के विशेषज्ञों ने काफी शोध के बाद नैनो पार्टिकल तकनीकि विकसित की है। इस तकनीक से न केवल पौधों की रोग प्रतिरोधकर क्षमता बढ़ाकर उसे फिट रखा जाएगा बल्कि किसानों को उनकी मेहनत के अनुरुप उत्पादन भी मिल सकेगा। इसके लिए सीएसए विशेषज्ञों ने अभी से काम शुरू कर दिया है।
अब नैनो पार्टिकल तकनीक से पौधों में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने की तैयारी है। चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के विशेषज्ञों ने टमाटर, मक्का, धान की फसलों पर नैनो पार्टिकल तकनीक का प्रयोग शुरू कर दिया है, जबकि आलू, गेहूं और अन्य फसलों की जल्द ही ट्रायल लगाए जाएंगे। इसमें फसलों पर हुए बदलाव, असर और गुणवत्ता का अध्ययन होगा। विशेषज्ञ दो साल में पूरा आकलन कर भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आइसीएआर) को रिपोर्ट दे देंगे। इस कार्य में निजी कंपनी का सहयोग लिया जा रहा है, जिसके ओर से नैनो पार्टिकल्स मुहैया कराए गए हैं।
फसलों की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए मिट्टी में सोडियम, पोटेशियम, फासफोरस, मैग्निशियम समेत अन्य पौष्टिक तत्वों का छिड़काव किया जाता है। कई तरह के माइक्रो न्यूट्रियंट्स (सूक्ष्म पोषक तत्व) काफी महंगे आते हैं, जिनका उपयोग महंगा पड़ता है। यह पोषक तत्व मिट्टी की गुणवत्ता बढ़ाने के साथ ही रोगों से लड़ने की क्षमता में इलाफा करते हैं। सीएसए के संयुक्त निदेशक शोध डा. एससी विश्वास ने बताया कि नैनो पार्टिकल्स को स्प्रे के माध्यम से छिड़काव किया जाता है। यह अन्य तत्वों के मुकाबले एक तिहाई सस्ता पड़ता है। फसलों में पहली बार छिड़काव 30 से 35 दिन और दूसरी बार 40 से 45 दिन में किया जाता है। अभी यह तकनीक नई है। इसका आकलन हो रहा है।
फसलों पर पता चलेगा प्रभाव : डा. विश्वास के मुताबिक नैनो पार्टिकल्स का असर पौधों पर कितना हुआ है। उनमें किस तरह का बदलाव हुआ है। पैदावार और अन्य तरह के रोग की स्थिति क्या रही, इसकी जानकारी मिल सकेगी। फसलों पर रोगों के हमले का पता लग सकेगा।